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तारीख़-ए-खानदान-ए-तैमूरिया

भारत द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ी विरासत और इसे सन 2011 में मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल करने की सिफ़ारिश की गई।

तारीख़-ए-खानदान-ए-तैमूरिया, तैमूरियों के इतिहास, यानी ईरान और भारत में तैमूर के उत्तराधिकारियों का इतिहास बताता है। इस समृद्ध रूप से चित्रित पांडुलिपि को महान मुगल सम्राट और तैमूर के वंशज जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर के शासनकाल के बाईस साल बीत जाने के बाद सन 1577-78 में लिखा और रचा गया था। मुगलों ने भारत और दुनिया के लोगों, दोनों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन को प्रभावित किया। ज्योतिष, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, ललित कला, वास्तुकला, चित्रकला और साहित्य के विकास में उनका अनूठा योगदान है। तारीख़-ए-खानदान-ए-तैमूरिया के चित्र उस ऊँचाई के अनूठे उदाहरण हैं जिन्हें कला के इतिहास में मुगलों द्वारा प्राप्त किया गया था।

तारीख़-ए-खानदान-ए-तैमूरिया एक समृद्ध सचित्र पांडुलिपि है, जो जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर के शासनकाल तक तैमूर और उसके वंश के इतिहास से संबंधित है। विरासत के तौर पर मूल्यवान और कला के अमूल्य कार्य का यह दस्तावेज़ भारत द्वारा 2010 में मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल करने के लिए प्रस्तुत किया गया था और 2011 में यूनेस्को द्वारा इसे अंकित किया गया था। वर्तमान में, यह पांडुलिपि ख़ुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी, पटना, बिहार में है।

बाबर ने 16वीं सदी की शुरुआत में भारत में मुगल वंश की स्थापना की और इसके साथ ही देश में उस्ताद कलाकारों, मीर सैय्यद अली और अब्द अल-समद द्वारा फ़ारसी चित्रकला परंपरा आरंभ की गई। बाबर के पुत्र और उत्तराधिकारी, हुमायूँ एक साहित्यकार थे। उन्होंने एक विशाल पुस्तकालय बनवाया और कई दरबारी चित्रकार रखे जो उनके लिए काम करते थे। बाबर के पोते, अकबर (1542-1605) ने स्वयं अब्द-समद के नेतृत्व में युवावस्था में चित्रकला का अध्ययन किया और अपने दरबारी चित्रकारों के काम पर पूरा ध्यान दिया। उन्होंने एक समृद्ध सचित्र पांडुलिपि के रूप में, तारीख़-ए-खानदान-ए-तैमूरिया बनाने का काम शुरू करवाया, जिसमें तैमूर और अकबर तक के उसके उत्तराधिकारियों के शासनकाल को शामिल किया गया।

इस पांडुलिपि की विषयवस्तु सुंदर बड़ी नस्तालीक़ लिपि में लिखी गयी थी, जिसमें रंगीन और स्वर्ण-रेखाओं की किनारियाँ थीं। इस्तेमाल किया गया कागज़ बेज रंग, उत्कृष्ट गुणवत्ता का, हल्के पीले रंग की चमक लिए हुए था। विषयवस्तु पहले से लिखी, तारीख़-ए-अल्फ़ी से ली गई थी, और कम से कम 133 लघु चित्रों को इसमें जोड़ा गया। सबसे पहले लघु चित्र में तैमूर को अपने युवा साथियों के साथ खेलते हुए और फिर एक राजा के रूप में दिखाया गया है। इसमें हुमायूँ के जन्म पर बाबर की प्रसन्नता और उस अवसर पर एक भव्य दावत के उत्सव जैसी विषयवस्तुओं को भी दर्शाया गया है। इसमें हुमायूँ के सिंहासन पर बैठने का एक लघु चित्र है। उत्कृष्ट कृति, अकबर के जन्म का चित्रण करती है, जो उसकी माँ को थका हुआ और हरे रंग का जामा पहने हुए दिखाती है, जबकि शिशु अकबर एक उच्च शंक्वाकार टोपी पहने, एक दाई की बाहों में आराम कर रहें हैं।

पांडुलिपि की रचना एक सामूहिक कार्य था और कई कलाकारों ने इसमें योगदान दिया। हस्ताक्षरों के अध्ययन से पता चलता है कि कुछ चित्रकारियाँ एक कलाकार द्वारा बनाई गई और अन्य चित्रकारों द्वारा रंगी गयी थीं। कुछ प्रमुख कलाकार जिन्होंने लघु चित्रों में योगदान दिया वे हैं- दशवंत, मिस्किन, माधो मुकुंद, हैदर कश्मीरी, मिसकीन, मनोहर और बसावन। लघुचित्र दर्शातें हैं कि इस समय तक चित्रकला परंपरा अपने फ़ारसी मूल से दूर चली गई थी और हिंदू कलाकारों के प्रभाव से भारतीय चरित्र प्राप्त कर चुकी थी। मुख्यतः धर्मनिरपेक्ष विषयवस्तुओं जैसे कि प्रकृति और राजपरिवार और दरबारियों के चित्र सहित, रंग उज्जवल और रचनाएँ अधिक प्रकृतिवादी हो गई थीं।

मुगलों के अधीन शाही दरबार न केवल विशाल मुगल साम्राज्य का प्रबंधन और शासन करने के लिए प्रशासनिक सत्ता का केंद्र था, बल्कि सांस्कृतिक उत्कृष्टता का केंद्र भी था। यह सचित्र पांडुलिपि कला और विद्या के लिए मुगल संरक्षण का और महान ऐतिहासिक और कलात्मक मूल्य का एक बेहतरीन उदाहरण है।