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ऋग्वेद

भारत द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ी विरासत और इसे 2007 में मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल करने की सिफ़ारिश की गई।

वेदों को सामान्यतः हिंदू समुदाय के धर्मग्रंथों के रूप में जाना जाता है। हालांकि, मानव जाति के इतिहास में प्रथम साहित्यिक दस्तावेजों में से एक होने के नाते, वे अपनी धर्मग्रंथों के रूप पहचान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। चार वेदों में सबसे पुराना ऋग्वेद, अपनी सभी अभिव्यक्तियों में तथाकथित आर्य संस्कृति का उत्त्पत्ति स्रोत है, जो भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के बड़े हिस्सों के साथ-साथ मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में फैली हुई है। प्राचीन दुनिया के इस बहुमूल्य खज़ाने को भारत में पांडुलिपियों के रूप में संरक्षित किया गया है, और सदियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी सौंपा गया है।

ऋग्वेद को 2007 में यूनेस्को मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में एक दस्तावेज़ी विरासत के रूप में शामिल किया गया था। यह हिंदुओं का सबसे पुराना ज्ञात ग्रंथ है और मानव जाति के इतिहास में पहला साहित्यिक दस्तावेज़ भी है। इस शास्त्र को भारत में पांडुलिपियों के रूप में संरक्षित किया गया है।

भंडारकर संस्थान में ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ हैं। इन्हें 19वीं शताब्दी में जॉर्ज बुहलर, और फ़्रांज़ किलहॉर्न जैसे भारतविदों ने कश्मीर, गुजरात और तत्कालीन राजपुताना, और मध्य प्रांत सहित भारत के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित किया था। सबसे पुरानी पांडुलिपि सन 1464 की है। 30 पांडुलिपियों में से एक प्राचीन शारदा लिपि में लिखी गई है, जबकि शेष 29 देवनागरी लिपि में लिखी गई हैं। इन पांडुलिपियों में आलेखों, उच्चारण चिन्हों और समर्थन सामग्रियों के संदर्भ में कई अनूठी विशेषताएँ हैं, जो पाठ को बेहतर ढंग से पढ़ने में सहायता करती हैं।

ऋग्वेद संहिता, ऋग्वेद का सबसे पुराना खंड, 1028 भजनों का एक संग्रह है जो प्रकृति की शक्तियों का संकेत देने वाले विभिन्न देवताओं को समर्पित है। इनमें से कुछ देवता इंद्र (युद्ध के देवता), अग्नि (बलि की अग्नि), सोम (पवित्र पौधा), और उषा (भोर की देवी) हैं। एक सौर देवता सवित्र भी हैं, जिनको प्रसिद्ध गायत्री मंत्र समर्पित है। भजन वैदिक ऋषियों द्वारा रचे गए थे जो अलग-अलग कुलों से संबंधित थे, जिनमें प्रसिद्ध ऋषि विश्वामित्र और वशिष्ठ शामिल थे। यही कारण है कि भजन शैली में बहुत भिन्नताएँ हैं।

यह माना जाता है कि ऋग्वेद की रचना पहली बार 1500-1000 ईसा पूर्व के आसपास हुई थी। मौखिक परंपरा के रूप में भजनों को लंबे समय तक संरक्षित रखा गया था। इस प्रकार वे कई शताब्दियों तक अत्यंत देख-रेख के साथ कई पीढ़ियों तक याद किए गए और मौखिक रूप से प्रसारित हुए। इसके लिए, लेखकों द्वारा एक सख्त मीट्रिक योजना और एक व्यवस्थित साहित्यिक परंपरा का पालन किया गया था। यह माना जाता है कि ऋग्वेद वैदिक युग में लोगों के सामाजिक या राजनीतिक जीवन का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं देता है, लेकिन इस ग्रंथ में पाए जाने वाले भजनों, बलि के निर्देशों और दार्शनिक चिंतन के माध्यम से संस्कृति की एक रूपरेखा अवश्य उभर कर आती है।

ऋग्वेद का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह सबसे पुराना भारतीय-आर्य ग्रंथ है जो कि  अद्वितीय और अपूरणीय है। इसकी प्राचीनता को देखते हुए, यह तथ्य कि यह एक पूर्ण और अक्षुण्ण ग्रंथ के रूप में उपलब्ध है, एक दुर्लभ उपलब्धि है। हालांकि इसकी उत्पत्ति प्राचीन काल की है, परंतु यह ग्रंथ अतीत में दफ़्न नहीं किया गया है और इसे सदियों से भुलाया नहीं गया है। यह सजीव हिंदू परंपरा का एक अभिन्न अंग है। वैदिक भजनों को आज भी शादियों और अंतिम संस्कारों में और दैनिक प्रार्थनाओं के दौरान, पहले के समय के स्वर और ताल की समान सूक्ष्मताओं के साथ, सुनाया जाता है। यह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य सभी देशों और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में भी होता है, जहाँ  वर्तमान समय में हिंदू धर्म का पालन किया जा रहा है।