सुंदरवन, गंगा नदी के मुहाने की 10,000 किमी वर्ग भूमि और जल क्षेत्र (आधे से अधिक क्षेत्र भारत में, शेष बांग्लादेश में) में फैला हुआ है। यह क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया में मैन्ग्रोव वनों का सबसे बड़ा क्षेत्र है। इस उद्यान में अनेक दुर्लभ या लुप्तप्राय प्रजातियाँ निवास करती हैं जिनमें बाघ, जलीय स्तनधारी प्राणी, पक्षी और सरीसृप शामिल हैं।
सुंदरवन में दुनिया के सबसे बड़े मैन्ग्रोव वन पाए जाते हैं और यह जैविक दृष्टि से सभी प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों में से सबसे अधिक उपजाऊ है। भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के मुहाने पर स्थित इस उद्यान के वन और जलमार्ग कई तरह के जीव-जंतुओं को आश्रय प्रदान करते हैं जिनमें ऐसी कई प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके लुप्त होने का खतरा है। मैन्ग्रोव प्राकृतिक आवास एकमात्र ऐसा स्थान है जो दुनिया के बाघों की सबसे बड़ी आबादी को आश्रय प्रदान करता है। यहाँ के बाघों ने लगभग उभयचरीय जीवन अपनाया हुआ है; वे तैरकर लंबी दूरी तय करने में और मछली, केकड़े तथा मगरगोह (वॉटर मॉनिटर लिज़र्ड) का भक्षण करने में सक्षम हैं। संभवतः स्थानीय लोगों के साथ बार-बार होने वाली मुठभेड़ों के कारण वे “आदमखोर” के रूप में भी जाने जाते हैं। तूफ़ान को प्रतिबंधित करने, तटों की स्थिरता बनाए रखने, पोषक तत्वों और तलछट को पकड़ के रखने, लकड़ी और प्राकृतिक संसाधन प्रदान करने और विभिन्न जलीय, नितलीय और स्थलीय जीवों को आश्रय प्रदान करने के लिए ये द्वीप आर्थिक रूप से बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। यह मानसूनी वर्षा विप्लव, मुहाने का गठन, ज्वार-भाटा का प्रभाव और वनस्पति उपनिवेशन जैसी पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। 1,33,010 हेक्टेयर पर फैले हुए इस क्षेत्र में लगभग 55% वन भूमि और ज्वार-भाटा से प्रभावित नदियों, सँकरी खाड़ियों, नहरों और नदी के विशाल मुहाने के रूप में 45% आर्द्र भूमि का समावेश है। संपूर्ण मैन्ग्रोव वन क्षेत्र का लगभग 66% भाग बांग्लादेश में और शेष 34% भाग भारत में स्थित है।
मानक (ix): सुंदरवन दुनिया में मैन्ग्रोव वन का सबसे बड़ा क्षेत्र है और एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो बाघ का प्राकृतिक आवास भी है। ज्वार-भाटा की प्रक्रिया के कारण सुंदरवन का भूमि क्षेत्र लगातार परिवर्तित होता रहता है और नया आकार तथा रूप लेता रहता है। ज्वारनदमुखों पर अपरदन की प्रक्रियाएँ अधिक प्रमुख होती हैं और, समुद्री जल से गाद के अधिक बहाव के परिणामस्वरूप, आंतरिक ज्वारनदमुखी जलमार्गों में निक्षेपण की प्रक्रियाएँ प्रमुख होती हैं। समुद्री जीवों के लिए आद्रभूमि पशु-गृह के रूप में और चक्रवातों के प्रतिरोधक के रूप में इसकी भूमिका एक अनोखी प्राकृतिक प्रक्रिया है।
मानक(x): सुंदरवन के मैन्ग्रोव पारिस्थितिक तंत्र में पाई जाने वाली मैन्ग्रोव की अत्यधिक समृद्ध वनस्पति और मैन्ग्रोव में निवास करने वाले जीव-जंतुओं के कारण इसे अद्वितीय माना जाता है। इस क्षेत्र में मैन्ग्रोव की कुछ 78 प्रजातियों को दर्ज किया गया है जिसके कारण यह दुनिया का सबसे समृद्ध मैन्ग्रोव वन बन गया है। यह क्षेत्र इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि मैन्ग्रोव मुख्य रूप से न केवल खाड़ियों और अप्रवाही जल के किनारे पाए जाते हैं, बल्कि वे नदी के किनारों पर दलदली क्षेत्रों के साथ-साथ समतल, रेतीले क्षेत्रों में भी पनपते हैं।
सुंदरवन पशु प्रजातियों की बहुत बड़ी संख्या का आश्रय स्थल है जिसमें बाघों की सबसे बड़ी आबादी और इरावती तथा गंगा नदी में पाए जाने वाले सूंस जैसे अन्य कई लुप्तप्राय जलीय स्तनधारी जीव शामिल हैं। इस स्थल पर लुप्तप्राय सरीसृपों की भी विशाल संख्या पाई जाती है, जिसमें नागराज (किंग कोबरा) तथा स्थानीय नदियों में पाए जाने वाले उन छोटे कछुओं (टेरपिन) की बड़ी आबादी शामिल है जिन्हें किसी समय विलुप्त माना गया था। यह स्थल, ओलिव रिडले, हरा कछुआ और बाज़ठोंठी जैसे समुद्री कछुओं के लिए घोंसले बनाकर अंडे देने के क्षेत्र के रूप में काम करता है। अति प्राचीन अश्वनाल केकड़े की चार में से दो प्रदातियाँ (टैचीप्लियस गिगास और कार्सिनोस्कॉर्पियस रोटंडिकौडा) यहाँ पाई जाती हैं। एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध किए गए सजनेखली क्षेत्र में जलपक्षी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के लिए भी अत्यधिक महत्त्व रखता है।
यह स्थल नवंबर 2001 में चिह्नित किए गए एक विशाल यूनेस्को संरक्षित जैवमंडल के भीतर स्थित है। यह क्षेत्र पूर्णतः संरक्षित और मोटे तौर पर अबाधित है क्योंकि यह तीन वन्यजीव अभायारण्यों से घिरा हुआ है जो, 1987 की मूल मूल्यांकन रिपोर्ट में मौजूद अनुशंसा के अनुसार, बफ़र ज़ोन के रूप में काम करते हैं। हालाँकि भारतीय सुंदरवन का खारापन, जो मोटे तौर पर गंगा के मुहाने के पूर्व की ओर हुए स्थानांतरण के कारण उत्पन्न हुआ है, वह गंगा के शुष्क मौसम के दौरान, जल प्रवाह की प्रति प्रवाह की दिशा में होने वाले 40% तक के विपथन से प्रभावित हो रहा है, जिसके परिणामों को स्पष्ट रूप से नहीं समझा गया है। तेल रिसाव एक संभावित खतरा है जो विशेष रूप से जलीय जीव-जंतुओं और समुद्री पक्षियों को बहुत नुकसान पहुँचाता है और पूर्ण ज्वार के कारण वन में तेल के प्रवेश कर जाने से संभवतः वन को भी नुकसान पहुँचाता है। 1975-1982 के बीच हर साल औसतन 45 लोग बाघों के शिकार बने। इस बात को लेकर स्थानीय लोगों के साथ विवाद उत्पन्न हुआ है जो शहद और ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करने तथा मछली पकड़ने के लिए बाघ संरक्षण क्षेत्र के पास के क्षेत्र का उपयोग करते हैं।
इस स्थल को पर्याप्त कानूनी संरक्षण प्राप्त है। पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित नियमों और विनियमों को सख्ती से लागू करने के साथ-साथ भारतीय वन अधिनियम, 1927 और उसमें किए गए संशोधन, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित किया जा रहा है। स्थल की सुरक्षा और संरक्षण से संबंधित मौजूदा कानून काफ़ी सख्त हैं।
निर्धारित की गई रखरखाव योजना के अनुसार नियमित रूप से रखरखाव-कार्य के चलाए जाने के कारण वर्तमान में यह स्थल भली-भाँति संरक्षित है। स्थल के लिए एक अनुमोदित प्रबंधन योजना मौजूद है।
हालाँकि स्थल को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए वित्तीय और मानव संसाधनों के स्तर को बनाए रखने और उसे बेहतर बनाने की आवश्यकता है, फिर भी वन विभाग मौजूदा मूलभूत सुविधाओं के साथ, इस दिशा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा है। इसमें पारिस्थितिक तंत्र संबंधी दृष्टिकोण शामिल है जो मौजूदा संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन को इस स्थल में होने वाले मत्स्य पालन और पर्यटन जैसी अन्य प्रमुख गतिविधियों के साथ एकीकृत करता है। भरण-पोषण के लिए सुंदरवन पारिस्थितिक तंत्र पर लोगों की निर्भरता को समाप्त करने हेतु स्थानीय आबादी के लिए आजीविका कमाने के दूसरे विकल्प विकसित करने की आवश्यकता है। स्थल के संरक्षण और प्रबंधन के लिए स्थानीय समुदायों और गैर-सरकारी संगठनों के समर्थन और प्रतिबद्धता को मज़बूत करने के लिए स्थल के नियोजन और प्रबंधन में सहभागिता का दृष्टिकोण बनाए रखने की आवश्यकता है। अनुसंधान और निरीक्षण गतिविधियों के लिए भी पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता है।
पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान बंगाल की खाड़ी पर गंगा-ब्रह्मपुत्र के विशाल मुहाने का भाग है। 1977 में वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अभिहित किए गए इस उद्यान को 1987 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था। इस बहुत बड़े क्षेत्र में मैन्ग्रोव वन फैले हुए हैं जहाँ वनस्पति और जीव-जंतुओं की अनोखी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
हिमालय से निकलने वाली गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रणालियाँ प्रतिवर्ष अरबों टन तलछट अपने साथ लाती हैं। इन नदियों के मुहाने पर उनकी गति धीमी हो जाने के कारण दुनिया के सबसे बड़े मुहाने का निर्माण हुआ है। सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान इस मुहाने के समुद्री छोर पर स्थित है। उद्यान की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 7.5 मीटर है। बंगाल की खाड़ी के निकट होने के कारण इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है और इस क्षेत्र में आर्द्रता 80% तक रहती है।
बड़े मैन्ग्रोव वन में मुख्य रूप से सुंदरी (हेरिटियेरा लिटोरालिस) के पेड़ और गेंगवा (एक्सकोकेरिया एग्लोचा) तथा निपा पाल्म (निपा फ़्रूटिकन) जैसी अन्य एलिफ़ैटिक (नमक-सहिष्णु) प्रजातियाँ उगती हैं। यह वन, कुछ विलुप्तप्राय प्रजातियों सहित, पशुओं और पक्षियों की बड़ी संख्या के लिए एक आवास स्थल है। इसके अतिरिक्त यह स्थल, लकड़ी, शहद, मोम और टैनिन जैसी व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण वस्तुओं का एक स्रोत भी है। मैन्ग्रोव के दलदल तलछट को बचाए रखने, इस्तेमाल किए गए पोषक तत्वों को फिर से इस्तेमाल करने में तथा समुद्र के किनारों को अपरदन से बचाने में सहायता देते हैं।
उद्यान का प्रमुख आकर्षण बाघ अथवा रॉयल बंगाल टाइगर (पैंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस) है। बंगाल टाइगर के आहार में मछली और अन्य जलीय प्रजातियाँ शामिल हैं और इसने तैराकी में तगड़ी क्षमता भी हासिल कर ली है। जो लोग लकड़ी या शहद इकट्ठा करने के लिए मैन्ग्रोव वनों में जाते हैं, वे बड़ी आसानी से बंगाल टाइगर के शिकार बन जाते हैं और इस कारण वन और मानव पारिस्थितिक तंत्र के परस्पर संघर्ष की कई घटनाएँ सामने आती हैं। हालाँकि इस तरह के हमलों को कम करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी मानव-पशु संघर्ष इस क्षेत्र के सांस्कृतिक जीवन का एक भाग बन गया है। यह लोक गीतों में, ‘बाघ विधवाओं’ से संबंधित कथाओं में और ‘बोनो देवी’ को समर्पित प्रार्थनाओं में परिलक्षित होता है। मान्यता है कि, दैत्य राजा दख्खिन राय के पशु रूप माने जाने वाले, बाघ से, बोनो देवी रक्षा प्रदान करती हैं।
इस उद्यान का एक मानवीय पहलू भी है। इसके निकट कई गाँव बसे हुए हैं जिनमें दस लाख से अधिक लोग निवास करते हैं। अधिकांश लोग मछुआरे और सीमांत किसान हैं जो क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करते हैं। यह वन बढ़ती जनसंख्या के दबाव से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहा है जिसके कारण इसकी नाज़ुक पारिस्थितिकी पर बुरा असर पड़ रहा है। बढ़ता खारापन और पारिस्थितिकीय आपदाएँ, जैसे कि तेल रिसाव और जल में अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्टों का निर्वहन, ऐसे अन्य कारक हैं जो मैन्ग्रोव के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं। समुदाय और सरकार के नेतृत्व में की गईं पहलें इन समस्याओं से निपटने में मदद कर रही हैं। इस संबंध में उद्यान को 2001 में मानव और जैवमंडल कार्यक्रम (मैन एंड बायोस्फ़ियर प्रोग्राम - एमएबी) के तहत संरक्षित जैवमंडल के रूप में, तथा 2019 में रामसर आर्द्रभूमि के रूप में घोषित किया जाना बहुत महत्त्वपूर्ण है।