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नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (1998, 2005)

फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम हिमालय में ऊँचाई पर स्थित है और यह अपने स्थानीय पहाड़ी फूलों और उत्कृष्ट प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यह विशाल विविधतापूर्ण क्षेत्र दुर्लभ और लुप्तप्राय पशुओं का निवास-स्थान भी है, जिनमें एशियाई काला भालू, हिम तेंदुआ, भूरा भालू और नीली भेड़ शामिल हैं। फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान का सौम्य भूदृश्य, ऊबड़-खाबड़ निर्जन पहाड़ी क्षेत्र में स्थित नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान का अनुपूरक प्रतीत होता है। ये दोनों मिलकर ज़ंस्कार और विशाल हिमालय की पर्वत शृंखलाओं के बीच एक अनोखे संक्रमण क्षेत्र में स्थित हैं, जिसकी प्रशंसा पर्वतारोहियों और वनस्पतिशास्त्रियों द्वारा एक सदी से अधिक समय से और हिंदू पौराणिक कथाओं में इससे भी पहले से की गई है।

उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य


संक्षिप्त संश्लेषण


पश्चिमी हिमालय की ऊँचाइयों पर स्थित, नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान अद्भुत सौंदर्य और उत्कृष्ट जैवविविधता से युक्त भूदृश्य हैं। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान हिमालय के शानदार निर्जन क्षेत्रों में से एक है और यहाँ पर 7817 मी. की ऊँचाई वाली भारत के दूसरे सबसे ऊँचे पहाड़ नंदा देवी की चोटी स्थित है, जहाँ पहुँचने के लिए ऋषिगंगा की तंग घाटी से गुज़रना पड़ता है जो कि दुनिया की सबसे गहरी घाटियों में से एक है। फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान, जो सौम्य भूदृश्य, पहाड़ी फूलों के असाधारण खूबसूरती वाले घास के मैदानों और सुलभ गम्यता से युक्त है, नंदा देवी के ऊबड़-खाबड़, दुर्गम, निर्जन ऊँचे पहाड़ों का अनुपूरक प्रतीत होता है। इन उद्यानों के छोटे हिस्सों में कुछ समुदाय-आधारित पारिस्थितिक पर्यटन के अतिरिक्त 1983 के बाद से इस क्षेत्र में मानवीय गतिविधियों के कारण कोई भी दबाव उत्पन्न नहीं हुआ है। इसलिए यह क्षेत्र प्राकृतिक प्रक्रियाओं के रखरखाव के लिए एक नियंत्रण स्थल के रूप में कार्य करता है। साथ-ही-साथ यह क्षेत्र हिमालय में दीर्घकालिक पारिस्थितिक जाँच करने के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।


दोनों उद्यानों में पश्चिम हिमालयी जैवभौगोलिक क्षेत्रीय वनस्पति और जीव की उच्च विविधता और सघनता है, जिसमें हिम तेंदुए, हिमालयी कस्तूरी मृग और अनगिनत पौधों की प्रजातियों जैसी वैश्विक स्तर पर विलुप्तप्राय प्रजातियों की बड़ी आबादी है। 71,210 हेक्टेयर के क्षेत्र पर फैले हुए ये दोनों उद्यान, 5,14,857 हेक्टेयर के एक बड़े बफ़र ज़ोन से घिरे हुए हैं, जिसमें कई ऊँचे-नीचे स्थान और प्राकृतिक आवास स्थित हैं। यह संपूर्ण क्षेत्र, जो पश्चिमी हिमालयी स्थानीय पक्षी क्षेत्र (ईबीए) के भीतर स्थित है, पर्वतीय अंगुलेट (खुर वाले स्तनधारी जीव) और गैलीफ़ोर्म (ज़मीन पर चरने वाले भारी-भरकम पक्षी) की बड़ी आबादी को आश्रय प्रदान करता है, जो हिम तेंदुए जैसे मांसाहारी जानवरों के शिकार होते हैं।


मानदंड (vii): नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान अपने सुदूर पर्वतीय निर्जन क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध है जो कि 7,817 मीटर के भारत के दूसरे सबसे ऊँचे पहाड़ के पास स्थित है और हिमनदों, हिमोढ़ों और पहाड़ी घास के मैदानों जैसी शानदार स्थलाकृतिक विशेषताओं द्वारा चारों ओर से संरक्षित है। फूलों की घाटी, जो हिमालय की अधिक ऊँचाई वाली बहुत ही सुंदर घाटी है, इस शानदार भूदृश्य की सुंदरता को और बढ़ाती है। यहाँ का ‘सौम्य’ भूदृश्य, पहाड़ी फूलों से युक्त असाधारण खूबसूरती वाले घास के मैदानों और यहाँ की सुलभ गम्यता, को एक सदी से अधिक समय से प्रसिद्ध खोजकर्ताओं, पर्वतारोहियों और वनस्पतिशास्त्रियों द्वारा साहित्य में और इससे भी पहले से हिंदू पौराणिक कथाओं में स्वीकारा गया है।


मानदंड (x): नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान अधिक ऊँचाई पर स्थित कई प्रकार के प्राकृतिक आवासों से युक्त है, और इसमें वनस्पति और जीव की एक बड़ी आबादी पाई जाती है, जिसमें अनेक लुप्तप्राय स्तनधारियों का समावेश है, और इनमें विशेष रूप से हिम तेंदुए और हिमालयी कस्तूरी मृग शामिल हैं और साथ-ही-साथ भड़ल या नीली भेड़ की भी एक बड़ी आबादी शामिल है। पश्चिमी हिमालय के समान रूप से संरक्षित अन्य क्षेत्रों की तुलना में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर खुर वाले स्तनधारी जंगली जानवरों, ज़मीन पर चरने वाले भारी-भरकम पक्षी और मांसाहारियों की अनुमानित प्रचुरता अधिक है। फूलों की घाटी में पाई जाने वाली विविध पहाड़ी वनस्पति, पश्चिमी हिमालय के जैव-भौगोलिक क्षेत्र की विशेषता है, जिसके कारण फूलों की घाटी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण है। प्रजातियों की समृद्ध विविधता, उत्तर में ज़ंस्कार और दक्षिण में विशाल हिमालय की पर्वतश्रेणी तथा पूर्वी और पश्चिमी हिमालयी वनस्पति के बीच मौजूद संक्रमण क्षेत्र के भीतर, घाटी के स्थान को दर्शाती है। पौधों की अनेक प्रजातियाँ वैश्विक स्तर पर विलुप्तप्राय हैं, जिनमें से कई उत्तराखंड के अन्य स्थानों में और दो प्रजातियाँ नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में नहीं पाई गई हैं। यहाँ विविध औषधीय पौधों की लुप्तप्राय प्रजातियों की संख्या अन्य भारतीय हिमालयी संरक्षित क्षेत्रों में दर्ज की गई संख्या की तुलना में अधिक है। संपूर्ण नंदा देवी संरक्षित जैवमंडल पश्चिमी हिमालयी स्थानीय पक्षी क्षेत्र (ईबीए) के भीतर स्थित है। ईबीए के इस भाग में प्रतिबंधित-श्रेणी के स्थानीय पक्षियों की सात प्रजातियाँ हैं।

अखंडता


नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान सुदूर क्षेत्र में स्थित होने और सीमित गम्यता के कारण प्राकृतिक रूप से अच्छी तरह से संरक्षित हैं। दोनों ही उद्यान 1930 के दशक तक अज्ञात थे, और 1983 से उद्यान के छोटे हिस्सों में थोड़ा ही सुनियंत्रित समुदाय-आधारित पारिस्थितिक पर्यटन होने के अतिरिक्त, यहाँ मानवीय गतिविधियों से कोई भी दबाव उत्पन्न नहीं हुआ है। इसलिए दोनों उद्यानों में अपेक्षाकृत अबाधित प्राकृतिक आवास हैं, जो वर्तमान में प्राकृतिक प्रक्रियाओं के चलते रहने के लिए नियंत्रण स्थलों के रूप में कार्य करते हैं। दोनों उद्यानों के नंदा देवी आरक्षित जैवमंडल के मुख्य क्षेत्र में स्थित होने और 5,14,857 हेक्टेयर के बड़े बफ़र ज़ोन से घिरे होने के कारण, इस क्षेत्र की अखंडता और मज़बूत हो जाती है। केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य और पश्चिम, दक्षिण और पूर्व में स्थित संरक्षित वन मंडल, इस संरक्षित जैवमंडल को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते हैं। नंदा देवी संरक्षित जैवमंडल के बफ़र ज़ोन में निवास कर रहे स्थानीय समुदाय वन विभाग के संरक्षण कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

सुरक्षा तथा प्रबंधन संबंधी आवश्यकताएँ


नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान अपनी दुर्गमता के कारण प्राकृतिक रूप से भली-भाँति संरक्षित हैं। राज्य वन विभाग इन उद्यानों तक जाने वाले गिने-चुने मार्गों की नियमित रूप से निगरानी करता है। दोनों उद्यानों में बहुत ही कम मानवीय गतिविधियाँ होती हैं; यहाँ कुछ मात्रा में समुदाय-आधारित पारिस्थितिक पर्यटन होता है, लेकिन इसे उद्यान प्रबंधन द्वारा विनियमित और प्रबंधित किया जाता है। 1983 से इन उद्यानों के भीतर मवेशियों के चरने पर पाबंदी है। गत वर्षों में पर्वतारोहण और साहसिक गतिविधियों के कारण नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में कूड़ा-कचरा इकट्ठा हो गया था और पर्यावरण की हानि हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप यहाँ 1983 से पर्वतारोहण और साहसिक गतिविधियों पर रोक लगी हुई है। 1993 से नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर मौजूद वनस्पति, जीव और उनके प्राकृतिक आवासों की स्थिति की देख-रेख हर दस साल में एक बार वैज्ञानिक अभियानों के माध्यम से की जाती है।
सर्वेक्षणों के परिणाम और सुदूर संवेदन (रिमोट सेन्सिंग) आंकड़ों के समय शृंखला विश्लेषण, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर मौजूद वनस्पति, जीव और उनके प्राकृतिक आवासों की स्थिति में हुए पर्याप्त सुधार का संकेत देते हैं। इसी तरह फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान में होने वाले अध्ययन और वार्षिक सर्वेक्षण वनस्पति, जीव और प्राकृतिक आवासों की स्थिति के बने रहने का संकेत देते हैं। नंदा देवी संरक्षित जैवमंडल में स्थित दोनों राष्ट्रीय उद्यान और बफ़र ज़ोन में स्थित आरक्षित वन, वन्यजीव प्रबंधन और कार्य योजनाओं के अनुसार क्रमशः भली-भाँति संरक्षित और प्रबंधित किए जाते हैं।


नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यानों की दीर्घकालिक सुरक्षा उद्यानों के भीतर उच्च स्तर के संरक्षण के रखरखाव और वर्तमान की मानवीय गतिविधियों की कमी पर निर्भर है। इन उद्यानों में वन्यजीव और उनके प्राकृतिक आवासों की स्थिति की नियमित देख-रेख महत्त्वपूर्ण है और इसे जारी रखने की आवश्यकता है। नंदा देवी संरक्षित जैवमंडल के बफ़र ज़ोन के भीतर पर्यटक या तीर्थयात्री प्रबंधन और जलविद्युत परियोजनाओं तथा मूलभूत सुविधाओं जैसी विकास-संबंधी गतिविधियाँ मौजूदा और संभाव्य खतरे हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

 


नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड में स्थित हैं। एक दूसरे से 20 किमी की दूरी पर स्थित इन दो उद्यानों में दो अलग-अलग भौतिक विशेषताएँ पाई जाती हैं। फूलों की घाटी, अपने नाम के अनुसार ही, स्थानीय पहाड़ी फूलों से युक्त है, जबकि नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान कठोर निर्जन पहाड़ी क्षेत्र है। वे दोनों मिलकर ज़ंस्कार पर्वतमाला और विशाल हिमालय के बीच संक्रमण क्षेत्र के रूप में खड़े हैं। 1988 में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को टैग दिया गया और 2005 में उसमें फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान को भी शामिल किया गया। इन दोनों को मिलाकर इसे एक नया नाम दिया गया – नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान।


नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में नंदा देवी की चोटी (7816 मीटर ऊँची) स्थित है। इस क्षेत्र की बर्फ़ीली घाटी में 6,000 मीटर से 7,500 मीटर की ऊँचाई वाली अन्य पर्वत चोटियाँ भी हैं। ऋषिगंगा नदी ऋषिगंगा की तंग घाटी से होकर इस क्षेत्र में प्रवाहित होती है। यह तंग घाटी इतनी खड़ी ढाल वाली और संकीर्ण है कि इसे पार करना बहुत मुश्किल है। इसके प्रथम दर्शन के बाद इस क्षेत्र की ओर जाने वाले रास्ते की खोज 1934 में होने तक लगभग पचास साल लग गए। भारत की अन्य कई हिमालय की चोटियों की तरह नंदा देवी चोटी को भी पवित्र माना जाता है और इसे भारतीय मिथकों और लोककथाओं में स्थान प्राप्त हुआ है।


फूलों की घाटी पर्यटकों और ट्रेकरों के लिए जून से लेकर अक्टूबर माह तक केवल गर्मियों के दौरान खुली रहती है क्योंकि यह साल के बाक़ी महीनों में भारी बर्फ़ से ढकी रहती है। मानसून की अवधि की समाप्ति के ठीक बाद जब यहाँ फूलों की कालीन बिछ जाती है, तब घाटी में अनगिनत रंगों की बौछार हो जाती है। दिन के अलग-अलग समय पर ऑर्किड, पोस्ता, बसंती गुलाब, गेंदा, गुलबहार और रत्नज्योति के रंगों की रंगत अलग-अलग होती है। इसके अतिरिक्त यहाँ भोज वृक्ष और बुरुंश के उप-अल्पाइन वन और यहाँ तक ​​कि औषधीय पौधों की प्रजातियाँ भी हैं। ब्रह्मकमल (सस्यूरिया ओब्वालाटा), नीला पोस्ता और नाग पुष्प कुछ ऐसे बेहतरीन फूल हैं जो पुष्प-प्रेमियों, वनस्पतिशास्त्रियों और ट्रेकरों द्वारा बहुत पसंद किए जाते हैं। घाटी तक पहुँचने का मार्ग चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसके लिए अप्रत्याशित जलवायु से युक्त कठोर क्षेत्रों के बीच लगभग 17 कि.मी. की लंबी यात्रा तय करनी पड़ती है। हालाँकि जंगली जानवरों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, फिर भी यहाँ पाए जाने वाले जंगली जानवर या तो दुर्लभ या फिर लुप्तप्राय हैं। इनमें एशियाई काला भालू, हिम तेंदुआ, भूरा भालू और नीली भेड़ शामिल हैं। 


यह उद्यान भारत के अन्य राष्ट्रीय उद्यानों से अलग है क्योंकि यात्रियों को इसके अंदर कैम्पिंग करने की अनुमति नहीं है। यहाँ कोई मानव बस्ती भी नहीं है। यहाँ तक ​​कि इस क्षेत्र में 1983 से चराई भी प्रतिबंधित है। सरकारी अधिकारियों की देख-रेख में छोटे पैमाने पर होने वाले थोड़े समुदाय-आधारित पारिस्थितिक पर्यटन के अतिरिक्त उद्यान में अन्य कोई मानवीय गतिविधि नहीं होती है। इस तरह यह क्षेत्र वैज्ञानिकों, वनस्पतिशास्त्रियों और अन्य आधिकारिक एजेंसियों के लिए प्रकृति की प्रक्रियाओं का अध्ययन करने और हिमालय की पारिस्थितिकी की देख-रेख करने हेतु एक केंद्र बन गया है।