19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वैश्विक व्यापार केंद्र बनने के पश्चात, मुंबई शहर में एक महत्वाकांक्षी शहरी नियोजन परियोजना कार्यान्वित की गई। इसके अंतर्गत ओवल मैदान नामक एक खुले स्थान के चारों ओर सार्वजनिक इमारतों के समूह का निर्माण हुआ, जिसे पहले विक्टोरियाई नव-गॉथिक शैली में और बाद में 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में आर्ट डेको शैली में बनाया गया। विक्टोरियाई कला शैली में, बालकनियों और बरामदों सहित, जलवायु के अनुकूल भारतीय घटकों को शामिल किया गया है। सिनेमा एवं आवासीय इमारतों सहित आर्ट डेको शैली की इमारतें, आर्ट डेको कल्पना को भारतीय डिज़ाइन में समाहित करके एक अद्वितीय शैली में बनाई गई हैं, जिसे इंडो-डेको के रूप में जाना जाता है। ये दोनों समूह आधुनिकीकरण के उन चरणों के साक्षी हैं, जो मुंबई में 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान घटित हुए हैं।
19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान मुंबई के शहरी विकास की दो लहरों के बाद यह शहर एक किलेबंद व्यापार केंद्र से बदलकर भारत के पहले शहर में रूपांतरित हो गया। प्रथम विस्तार के अंतर्गत 1880 के दशक में विक्टोरियाई गॉथिक शैली में निर्मित सार्वजनिक भवनों के समूह का निर्माण तथा ओवल मैदान का निर्माण कार्य पूर्ण किया गया था।
द्वितीय विस्तार 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में बैकबे भूमि-उद्धार (रिक्लेमेशन) योजना के रूप में हुआ, जिसमें आर्ट डेको आवासीय, वाणिज्यिक एवं मनोरंजन-संबंधी इमारतों के निर्माण तथा मरीन ड्राइव समुद्र तट के निर्माण के साथ, बॉम्बे शहर के लिए पश्चिम की ओर विस्तार करने का नया अवसर सुलभ हुआ।
आज ओवल मैदान के पूर्व की ओर विक्टोरियाई गॉथिक शैली में बने भवनों का एक भव्य समूह और इसके पश्चिम की तरफ़ आर्ट डेको भवनों का एक और बेहतरीन समूह देखने को मिलता है। ये दोनों समूह आधुनिकीकरण के उन चरणों को परिलक्षित करते हैं जिनसे, 1947 के आधुनिक स्वतंत्र भारत में, मुंबई शहर गुज़रा।
मानदंड (ii): दोनों विक्टोरियाई गॉथिक और आर्ट डेको इमारत समूह एक समयावधि के दौरान यूरोपीय और भारतीय मानवीय मूल्यों के महत्वपूर्ण विनिमय को प्रदर्शित करते हैं। विक्टोरियाई समूह की भव्य सार्वजनिक इमारतों के निर्माण के फलस्वरूप गॉथिक पुनरुत्थानिक तत्वों और भारतीय तत्वों के सम्मिश्रण द्वारा एक इंडो-गॉथिक शैली का विकास हुआ, जिसमें बालकनियों और बरामदों के निर्माण को शामिल करके भवनों को स्थानीय जलवायु के अनुकूल बनाने की शुरुआत हुई। मुंबई के प्रतिष्ठित सिनेमा हॉलों और आवासीय इमारतों में आर्ट डेको अलंकरण के साथ भारतीय डिजाइन को शामिल करके एक अनूठी शैली का विकास किया गया है, जिसे इंडो-डेको के रूप में जाना जाता है। इसका प्रभाव पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैला।
मानदंड (iv): विक्टोरियाई गॉथिक और आर्ट डेको इमारत समूह, दो सदियों के दौरान वास्तुकला एवं शहरी नियोजन के क्षेत्र में हुए विकास को प्रतिबिंबित करते हैं। ये दोनों समूह वास्तुकला शैलियों, निर्माण सामग्रियों एवं तकनीकों में उन्नतीकरण के चरणों, शहरी नियोजन परिकल्पनाओं और उन ऐतिहासिक चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो विशिष्ट हैं और ओवल मैदान के दोनों ओर एक दूसरे के सामने स्थित हैं। दोनों ही समूह, बॉम्बे के दो प्रमुख शहरी विस्तारों की देन हैं, जिसके फलस्वरूप यह शहर बीसवीं शताब्दी से लेकर आज तक अंतर्राष्ट्रीय रूप से महत्वपूर्ण वाणिज्यिक शहर के रूप में विकसित हुआ है।
विक्टोरियाई गॉथिक और आर्ट डेको इमारतों का समूह, दृष्टि, स्थान एवं नियोजन के संबंध में दृश्य रूप से उच्च बिंदु के रूप में राजाबाई क्लॉक टॉवर और ओवल मैदान के साथ समग्रता के उच्च स्तर को परिलक्षित करता है, जो विक्टोरियाई एवं आर्ट डेको, दोनों प्रकार की इमारतों के समूह के दृश्य प्रदान करने वाला एक एकीकरण घटक एवं केंद्रबिंदु है। यह एक नियोजित शहरी विकास के रूप में अपनी समग्रता को कायम रखे हुए है। इस संपत्ति का विस्तृत विन्यास शहरी विकास के दबाव के अधीन हो सकता है।
विक्टोरियाई गॉथिक एवं आर्ट डेको इमारतों का समूह, वास्तुशिल्पीय रूप, सजावटी रूपांकनों, डिजाइन, पैमाने एवं सामग्री के संदर्भ में प्रामाणिकता की शर्तों को पूरा करता है। इन इमारतें का मूल उपयोग भी कायम है। ओवल मैदान शहरी खुले स्थान के रूप में अपनी प्रामाणिकता बनाए हुए है और मरीन ड्राइव का समुद्र की ओर आर्ट डेको विकास के प्रतीक के रूप में दर्जा अभी भी कायम है।
भले ही किसी-किसी इमारत में संशोधन हुए हों, लेकिन उनकी जीवित प्रकृति, रूप और डिजाइन अभी भी सामान्य रूप से प्रामाणिक हैं; विशेषकर प्रत्येक इमारत का उपयोग एवं कार्य, विक्टोरियाई विशिष्ट-क्षेत्र और आर्ट डेको विशिष्ट-क्षेत्र, दोनों में ही लगभग एक-सा बना हुआ है।
इस संपत्ति और बफ़र ज़ोन का विधिक संरक्षण, महाराष्ट्र सरकार के अध्यादेश, विशेषकर द हेरिटेज रेगुलेशन्स फ़ॉर द ग्रेटर बॉम्बे 1995, रेगुलेशन नं. 67 (डीसीआर 67) पर आधारित है। इस विनियम के तहत, इस संपत्ति के भवनों को ग्रेड I, IIA, IIB या III के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। उक्त संपत्ति एवं इसका बफ़र ज़ोन, फ़ोर्ट इलाका और मरीन ड्राइव इलाका नामक दो विरासत इलाकों के अंतर्गत आते हैं।
इस संपत्ति का प्रबंधन विरासत संरक्षण समिति (हेरिटेज कंज़र्वेशन कमेटी) द्वारा ग्रेटर मुंबई विकास योजना की धारा 52 के तहत किया जाता है, जिसे DCR 67 द्वारा बनाया गया था। इस स्थल प्रबंधन योजना के अंतर्गत नौ उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं और इसके अंतर्गत 13 कार्यों सहित एक कार्य-योजना प्रस्तुत की गई है। इसमें प्रत्येक कार्य में, चाहे वह जारी कार्य हो, या फिर लघु-, मध्यम- या दीर्घ-कालिक कार्य हो, शामिल हितधारकों और एजेंसियों का निर्धारण भी शामिल है।
इसमें एक संगठनात्मक चार्ट, संपत्ति-प्रबंधन के विधिक प्रावधानों, प्रबंधन कार्य योजना के लिए कार्यान्वन-तंत्र और एक प्रबंधन पर्यटन रणनीति शामिल करने हेतु इसे अधिक सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए।
भारत के मुंबई शहर में स्थित विक्टोरियाई गॉथिक और आर्ट डेको इमारतों के समूह को 2018 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है। ये इमारतें मुंबई के ओवल मैदान के नाम से विख्यात प्रसिद्ध पार्क के चारों ओर बनाई गई हैं।
विक्टोरियाई गॉथिक संरचनाएँ पार्क के पूर्व में स्थित हैं, जबकि आर्ट डेको इमारतें पश्चिम में स्थित हैं। वास्तुकला की इन दोनों शैलियों में भारतीय विशेष्टताओं को जोड़ा गया है, जिसके फलस्वरूप इन इमारतों की एक अद्वितीय भारतीय-पश्चिमी बनावट है।
1660 के दशक में, इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बॉम्बे का अधिग्रहण किया। इससे पहले, इसके पूर्व स्वामी - पुर्तगालियों - के अधीन बॉम्बे में केवल नारियल एवं नमक जैसी चीज़ों का उत्पादन होता था। परंतु, अंग्रेजों ने इसके लिए एक अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निर्धारित की। उन्होंने इसे सैन्य एवं वाणिज्यिक केंद्र के रूप में परिकल्पित किया और इसे शत्रुओं के आक्रमणों से सुरक्षित करने के लिए इसके बंदरगाह के चारों ओर एक किला बनवाया। कालांतर में, मिलों और पोतगाहों की स्थापना की गई और 19वीं शताब्दी के दौरान यहाँ की जनसंख्या में वृद्धि हुई।
अब कंपनी को प्रशासनिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों हेतु इमारतों के निर्माण के लिए स्थान की आवश्यकता पड़ी। विस्तार के रास्ते में खड़ी, किले की दीवार को तोड़कर एक खाली स्थान बनाया गया। इसी स्थान पर बॉम्बे उच्च न्यायलय, मुंबई विश्वविद्यालय (फ़ोर्ट कैंपस), और शहरी सिविल और सेशन न्यायलय जैसी सार्वजानिक उपयोग की इमारतों का निर्माण हुआ। इन सभी का निर्माण विक्टोरियाई गॉथिक शैली में किया गया और तिरछे पुश्तों, पतली नुकीली खिड़कियों, और रंगीन कांच से अलंकृत किया गया था। स्थानीय जलवायु संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए टाइल युक्त ढलुआ छतों, नक्काशीदार बालकनियों और बरामदों को इनकी संरचनाओं में शामिल किया गया। इसमें प्रयुक्त सामग्री स्थानीय स्रोतों से प्राप्त आग्नेय बेसाल्ट पत्थरऔर मुलायम चुना पत्थर थी।
20वीं शताब्दी के प्रारंभ में बॉम्बे शहर में प्रवासन की एक नई लहर आई जिसकी वजह से यहाँ जनसंख्या वृद्धि का एक और चरण शुरू हो गया। इसी समय एक शिक्षित मध्यम वर्ग का भी विकास हुआ। इन कारणों की वजह से नए सार्वजनिक एवं आवासीय भवनों की आवश्यकता हुई। इस बार, 1920 के दशक में बैकबे भूमि-उद्धार (रिक्लेमेशन) योजना के माध्यम से जगह बनाई गई, जिसके तहत लगभग 400 एकड़ ज़मीन भूमि-उद्धार के द्वारा प्राप्त की गई, जो वर्तमान में मरीन ड्राइव क्षेत्र से कोलाबा तक फैली हुई है। इस ज़मीन पर निजी स्वामित्व वाली बहुमंजिली आवासीय और व्यावसायिक इमारतों के साथ-साथ सिनेमा हॉलों का निर्माण किया गया। इस बार आर्ट डेको शैली का उपयोग किया गया, जो सरल, साफ़ सुव्यवस्थित आकृतियों और ज्यामितीय, पुष्पीय एवं पशु अलंकरण के लिए प्रसिद्ध थी। पत्थर, ईंट एवं कंक्रीट के स्थान पर, इस शैली में स्टील स्तंभों, बीम एवं प्रबलित कंक्रीट से निर्माण को वरीयता दी गई। इन भवनों की सजावट, पारंपरिक भारतीय डिजाइनों, और यहाँ तक कि यूनानी, रोमन, और मिस्र के डिजाइनों से भी की गई।
सब मिलाकर, इन इमारतों के कारण शहर का आकाश वृत बदल गया है और इसका पश्चिमी किनारा पूर्णतया पुनर्संरचित हो गया है। 19वीं-20वीं शताब्दी के दौरान ब्रिटिश शासन के अधीन बॉम्बे के दो प्रमुख शहरी विस्तारों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्मित ये इमारतें, आज देश की वित्तीय राजधानी की प्रमुख संरचनाओं के रूप में विद्यमान हैं।
© Abha Narain Lambah Associates
Author: Jehangir Sorabjee
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