इस मंदिर-समूह का निर्माण पल्लव राजाओं द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी में किया गया था। ये मंदिर कोरोमंडल तट पर चट्टान को काटकर बनाए गए हैं। इन्हें विशेष रूप से इनके रथों (रथ के रूप में मंदिरों), मंडपों (गुफ़ा मंदिरों), प्रसिद्ध 'गंगा अवतरण' जैसी खुले में बनी बड़ी नक्काशियों, और शिव को महिमामंडित करने वाली हजारों मूर्तियों सहित तट मंदिर (शोर टेंपल) के लिए जाना जाता है।
चेन्नई से 50 किलोमीटर दक्षिण में पल्लव साम्राज्य (7वीं - 8वीं शताब्दी) का प्राचीन बंदरगाह, महाबलीपुरम (जो पारंपरिक रूप से ममल्लापुरम के रूप में जाना जाता है) स्थित है। इसे 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। यहाँ के परिसर में चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर, एकाश्म (एक शिला से बनी) संरचनाएँ, रथ (रथ मंदिर), मंडप (गुफ़ाएँ), और कई शिव मूर्तियाँ स्थित हैं।
गुफ़ा मंदिरों का निर्माण पल्लव राजा महेंद्रवर्मन प्रथम के शासनकाल से पहले हुआ था। इस गुफ़ा मंदिर परिसर में पल्लव वास्तुकला की सबसे प्राचीन शैली दिखाई देती है।
इनमें आदि वराह पेरुमल गुफ़ा मंदिर (भगवान विष्णु को समर्पित), त्रिमूर्ति गुफ़ा मंदिर (ब्रह्मा, विष्णु, और शिव को समर्पित), कृष्ण गुफ़ाएँ, महिषासुरमर्दिनी गुफ़ा (देवी दुर्गा को समर्पित) और याली या बाघ गुफ़ाएँ (नरसिंहवर्मन द्वितीय या राजसिंघ - शाही आसन) शामिल हैं।
पंच रथ दरअसल एक वास्तुशिल्पीय कृति है, जो महाभारत के पांच पांडवों और उनकी पत्नी द्रौपदी को समर्पित है। प्रत्येक रथ (द्रौपदी रथ, अर्जुन रथ, भीम रथ, धर्मराज रथ, नकुल-सहदेव रथ) संरचनात्मक रूप से प्रत्येक पांडव की विशेषताओं को दर्शाता है, और इसी कारण ये पाँचों रथ एक दूसरे के अलग हैं। एक ही अखंड चट्टान में उकेरे गए इन रथों की दीवारें हाथियों और नंदी बैल जैसी निम्न उद्भृत नक्काशी और भित्ति चित्रों से सजाई गई हैं।
गंगा अवतरण, जो अर्जुन की तपस्या के नाम से भी प्रसिद्ध है, एशिया की दूसरी सबसे बड़ी प्राचीन एकाश्म (एक ही चट्टान में निर्मित) संरचना है। शिलालेख में महाभारत के अर्जुन की पौराणिक कथा और दक्षिण भारतीय दैनिक जीवन से संबंधित दृश्यों को दर्शाया गया है।
इसका मध्य भाग, गंगा के अवतरण को दर्शाने वाली, किसी समय पर जल से भरी दरार में से नागों को नीचे आते हुए दर्शाता है। बाईं ओर पाशुपतास्त्र (भगवान शिव का सबसे शक्तिशाली अस्त्र) प्राप्ति के लिए अर्जुन द्वारा की जाने वाली घोर तपस्या (एक पैर पर खड़े होकर) को दर्शाया गया है।
कोरोमंडल के विशाल तट पर स्थित दो शिखरों वाला तट मंदिर (शोर टेंपल) पल्लव वास्तुकला की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है। इसमें भगवान शिव को समर्पित सात देवालय हैं, जो 700 और 728 इसवी के बीच नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासनकाल के दौरान बनाए गए थे। मंदिर का प्रवेश द्वार एक गोपुरम के रूप में है और मंदिर की छत या शिखर एक पिरामिड के आकार की है, जो अपने आप में अद्वितीय है। अन्य नागरिक संरचनाओं के साथ, सात मंदिरों के इस परिसर का कुछ हिस्सा वर्तमान में समुद्र के नीचे स्थित है।
ओलक्कनेश्वर मंदिर या ओलक्कनाथ मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित भगवान शिव का मंदिर है।
वर्तमान में महाबलेश्वर प्राचीन कालीन भारत के सबसे विस्तृत मंदिर परिसरों में से एक है। यह न केवल वास्तुकला की एक अनूठी और शानदार शैली का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि मानव इतिहास में एक ऐसे महत्वपूर्ण चरण का प्रतिपादन भी करता है, जो स्थापत्य तकनीक, स्मारकीय कला, और नागर योजना से पूर्ण प्राचीन सभ्यता का साक्षी है।
© मैनाक अदक
रचनाकार : मैनाक अदक
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