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मानस वन्यजीव अभयारण्य

हिमालय की तलहटी की हल्की ढलान पर, पेड़ों से ढकी पहाड़ियों के बाद के जलोढ़ घास के मैदानों और उष्णकटिबंधीय जंगलों के बीच स्थित मानस वन्यजीव अभयारण्य, बाघ, पिग्मी हॉग, भारतीय गैंडा और भारतीय हाथी जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों सहित, कई प्रकार के वन्य प्राणियों का आवास है।


उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य

संक्षिप्त संश्लेषण


मानस वन्यजीव अभयारण्य पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य में स्थित है, जो एक जैव विविधता केंद्र (हॉटस्पॉट) है। यह 39,100 हेक्टेयर के विस्तृत क्षेत्र में मानस नदी के आर पार और उत्तर में भूटान के वनों तक फैला हुआ है। मानस वन्यजीव अभयारण्य मानस बाघ आरक्षित क्षेत्र (टाइगर रिज़र्व) के 283,700 हेक्टेयर के मुख्य क्षेत्र का हिस्सा है और मानस नदी के, स्थान बदलने वाले, छोटे जल मार्गों के किनारे स्थित है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता में वृक्षयुक्त पर्वत श्रृंखला, जलोढ़ घास के मैदान और उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन शामिल हैं। यह स्थल, बाघ, एक सींग वाले गैंडे, बारहसिंगा, पिग्मी हॉग और बंगाल फ़्लोरिकन पक्षी जैसी दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण और व्यवहार्य प्राकृतिक आवास प्रदान करता है। सबसे महत्वपूर्ण शेष प्राकृतिक क्षेत्रों में से एक के रूप में, जहाँ बड़ी संख्या में लुप्तप्राय प्रजातियाँ अभी भी जीवित हैं, मानस का भारतीय उपमहाद्वीप के संरक्षित क्षेत्रों के भीतर असाधारण महत्व है।


मानदंड (vii):
मानस को न केवल इसकी समृद्ध जैव विविधता के लिए, बल्कि इसके शानदार दृश्यों और प्राकृतिक भूदृश्य के लिए भी पहचाना जाता है। मानस पूर्वी हिमालय की तलहटी में स्थित है। अभयारण्य की उत्तरी सीमा भूटान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगी हुई है, जहाँ भूटान के ऊँचे पहाड़ स्थित हैं। यह विशाल मानस नदी के दोनों ओर फैला हुआ है और इसके पूर्व और पश्चिम में आरक्षित जंगल हैं। पेड़ों से ढकी पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में ऊबड़-खाबड़ रास्तों से नीचे बहती यह उग्र नदी, और साथ ही जलोढ़ घास के मैदान और उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों की निस्तब्धता, एक अद्वितीय निर्जन वन अनुभव प्रदान करती है।


मानदंड (ix):
मानस-बेकी प्रणाली, एक प्रमुख नदी प्रणाली है जो इस स्थल में बहती है और नीचे की ओर ब्रह्मपुत्र नदी में जाकर मिल जाती है। भारी वर्षा, चट्टान की नाजुक प्रकृति और जल ग्रहण क्षेत्रों की खड़ी ढलानों के परिणामस्वरूप, मानस और अन्य नदियाँ, तलहटी से भारी मात्रा में गाद और चट्टान के मलबे को साथ लाती हैं। इसके परिणामस्वरूप जलोढ़ सीढ़ीनुमा आकृति का निर्माण होता है, जिनमें एकत्रित चट्टानों की गहरी परतों और, उत्तर में भाबर क्षेत्र द्वारा चिह्नित, रेतीली दुम्मट और सड़े पत्तों से ढके मलबे की परत शामिल है। दक्षिण में तराई क्षेत्र में, सतह के नीचे जल कुंडों सहित, विशुद्ध जलोढ़ मिट्टी का जमाव शामिल है, जहाँ भौम जलस्तर सतह के समीप होता है। मानस-बेकी प्रणाली में सम्‍मिलित क्षेत्र मानसून के दौरान जलमग्न हो जाता है, लेकिन ढलान के कारण बाढ़ अधिक समय तक नहीं रहती है। मानसून और नदी प्रणाली के कारण, भाबर सवाना अथवा घास के मैदान, तराई क्षेत्र, दलदली भूमि और नदी के तटीय क्षेत्र जैसे चार प्रमुख भूगर्भीय आवासों का निर्माण होता है। गतिशील पारिस्थितिकी तंत्र प्रक्रियाओं के कारण मोटे तौर पर, सदाबहार वन, मिश्रित नम और शुष्क पर्णपाती वन और जलोढ़ घास के मैदान जैसी तीन प्रकार की वनस्पति यहाँ उगती है। अनुक्रम में शुष्क पर्णपाती वन प्रारंभिक चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं जो निरंतर बाढ़ से नवीनीकृत होते रहते हैं और, जल प्रणाली से दूर, नम पर्णपाती वनों द्वारा प्रतिस्थापित होते रहते हैं, जो बदले में अर्ध सदाबहार वनों द्वारा प्रतिस्थापित होते हैं। मानस की वनस्पति में, इसकी उच्च प्रजनन क्षमता और शाकभक्षी जानवरों द्वारा प्राकृतिक रूप से चराई किए जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप, पुनर्जीवित होने और आत्मपोषण करने की अत्यधिक क्षमताएँ हैं।


मानदंड (x):
मानस वन्यजीव अभयारण्य भारत की 22 सबसे अधिक लुप्तप्राय स्तनपायी प्रजातियों का निवास स्थान है। कुल मिलाकर, लगभग 60 स्तनपायी प्रजातियाँ, 42 सरीसृप प्रजातियाँ, 7 उभयचर और 500 पक्षी प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 26 प्रजातियों के लिए वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक खतरा है। इनमें से हाथी, बाघ, बड़ा एक सींग वाला गैंडा, धूमिल तेंदुआ, स्लॉथ भालू और अन्य प्रजातियाँ मुख्य रूप से शामिल हैं। यहाँ की जंगली भैंस की आबादी भारत में पाई जाने वाली इस प्रजाति की शायद एकमात्र शुद्ध नस्ल है। यह पिग्मी हॉग, हिसपिड खरगोश और स्वर्ण लंगूर के साथ-साथ लुप्तप्राय बंगाल फ़्लोरिकन जैसी स्थानिक प्रजातियों का भी आश्रयस्थल है। प्राकृतिक आवास और वनस्पति की विविधतता के कारण भी, यहाँ पौधों में भी उच्च विविधता दिखाई देती है जिसमें 89 पेड़ प्रजातियाँ, 49 झाड़ियाँ, 37 छोटी झाड़ियाँ, 172 जड़ी-बूटियाँ और 36 बेलें शामिल हैं। ऑर्किड की पंद्रह प्रजातियाँ, फ़र्न की 18 प्रजातियाँ और घास की 43 प्रजातियाँ भी यहाँ पाई जाती हैं, जो कई सारी, खुर वाली स्तनपायी प्रजातियों को महत्वपूर्ण खुराक प्रदान करती हैं।


समग्रता


यह एक वन्यजीव अभयारण्य है, जो प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में स्थल की समग्रता को बनाए रखने पर केंद्रित है। यह एक बड़े राष्ट्रीय उद्यान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी सीमाओं का स्पष्ट रूप से सीमांकन और निरिक्षण किया जाता है। मानस वन्यजीव अभयारण्य की उत्तरी सीमा भूटान के रॉयल मानस नेशनल पार्क द्वारा दृढ़तापूर्वक घिरी है और पूर्व और पश्चिम में मानस बाघ आरक्षित क्षेत्र (टाइगर रिज़र्व) द्वारा कम प्रभावी रूप से घिरी है। अतएव इसके संरक्षण की प्रभावशीलता हेतु सीमा पार सहयोग महत्वपूर्ण है।


संरक्षण और प्रबंधन आवश्यकताएँ


इस स्थल के लिए, जिसके छः राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पदनाम हैं (विश्व विरासत स्थल, राष्ट्रीय उद्यान, बाघ आरक्षित क्षेत्र (कोर), जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (राष्ट्रीय), हाथी आरक्षित क्षेत्र (कोर) और महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र), भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, भारतीय वन अधिनियम, 1927, और असम वन नियमन 1891 के प्रावधानों के तहत सबसे अधिक कानूनी संरक्षण और मजबूत विधायी ढांचा है। स्थल को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर सरकार के समर्थन के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संगठनों की भागीदारी का लाभ मिलता है।


स्थल का प्रबंधन असम वन विभाग / बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद के प्रशासन के तहत किया जाता है। अतिक्रमण, चराई और अवैध शिकार के खतरों से निपटने के लिए प्रभावी रूप से गश्त लगाने और कानूनों को लागू करने की क्षमता के साथ एक व्यापक और अनुमोदित प्रबंधन योजना की आवश्यकता है। पर्याप्त आधारभूत संरचनाओं, कुशल कर्मचारी वर्ग और स्थल की निगरानी की व्यवस्था का प्रावधान भी मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। प्राकृतिक आवास और आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान और निगरानी, और वन्यजीव आबादी की पुनःप्राप्ति, स्थल के सार्वभौमिक मूल्य का पता लगाने और उसे कायम रखने के लिए विशेष अनिवार्यताएँ हैं । इस जगह जंगली चावल की 400 किस्में पाई जाती हैं, जिसके कारण, खाद्य सुरक्षा हेतु, यहाँ की जैव विविधता के मूल्यों का प्रबंधन महत्वपूर्ण है।


प्रभावी पर्यटन सुविधाओं, आगंतुकों के लिए जानकारी और व्याख्या का प्रावधान भी पार्क के प्रबंधन हेतु प्राथमिकता है। स्थल के दीर्घकालिक प्रबंधन के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन प्रदान करने के लिए एक स्थायी वित्तपोषण तंत्र को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। आसपास के बफ़र ज़ोन को बहु उपयोग के आधार पर प्रबंधित किया जाता है और इन क्षेत्रों के प्रबंधन में संरक्षण और संसाधन निष्कर्षण के बीच एक संतुलन की आवश्यकता है। स्थल के संरक्षण के प्रयासों में, आरक्षित क्षेत्र (रिज़र्व) के समीपवर्ती क्षेत्रों का उपयोग करने वाले और वहाँ निवास करने वाले स्थानीय समुदायों की भागीदारी आवश्यक है, और स्थल के संरक्षण के हित में उनकी संलग्नता और जागरूकता को बढ़ाना एक महत्वपूर्ण प्रबंधन उद्देश्य है। इस स्थल के विस्तार किए जाने की संभावना है ताकि यह उस राष्ट्रीय उद्यान की सीमाओं के साथ संलग्न हो सके जिसका यह कोर हिस्सा है। भारतीय और भूटानी मानस टाइगर संरक्षण भूदृश्य में एक सीमा पार विश्व विरासत स्थल की स्थापना से प्राकृतिक आवास और वन्यजीव संख्या के प्रबंधन में अधिक समन्वय और सहयोग हो सकेगा और साथ ही संरक्षण को भी मजबूती मिलेगी।

मानस वन्यजीव अभयारण्य असम राज्य में स्थित है। यह हिमालय की तलहटी में, ब्रह्मपुत्र नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी, मानस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। अभयारण्य का उत्तरी भाग एक घने, मिश्रित अर्द्ध-सदाबहार, सदाबहार, और गीले-पतझड़ वन क्षेत्र में स्थित है। संरक्षित क्षेत्र के दक्षिणी भाग में घास का मैदान है। इन सभी वनों और मैदानों में, बड़ी संख्या में वनस्पति और जीव-जंतुओं की लुप्तप्राय और और स्थानिक प्रजातियों के प्राकृतिक आवास हैं। 1985 में यूनेस्को ने अभयारण्य को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया था।

 
मानस एक सीमा पार नदी है जो दक्षिणी भूटान और भारत के बीच हिमालय की तलहटी में बहती है। वर्षा और नदी प्रणाली के कारण यहाँ भाबर घास के मैदान (सवाना), तराई क्षेत्र, दलदली भूमि और नदीतट भूमि नामक चार प्रमुख भूगर्भीय प्राकृतिक आवास हैं। इन प्राकृतिक आवासों में विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है जिनमें वन, तटीय और दलदली जंगन हैं जिनके बीच बाँस और बेंत के पेड़ उगते हैं।


नदी घाटी की वनस्पति, भूटान के रॉयल मानस राष्ट्रीय उद्यान और उससे लगे हुए भारत के मानस वन्यजीव अभयारण्य नामक दो प्रमुख अभयारण्यों में रहने वाले प्राणियों का पोषण करती है। यह क्षेत्र उन जानवरों और पक्षियों का प्राकृतिक आवास है जो इस क्षेत्र के लिए स्थानिक हैं और उन जानवरों के लिए भी जो एक समय पर स्वतंत्र रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के पूरे उत्तरी मैदानी भागों में विचरते थे, लेकिन मानवीय गतिविधियों के कारण बेघर हो चुके हैं। भारतीय गैंडा एक ऐसा ही जानवर है।


अभयारण्य में हाथी, बाघ, धूमिल तेंदुए, स्लॉथ भालू, और बारहसिंगे भी रहते हैं। यहाँ पाई जाने वाली जंगली भैंस की आबादी, भारत में पाई जाने वाली इस प्रजाति की शायद एकमात्र शुद्ध नस्ल है। यह पिग्मी हॉग, हिस्पिड खरगोश और स्वर्ण लंगूर जैसी स्थानिक प्रजातियों का भी आश्रयस्थल है। अभयारण्य में बड़ी संख्या में पक्षी, सरीसृप और उभयचर रहते हैं, जिसमें लुप्तप्राय बंगाल फ़्लोरिकन भी शामिल है। यहाँ की वनस्पति भी अत्यधिक विविधतापूर्ण है जिसमें पेड़, झाड़ियाँ, जड़ी-बूटियाँ, बेलें, और घनी छोटी झाड़ियाँ, आदि शामिल हैं। इनके अलावा, यहाँ उगने वाली घास यहाँ निवास करने वाले कई प्रकार के खुर वाले स्तनधारियों को महत्वपूर्ण भोजन प्रदान करती है।


अभयारण्य को बाढ़ की समस्या का सामना करना पड़ता है क्योंकि ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियाँ अपने तटों से बाहर बहने तथा अपनी दिशा बदलने के लिए जानी जाती हैं।


पशुओं और पौधों की आबादी के डेटाबेस का निर्माण और अनुसंधान जैसे उपाय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में मदद कर रहे हैं।