खजुराहो के मंदिरों का निर्माण चंदेल राजवंश के शासनकाल में किया गया था। यह राजवंश 950 तथा 1050 के बीच अपने चरमोत्कर्ष पर था। वर्तमान में केवल 20 मंदिर शेष हैं जो तीन अलग-अलग समूहों में विभाजित हैं और हिंदू और जैन, इन दो अलग-अलग धर्मों से संबंधित हैं। ये वास्तुकला और मूर्तिकला के बीच एक बढ़िया सामंजस्य बनाए रखते हैं। कंदरिया के मंदिर को काफ़ी बड़ी मात्रा में मूर्तियों से सजाया गया है जो कि भारतीय कला की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक हैं।
खजुराहो का स्थल चंदेल राजाओं के अधिकार में हुआ करता था जिन्होंने मध्य भारत पर 9वीं से 13वीं शताब्दी तक शासन किया था। खजुराहो चंदेल शासकों की सांस्कृतिक राजधानी थी जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक राजधानी के लगातार स्थानांतरण के बावजूद यह फलता-फूलता रहा। शुरू में स्मारकों के इस समूह में कुल चौरासी मंदिर थे जिनमें से वर्तमान में केवल पच्चीस ही शेष हैं। खजुराहो के स्मारक हिंदू और जैन मंदिरों का एक समूह है। व्यापक रूप से अपनी शानदार संरचनाओं और बहुविवादित कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध खजुराहो को यूनेस्को द्वारा वर्ष 1986 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था।
खजुराहो के मंदिरों को मंदिर वास्तुकला की नागर शैली के कुछ सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में से एक माना जाता है जिसमें गर्भगृह, छोटी ड्योढ़ी (अंतराल), एक बड़ा हॉल (महामंडप), एक सभागृह (मंडप) और एक प्रवेशद्वार मंडप (अर्धमंडप) शामिल हैं।
मंदिर की दीवारों पर कामुक मूर्तियों के अतिरिक्त दैनिक जीवन के दृश्यों को दर्शाने वाली मूर्तियाँ भी हैं। यह कहा जा सकता है कि खजुराहो की मूर्तियों में महिलाओं का अत्यधिक चित्रण है; जैसे कि अपनी आँखों में सुरमा लगाती हुई महिला, बच्चे के साथ खेलती हुई महिला, अपने पैर में चुभा हुआ काँटा निकालती हुई महिला, अपने बालों में कंघी करती हुई महिला, और इसी तरह के अन्य निरूपण।
मंदिरों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है : पश्चिमी समूह, पूर्वी समूह तथा दक्षिणी समूह।
पश्चिमी समूह : यही वह पश्चिमी समूह है जिसे दुनियाभर में कंदरिया महादेव मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, चौसठ योगिनी एवं चित्रगुप्त मंदिर के कारण जाना जाता है। इनकी गिनती विशिष्ट खजुराहो मंदिर के कुछ सर्वश्रेष्ठ निरूपणों में की जाती है। इनमें से कंदरिया महादेव (102 फ़ीट ऊँचा और 66 फ़ीट चौड़ा) मंदिर के गर्भगृह में एक लिंग स्थापित है। यह मंदिर उसके अंदरूनी भागों पर बारीकी से तराशकर चित्रित किए गए देवी-देवताओं के लिए प्रसिद्ध है जबकि इसके बाहरी भागों पर कामुक मूर्तियों को तराशा गया है।
पूर्वी समूह : इस समूह में जैन मंदिरों की बहुलता है जिनमें से पार्श्वनाथ मंदिर सबसे बड़ा है। शुरू में यह मंदिर आदिनाथ को समर्पित था, परंतु बाद में इसमें पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित कर दी गई थी। पार्श्वनाथ मंदिर के निकट घंटाई मंदिर और आदिनाथ मंदिर स्थित हैं। आदिनाथ मंदिर उन मंदिरों में से एक है जिसका निर्माण काफ़ी बाद में हुआ था जिसके परिणामस्वरूप इस मंदिर की मूर्तियाँ अधिक सुसज्जित और बारीकी से तराशी गई हैं।
इस समूह में हिंदुओं के कई देवी-देवताओं के मंदिरों में वामन, ब्रह्मा और जावरी के मंदिर भी शामिल हैं। खजुराहो का ब्रह्मा मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जो पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना हुआ है और इसके गर्भगृह में चतुर्मुखी लिंग स्थित है।
दक्षिणी समूह : मंदिरों का दक्षिणी समूह अन्य समूहों से थोड़ा दूर स्थित है और इसमें दुलादेव मंदिर, चतुर्भुज मंदिर और बीजामंडल मंदिर शामिल हैं। भगवान शिव को समर्पित दुलादेव मंदिर में अप्सराओं को दर्शाने वाली कुछ बेहतरीन मूर्तियाँ हैं और यह दक्षिणी समूह के मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर है।
खजुराहो में सालभर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। मध्य प्रदेश राज्य सरकार भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हर साल प्रसिद्ध खजुराहो नृत्य महोत्सव का आयोजन करती है।
© अनीता रिबार्स्का
रचनाकार : अनीता रिबार्स्का
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