पहले के समय में महाराजाओं के लिए बत्तखों का शिकार करने का यह क्षेत्र, अफ़गानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, चीन और साइबेरिया के जलीय पक्षियों की बड़ी संख्या के लिए प्रमुख शीतकालीन आश्रय स्थलों में से एक है। उद्यान में पक्षियों की कुछ 364 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं जिसमें दुर्लभ साइबेरियाई सारस भी शामिल है।
राजस्थान राज्य में स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पेलिआर्कटिक प्रवासी जलपक्षियों के लिए शीत ऋतु में एक महत्त्वपूर्ण आश्रय स्थल है तथा इसे प्रजनन करने वाले अप्रवासी स्थानिक पक्षियों के बड़े जमावड़ों के लिए जाना जाता है। केवल 2,873 हेक्टेयर में फैले हुए घास के मैदानों, वनप्रदेशों, दलदलों और आर्द्रभूमि क्षेत्रों की इस पच्चीकारी में, मानव आबादी से भरे भूदृश्य के भीतर, पेड़-पौधों और वन्यजीव वाले क्षेत्र में, पक्षियों की कुछ 375 प्रजातियों और अन्य प्राणियों को दर्ज किया गया है। ‘पक्षियों की स्वर्गभूमि’ कहलाया जाने वाला यह क्षेत्र एक ऐसी आर्द्रभूमि के प्राकृतिक गड्ढे में विकसित किया गया था जो 19वीं शताब्दी के अंत में बत्तख के शिकार-क्षेत्र के रूप में उपयोग किया जाता था। हालाँकि अब इस क्षेत्र में शिकार बंद हो चुका है और यह 1982 में एक राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया जा चुका है, फिर भी इसका अस्तित्व में रहना उद्यान की सीमा के बाहर मौजूद जलाशय से होने वाली नियमित जल आपूर्ति पर निर्भर करता है। उद्यान के भली-भाँति तैयार किए गए नालों और जलद्वारों की प्रणाली के कारण यहाँ जल के कम-अधिक गहराई वाले क्षेत्र हैं, जिनका उपयोग विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों द्वारा किया जाता है।
इस क्षेत्र के, मध्य एशियाई प्रवासी पक्षियों के हवाई-मार्ग के मध्य में, महत्वपूर्ण रूप से स्थित होने और जल की मौजूदगी के कारण, बत्तखों, कलहंसों, कूटों, हवासीलों और जलपक्षियों के बड़े-बड़े झूंड शीत ऋतु में यहाँ आते हैं। यह उद्यान गंभीर रूप से लुप्तप्राय साइबेरियाई सारस की बड़ी आबादी के लिए एकमात्र शीतकालीन आश्रय स्थल के रूप में जाना जाता था। यह क्षेत्र बड़े धब्बेदार गरुड़ और शाही गरुड़ जैसी अन्य वैश्विक स्तर पर लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए भी शीत ऋतु व्यतीत करने के स्थल के रूप में कार्य करता है। प्रजनन ऋतु के दौरान, बगुलों की 15 प्रजातियों, इबिस, पनकौवों, चम्मचचोंचों, और राजबकों द्वारा निर्मित शानदार बकाशय (बगुलों का प्रजनन-स्थल) दिखाई देते हैं, जिनमें सालाना बारिश अच्छी होने पर 20,000 से अधिक पक्षी बसेरा करते हैं।
मानदंड (x): केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, प्रवासी जलपक्षियों के लिए, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमि है, जहाँ मध्य एशियाई हवाई-मार्ग द्वारा प्रवास करने वाले पक्षी अन्य क्षेत्रों की ओर रवाना होने से पहले जमा होते हैं। इस क्षेत्र को जब विश्व धरोहर सूची में दर्ज किया जा रहा था, तब यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय साइबेरियाई सारस के लिए शीत ऋतु व्यतीत करने वाला स्थल था, और साथ ही, यह बड़ी संख्या में घोंसलों में रहने वाले निवासी पक्षियों के लिए एक प्राकृतिक निवास-स्थान है। इस क्षेत्र में पक्षियों की कुछ 375 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं, जिनमें पाँच गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियाँ, दो लुप्तप्राय प्रजातियाँ और छह असुरक्षित प्रजातियाँ शामिल हैं। उद्यान में पक्षियों की लगभग 115 प्रजातियाँ प्रजनन करती हैं, जिनमें जल पक्षियों की 15 प्रजातियाँ शामिल हैं और इनके द्वारा निर्मित बकाशय इस क्षेत्र के सबसे शानदार बकाशयों में से एक हैं। इस स्थल की प्राकृतिक आवास पच्चीकारी में एक छोटे-से क्षेत्र में, शिकारी पक्षियों की अभिलिखित 42 प्रजातियों सहित, अनेक प्रजातियों के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध है।
यह भारत का एकमात्र ऐसा उद्यान है जो पूरी तरह से 2 मीटर ऊँची चारदीवारी से घिरा हुआ है, जिसके कारण यहाँ किसी भी प्रकार का अतिक्रमण और जैविक बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों की संभावना कम हो जाती है। लेकिन यहाँ बफ़र ज़ोन के होने की कोई संभावना नहीं है। चूँकि केवलादेव के आर्द्रभूमि क्षेत्र प्राकृतिक रूप से निर्मित नहीं हैं, इसलिए वे मानसून और बाहर से पंप किए जाने वाले पानी पर निर्भर करते हैं, जो पारंपरिक रूप से "अजान बाँध" जलाशय द्वारा दिया जा रहा है। इस क्षेत्र में अनियमित वर्षा के कारण उत्पन्न होने वाली पानी की कमी को दूर करने के लिए दो बड़ी जल संसाधन परियोजनाएँ शुरू की गई हैं जिनके कारण इस क्षेत्र में स्थायी जल स्रोतों से पानी पहुँच सकेगा। निकटवर्ती शहर भरतपुर से उत्पन्न वायु और जल प्रदूषण के संभावित प्रभावों पर कुछ चिंता व्यक्त की गई है, लेकिन ये प्रभाव वर्तमान में अज्ञात हैं।
आस-पास के गाँवों में पारिस्थितिक विकास गतिविधियों के माध्यम से उद्यान के भीतर मवेशियों की चराई को कम किया गया है तथा स्थानीय समुदायों को भी संसाधन संरक्षण में भागीदार बनाया गया है, जिसमें आक्रामक विदेशी प्रजातियों को वहाँ से हटाना भी शामिल है। केवलादेव कई आगंतुकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इन आगंतुकों को आस-पास के गाँवों के प्रशिक्षित स्थानीय गाइड साइकिल-रिक्शा में बिठाकर पक्षी दिखाने ले जाते हैं, जो इस क्षेत्र के निवासियों के लिए अतिरिक्त आजीविका का साधन होने के साथ-साथ यहाँ के ध्वनि प्रदूषण को भी कम करने में मदद करता है।
इस उद्यान को घेरने वाले 27 उपाश्रित आर्द्रभूमि क्षेत्रों के लिए हाल में शुरू किए गए संरक्षण कार्यक्रम के कारण, मध्य एशियाई हवाई-मार्ग से पश्चिमी भारत में सर्दी का मौसम बिताने के लिए आने वाले प्रवासी जलपक्षियों का संरक्षण अधिक बेहतर हो गया है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, और भारतीय वन अधिनियम, 1927, के प्रावधानों के तहत इस क्षेत्र को प्रभावी कानूनी संरक्षण प्राप्त है। इस स्थल को स्थानीय समुदायों और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संगठनों के सहयोग से राजस्थान वन विभाग द्वारा प्रबंधित किया जाता है और साथ-ही-साथ इस क्षेत्र के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए प्रबंधन योजना को विकसित किया गया है।
इस क्षेत्र के लिए प्रमुख चुनौतियाँ हैं; पानी की आपूर्ति (मात्रा और गुणवत्ता, दोनों रूप में), आक्रामक वनस्पति (प्रोसोपिस, आइकोर्निया, पस्पालम); और पड़ोसी गाँवों द्वारा इस क्षेत्र का अनुचित उपयोग। प्रबंधन योजना के माध्यम से इन मुद्दों को निपटाया जा रहा है, और जल संकट का स्थायी समाधान प्राप्त करने के लिए दो परियोजनाओं को विकसित किया गया है। आस-पास की आबादी के सहयोग से आक्रामक विदेशी प्रजातियों को हटा दिया गया है। उद्यान को घेरने वाली 2 मीटर ऊँची दीवार के कारण अवैध शिकार या प्रदूषण के खतरे वस्तुतः समाप्त हो गए हैं और इसके कारण उद्यान के भीतर कोई अतिक्रमण या बस्तियाँ नहीं हैं। निकटवर्ती भरतपुर शहर और राष्ट्रीय राजमार्ग से आने वाले ध्वनि प्रदूषण का इस क्षेत्र पर ना के बराबर असर पड़ा है। भारत में पर्यावरण संबंधी सख्त कानूनी नियमों के होने के कारण सभी प्रस्तावित विकासात्मक गतिविधियों को, पर्यावरण-संबंधी सख्त मूल्यांकन प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भारत के राजस्थान राज्य में भरतपुर में स्थित, एक पक्षी अभयारण्य है। इसे पहले भरतपुर घना पक्षी अभयारण्य के रूप में जाना जाता था। इसे पक्षियों के, दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण प्रजनन और पोषण स्थलों में से एक के रूप में पहचान मिली है। उद्यान का कुल क्षेत्रफल उनतीस किलोमीटर है। यह एक मानव निर्मित राष्ट्रीय उद्यान है और यह पक्षियों की तीन सौ छियासठ प्रजातियों, फूलों की तीन सौ उन्नासी प्रजातियों, मछलियों की पचास प्रजातियों, साँपों की तेरह प्रजातियों, उभयचर की सात प्रजातियों, कछुओं की सात प्रजातियों तथा छिपकलियों की पाँच प्रजातियों का निवास-स्थान है।
केवलादेव बत्तखों का शाही शिकार-क्षेत्र हुआ करता था, लेकिन 1972 में इन अधिकारों को हटा दिया गया। 1981 में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया।
स्थानीय रूप से घना के रूप में जाना जाने वाला यह राष्ट्रीय उद्यान सवाना और घासभूमि जैसे अन्य पारिस्थितिक तंत्रों से युक्त एक आर्द्रभूमि है। यह अभयारण्य 'बर्ड पैरडाइज़' (पक्षियों की स्वर्गभूमि) के नाम से प्रसिद्ध है। हर साल शीत ऋतु में प्रजनन करने के लिए हज़ारों जलपक्षियों का भारतीय उपमहाद्वीप में आगमन होता है। जलपक्षी अलग-अलग प्रजनन स्थलों के लिए रवाना होने से पहले यहाँ जमा होते हैं। केवलादेव अभयारण्य की खास बात यह है कि यह लुप्तप्राय साइबेरियाई सारस के लिए एकमात्र जाना-माना शीतकालीन आश्रय स्थल है। हर साल ये पक्षी साइबेरिया से भरतपुर आने के लिए 6000 किमी. की दूरी तय करते हैं जिसमें अब जल-संबंधी बदलावों के कारण कमी आ गई है। उद्यान को यूरेशियाई मार्श हैरियर (पक्षी) के सबसे बड़े बसेरे के रूप में भी पहचान मिली है। यह देखा गया है कि अनुकूल स्थितियों में एक सौ पचास से अधिक यूरेशियाई मार्श हैरियर अभयारण्य की घासभूमि में बसेरा लेते हैं।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान एक रामसर आर्द्रभूमि स्थल भी है, लेकिन जल संबंधी प्रणाली में आए बदलावों के कारण उद्यान के पारिस्थितिक तंत्र में बाधा उत्पन्न हुई है, जिससे प्रवासी पक्षियों की संख्या में गिरावट आई है। इस बदलाव ने राजस्थान राज्य में पर्यटन को भी प्रभावित किया है। इस क्षेत्र के आर्द्रभूमि होने के कारण अभयारण्य के लिए प्रवाही जल की आपूर्ति नितांत आवश्यक है। वर्तमान में उद्यान को 'अजान बाँध’ जलाशय और वर्षा ऋतु में होने वाली बारिश से पानी मिलता है।
यह उद्यान लंबे समय से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों प्रकार के आगंतुक आते हैं। छुट्टियों के मौसम में बड़ी संख्या में हमारे देश के पर्यटक इस उद्यान में आते हैं। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक जाड़े के महीने में इस स्थल पर आते हैं।
यह स्थल पक्षी देखने के लिए एशिया के सबसे अच्छे स्थलों में से एक है और साथ-ही-साथ पक्षी-विज्ञानियों और पशुविद्याविज्ञों के लिए एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन केंद्र भी है।
© एम & जी थेरिन-वीएज़
रचनाकार: एम & जी थेरिन-वीएज़
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