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हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली

  • हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली
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1570 में बनवाया गया यह मकबरा भारतीय उपमहाद्वीप का पहला उद्यान-मकबरा है जिसके कारण इसका विशेष सांस्कृतिक महत्व है। इसके निर्माण ने कई प्रमुख संरचनाओं के निर्माण-कार्यों को प्रेरित किया है, जो ताजमहल के निर्माण के साथ अपने चरम पर पहुँचे।

उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य


संक्षिप्त संश्लेषण 


दिल्ली में स्थित हुमायूँ का मकबरा, भव्य राजवंशीय मकबरों में पहला मकबरा है,जो उस मुगल वास्तुशिल्पीय शैली के पर्याय बन गए थे जो 80 साल बाद ताजमहल के निर्माण के साथ अपने चरम पर पहुँच गई थी। हुमायूँ का मकबरा 27.04 हेक्टेयर के परिसर में खड़ा है जिसमें 16वीं शताब्दी के अन्य समकालीन उद्यान-मकबरे भी स्थित हैं, जैसे कि नीला गुंबद, ईसा खान, बू हलीमा, अफ़सरवाला, और नाई के मकबरे, और अरब सराय नामक वह परिसर जहाँ हुमायूँ का मकबरा बनाने के लिए नियुक्त किए गए कारीगर निवास करते थे।

हुमायूँ का मकबरा, हुमायूँ के बेटे, महान सम्राट अकबर से संरक्षण में 1560 के दशक में बनवाया गया था। इस्लामी दुनिया में इससे पहले बनवाए गए सभी मकबरों की तुलना में कहीं अधिक भव्य, इस उद्यान-मकबरे का निर्माण करने के लिए फ़ारसी और भारतीय कारीगरों ने एक साथ काम किया। हुमायूँ का मकबरा चारबाग (कुरान के स्वर्ग की चार नदियों को दर्शाने वाला चार भागों वाला उद्यान) का एक उदाहरण है जिसके जलाशय नहरों से जुड़े हुए हैं। दक्षिण और पश्चिम के ऊँचे दरवाज़ों से उद्यान में प्रवेश किया जाता है, और पूर्वी और उत्तरी दीवारों के केंद्र में मंडप स्थित हैं।

मकबरा एक ऊँचे, चौड़े सीढ़ीदार चबूतरे पर बना हुआ है जिसके चारों तरफ़ पर दो कक्षों जितने गहरे मेहराबदार खाने बने हैं। इसकी अनियमित अष्टभुजाकार योजना है जिसमें चार लंबे किनारे हैं और कोनों को सममितीय ढलान का रूप दिया गया है। इसपर संगरमरमर से आच्छादित 42.5 मीटर ऊँचा दोहरा गुंबद है जिसकी दोनों ओर खंभेदार छत्रियाँ हैं और केंद्रीय छत्रियों के गुंबद चमकती हुईं मिट्टी की टाइलों से सजे हुए हैं। प्रत्येक किनारे के मध्य में बड़े मेहराबदार द्वार हैं और अग्रभित्ति में कई छोटे मेहराबदार द्वार बने हुए हैं।


मकबरे का आंतरिक भाग एक बड़ा अष्टभुजाकार कक्ष है जिसकी मेहराबदार छत में बने कक्ष गलियारों द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं। यह अष्टभुजाकार योजना दूसरी मंजिल पर भी दोहराई गई है। इस संरचना का तराशा हुआ पत्थर लाल बलुआ पत्थर से मढ़ा हुआ है और इसके किनारों पर सफ़ेद और काले रंग के संगमरमर का जड़ाई का काम है। 

हुमायूँ के उद्यान-मकबरे को ‘मुगलों का शयनागार’ भी कहा जाता है क्योंकि इसके कक्षों में मुगल परिवार के 150 से अधिक सदस्यों को दफ़नाया गया है।

यह मकबरा एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुरातत्वीय परिवेश में खड़ा है क्योंकि यह 14वीं शताब्दी के सूफ़ी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास स्थित है। चूँकि एक संत की कब्र के पास दफ़नाया जाना शुभ माना जाता है, इसलिए सात शताब्दियों से यहाँ मकबरों का निर्माण होने के कारण यह क्षेत्र भारत में मध्ययुगीन इस्लामी इमारतों की सबसे घनी इकाई बन गया है।

मानदंड (ii):हुमायूँ का उद्यान-मकबरा एक विशाल पैमाने पर बनाया गया है जिसके डिज़ाइन और उद्यान की भव्यता के कारण इस्लामी दुनिया में इस मकबरे की कोई मिसाल नहीं है। यहाँ पहली बार महत्वपूर्ण वास्तुशिल्पीय नवीनता का समावेश किया गया था जिसमें चार-बाग का निर्माण शामिल है जो कि पवित्र कुरान में किए गए जन्नत के वर्णन से प्रेरित उद्यान परिसर है। इस संरचना की विशालता भविष्य में मुगलों की शाही परियोजनाओं की मुख्य विशेषता बन गई,जो ताजमहल के निर्माण साथ अपने चरम पर पहुँची।
मानदंड (iv): इस परिसर के भीतर हुमायूँ का मकबरा और 16वीं शताब्दी के अन्य समकालीन उद्यान-मकबरे, मुगलकालीन उद्यान-मकबरों की एक अनूठी इकाई प्रस्तुत करते हैं। इस्लामी उद्यान-मकबरों में इस संरचना की भव्यता, उसका निरूपण और उसका उद्यान परिसर अनूठे हैं। हुमायूँ का मकबरा भारत का पहला महत्वपूर्ण नमूना है, और विशेषतः यह शक्तिशाली मुगल राजवंश का प्रतीक है जिसने उपमहाद्वीप के अधिकतर हिस्सों को एक में जोड़ दिया था।


समग्रता


इस अंकित संपत्ति के भीतर हुमायूँ के मकबरे का परिसर शामिल है, जिसमें प्रवेशद्वार, मंडप और हुमायूँ के मकबरे से पहले निर्मितअन्य संरचनाएँ हैं, जैसे कि नाई का मकबरा, नीला गुंबद और उसका उद्यान परिसर, ईसा खान का उद्यान मकबरा और 16वीं शताब्दी की अन्य समकालीन संरचनाएँ, जैसे कि बू हलीमा का उद्यान-मकबरा और अफ़सरवाला उद्यान-मकबरा। ये सभी विशेषताएँ क्षेत्र के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य की पूरी तरह संपुष्टि करती हैं। परिसर में मौजूद मकबरों की कई वर्षों से प्रतिष्ठा बनी हुई है और इसलिए उनका मूल रूप और उद्देश्य बरकरार रहा है। शहरी परिदृश्य की पद्धति का पालन करते हुए हाल में चलाए गए संरक्षण कार्यों का उद्देश्य इस विशिष्टता को बनाए रखना है। इस पद्धति ने मुगल भवन-निर्माताओं द्वारा इस्तेमाल की गईं समकालीन इमारतों की शिल्प परंपराओं को पुनर्जीवित करते हुए भौतिक संरचना के संरक्षण को सुनिश्चित किया और उसका महत्व बढ़ा दिया।

प्रामाणिकता  


हुमायूँ के मकबरे की प्रमाणिकता यहाँ के मकबरे, अन्य संरचनाओं और उद्यान के कारण है जिनके मूल रूप और डिज़ाइन, सामग्री और परिवेश को बनाए रखा गया है।
मकबरा और उसके आसपास की संरचनाएँ काफ़ी हद तक अपनी मूल स्थिति में बनी हुई हैं और हस्तक्षेप न्यूनतम और उच्च दर्जे के रहे हैं। इमारतों में होने वाले संरक्षण कार्यों में पारंपरिक, चूने के गारे जैसी, सामग्री, निर्माण उपकरण और तकनीकों के उपयोग पर ज़ोर दिया जाता है। प्रामाणिकता को बनाए रखने के लिए, विशेषतः छत से कंक्रीट की परतों जैसी 20वीं सदी की सामग्री को हटाकर उसके स्थान पर चूना-कंक्रीट का उपयोग करने, निचले कक्षों से सीमेंट के पलस्तर को हटाकर उसके स्थान पर मूल पैटर्न में चूने के गारे का उपयोग करने और निचले चबूतरे से कंक्रीट हटाकर पत्थर की मूल फ़र्श को पहले जैसी स्थिति में लाने जैसे अन्य प्रयास भी शामिल हैं। परिसर के सभी उद्यान-मकबरों में इसी तरह की संरक्षण पद्धति का उपयोग किया जा रहा है।


सुरक्षा तथा प्रबंधन संबंधी आवश्यकताएँ

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा प्रबंधित किए जाने वाले अन्य स्थलों की तरह इस स्थल को विभिन्न विधानों के ज़रिए पर्याप्त संरक्षण प्राप्त है; प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 और नियम 1959, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन और प्रमाणीकरण) अधिनियम 2010, दिल्ली नगर निगम अधिनियम 1957, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894, दिल्ली शहरी कला आयोग अधिनियम 1973, शहरी भूमि (सीलबंदी और विनियमन) अधिनियम 1976, पर्यावरण प्रदूषण अधिनियम, 1986, इनमें से कुछ विधान हैं। 1997 से आगा खान सांस्कृतिक न्यास की साझेदारी में इस मकबरे और उसके उद्यानों पर संरक्षण परियोजना के अंतर्गत ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। संरक्षण परियोजना के पहले चरण (1997-2003) में परिसर के अंदर फैले हुए उद्यानों में बहते पानी की स्थिति को पहले जैसा कर दिया गया तथा मकबरे और 2007 से अन्य सटी हुईं संरचनाओं का संरक्षण कार्य हाथ में लिया गया है।

बहता पानी मुगल चार-बाग का एक अनिवार्य तत्व था और हुमायूँ के मकबरे में भूमिगत टेराकोटा पाइप, नहरें (एक्वाडक्ट), फव्वारे, जल वाहिकाएँ उद्यान के कुछ मुख्य तत्व थे। इसके अभिलेखन के बाद से ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) – आगा खान ट्रस्ट फ़ॉर कल्चर (एकेटीसी) के बहुविषयक दल द्वारा परिपूर्ण पुरातत्वीय जाँच, अभिलेखीय अनुसंधान और प्रलेखन के आधार पर उद्यान में मुख्य संरक्षण कार्य चलाए गए, जो उद्यान में बहते पानी की स्थिति के पहले जैसे हो जाने पर समाप्त हुए। 

उच्च शिल्प-कौशल की उपलब्धता यह सुनिश्चित करती है कि मुख्य रूप से आधुनिक सामग्री को हटाकर संरचना का महत्व कायम बना रहे। एएसआई के महानिदेशक, एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक, एएसआई के क्षेत्रीय निदेशक, निदेशक (संरक्षण) और अधीक्षक पुरातत्ववेत्ता, एएसआई दिल्ली सर्किल, से युक्त मुख्य समिति, आगा खान ट्रस्ट फ़ॉर कल्चर द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे सभी चालू कार्यों का निरीक्षण करती है। इसके अलावा, संरक्षण कार्यों का निरीक्षण अलग-अलग तौर पर नियमित रूप से किया जाता है।  
70 एकड़ में फैली हुई निकटवर्ती सुंदर नर्सरी और उसमें खड़े मुगल स्मारकों में आगंतुकों को प्रवेश करने की अनुमति प्रदान करने वाले अनुबंधों सहित, सहभागी प्रबंधन योजना का कार्यान्वयन, प्रबंधन प्रणाली के दीर्घकालीन परिचालन के लिए महत्वपूर्ण होगा। विशेष रूप से आगंतुकों की संख्या में हुई उल्लेखनीय वृद्धि को देखते हुए, हुमायूँ के मकबरे की अतिरिक्त सुरक्षा आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। आगंतुक प्रबंधन के लिए व्याख्या केंद्र जैसी मूलभूत सुविधाओं के संभावित विकास हेतु दिशानिर्देशों का निर्दिष्ट किया जाना भी ज़रूरी है।
उत्तर में कई सौ एकड़ में फैली हरियाली सहित, इमारत के भौतिक परिवेश के कारण, क्षेत्र के बफ़र ज़ोन में स्थित अतिरिक्त इमारतों का भी संरक्षण हुआ है। इनमें पास के सुंदरवाला और बताशेवाला परिसरों में बने उद्यान-मकबरे शामिल हैं। ये इमारतें इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अंकित संपत्ति के क्रमिक विकास को समझने में सहायता करती हैं। इसलिए बफ़र ज़ोन में सुरक्षा और प्रबंधन संबंधी पर्याप्त उपायों को व्यवस्थित रूप से कार्यान्वित किया जाना ज़रूरी है।
 

हुमायूँ का मकबरा दूसरे मुगल बादशाह, हुमायूँ, का मकबरा है। इसे एक फ़ारसी वास्तुशिल्पकार, मिराक मिर्ज़ा घियास और उनके बेटे सय्यद मुहम्मद द्वारा बनाया गया था। मकबरे के निर्माण में राजस्थान के धौलपुर से प्राप्त लाल बलुआ पत्थर और अरावली पर्वतमाला से प्राप्त सफ़ेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। यह भारत में दक्षिणी दिल्ली के निज़ामुद्दीन क्षेत्र में स्थित है। हुमायूँ के मकबरे जैसा डिज़ाइन और उद्यान परिसर भारतीय उपमहाद्वीप में पहले कभी नहीं देखा गया था, जिसके कारण 1993 में हुमायूँ का मकबरा विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया गया। इस इमारत के निर्माण से, ताजमहल जैसी भावी मुगल संरचनाओं के लिए मानदंड निर्धारित हुए।

मकबरे का निर्माण हुमायूँ की पत्नी बेगा बेगम (जिन्हें हाजी बेगम भी कहा जाता है) द्वारा करवाया गया था, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने भवन के निर्माण पर पंद्रह लाख रुपये खर्च किए थे। इसका निर्माण बादशाह अकबर के संरक्षण में पूरा हुआ था। इस परिसर में हुमायूँ, उनकी पत्नी बेगा बेगम और दारा शिकोह (बादशाह शाहजहाँ का बेटा) की कब्रें हैं।

मकबरा यमुना नदी के बगल में और आज हम जिसे पुराना किला कहते हैं, उसके निकट है। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसी मकबरे में शरण ली थी। बाद में उन्हें अंग्रेज़ों ने पकड़ लिया और उन्हें निर्वासित करके रंगून भेज दिया था।

मुगल शासनकाल में भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी वास्तुकला की शुरुआत हुई। हुमायूँ का मकबरा फ़ारसी वास्तुकला का ही एक उदाहरण है जिसकी विशेषताओं में सामने की ओर का घुमावदार आला, गुंबद की आकृति, और आंतरिक भाग में कमरों की व्यवस्था शामिल है। इसमें छतरियों जैसे भारतीय वास्तुकला के कई तत्व भी शामिल हैं।

हुमायूँ का मकबरा एक चबूतरे पर बना है और यह भारत में दोहरे गुंबद, यानी दो ढाँचों वाले गुंबद का पहला उदाहरण है। ऐसा कहा जाता है कि मुख्य मकबरे को बनवाने में आठ साल से अधिक समय लग गया था और इसे उद्यान के ठीक केंद्र में बनाया गया था। उद्यान को चार भागों में विभाजित किया गया है और इसमें उद्यानपथ और दो जल वाहिकाएँ हैं जो इस्लाम की जन्नत (स्वर्ग) की अवधारणा को प्रतिपादित करते हैं।

दो मंज़िले घुमावदार प्रवेशद्वार द्वारा मकबरे में प्रवेश किया जा सकता है। इसमें एक केंद्रीय कक्ष है जिसके चारों ओर आठ कमरे हैं। इस प्रकार के मकबरे को हश्त-बहिश्त (आठ स्वर्ग) प्रकार के मकबरे के रूप में जाना जाता है। हुमायूँ के मकबरे के निर्माण के बाद ही, उद्यान परिसर में एक विशाल मकबरे के निर्माण की अवधारणा मुगलों के लिए आम बात हो गई थी।