सादगी और शान का प्रतीक, हम्पी, अंतिम महान हिंदू साम्राज्य, विजयनगर की आखिरी राजधानी हुआ करती थी। इसके समृद्ध राजकुमारों ने यहाँ द्रविड़ मंदिरों और महलों का निर्माण करवाया था। 14वीं से 16वीं शताब्दी के दौरान यहाँ आए यात्रियों ने इन मंदिरों और महलों की खूब प्रशंसा की है। 1565 में दक्कन के मुसलमान संघ के अधीन होने के बाद, छह महीनों तक इस शहर को लूटा गया, जिसके बाद इसे पूरी तरह छोड़ दिया गया।
अपनी सादगी और शान के लिए प्रसिद्ध हम्पी में, मुख्य रूप से अंतिम महान हिंदू साम्राज्य (14वीं -16वीं शताब्दी), विजयनगर, की राजधानी के अवशेष मिलते हैं।
यह क्षेत्र मध्य कर्नाटक के बेल्लारी ज़िले की तुंगभद्रा घाटी में 418,724 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है। हम्पी के शानदार स्थल में तुंगभद्रा नदी, वर्धमान पहाड़ी की शृंखलाएँ और व्यापक भौतिक अवशेषों के साथ खुले मैदान शामिल हैं। आज बचे हुए 1600 से अधिक अवशेषों द्वारा यहाँ की विविध शहरी, शाही और धार्मिक प्रणालियों के परिष्करण का प्रमाण मिलता है, जिनमें किले, नदी के तटों की विशेषताएँ, शाही और धार्मिक परिसर, मंदिर, तीर्थस्थल, स्तंभों वाले विशाल कक्ष, मंडप, स्मारक, प्रवेश-द्वार, रक्षा-चौकियाँ, अस्तबल, जल व्यवस्था-तंत्र आदि, शामिल हैं।
इनमें कृष्ण मंदिर परिसर, नरसिंह, गणेश, हेमकूट मंदिर समूह, अच्युतराय मंदिर परिसर, विट्ठल मंदिर परिसर, पट्टाभिराम मंदिर परिसर, कमल महल परिसर प्रमुख माने जाते हैं। बड़े द्रविड़ मंदिर परिसर उपनगरीय बस्तियों से घिरे हुए थे, जिनमें सहायक मंदिर, बाज़ार, आवासीय क्षेत्र और अद्वितीय जलीय तकनीकों को दर्शाते जलाशय शामिल हैं। ये सब इस शहर और यहाँ की रक्षात्मक वास्तुकला का यहाँ के आसपास के भूदृश्य के बीच सामंजस्यपूर्ण एकीकरण दर्शाते हैं। यहाँ की खुदाई में पाए गए अवशेष, कभी अस्तित्व में रहे एक ऐसे विकसित समाज का संकेत देते हैं, जो आर्थिक और राजनीतिक, दोनों दृष्टियों से समृद्ध हुआ करता था।
विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत द्रविड़ वास्तुकला फली-फूली, जिसके सर्वश्रेष्ठ रूप को यहाँ के विशाल आयामों, संरक्षित दीवारों में बंद प्रांगणों और सजे हुए स्तंभों से घिरे प्रवेश द्वारों पर खड़ी गगनचुंबी मीनारों में देखा जा सकता है।
विट्ठल मंदिर यहाँ की सबसे उत्कृष्ट अलंकृत संरचना है, जो विजयनगर मंदिर वास्तुकला की पराकाष्ठा को दर्शाती है। यह एक पूर्णतः विकसित मंदिर है, जिसमें कल्याण और उत्सव मंडप जैसे उप-भवन शामिल हैं। ये सब एक ऐसे प्रांगण में बनाए गए हैं जिनके तीन प्रवेश-द्वारों पर गोपुरम बने हैं। समकालीन मंदिरों में आमतौर पर पाई जाने वाली संरचनाओं के अतिरिक्त, यहाँ ग्रेनाइट पत्थर का रथ के आकार का गरुड़ मंदिर और भव्य बाज़ार के लिए एक गली भी है। इस परिसर में वसंतोत्सव मंडप (केंद्र में बना एक उत्सव-संबंधी मंडप) सहित एक बड़ी पुष्करिणी (बावड़ी), कुएँ और जल-मार्ग प्रणाली भी हैं।
हम्पी के मंदिरों की एक और अनूठी विशेषता हैं स्तंभ वाले मंडपों की कतारों से सुसज्जित भव्य रथ-मार्ग, जो तब अस्तित्व में आए थे, जब रथ-त्योहार अनुष्ठानों के एक अभिन्न अंग बन गए थे। मंदिर के सामने स्थित एक पत्थर का रथ इसके धार्मिक अनुष्ठानिक महत्व का प्रमाण है। हम्पी में अधिकांश संरचनाएँ स्थानीय ग्रेनाइट, पक्की ईंटों और चूने के मसाले से बनाई गई हैं। उस समय की सबसे पसंदीदा निर्माण तकनीकें थीं, पत्थरों की चुनाई, रोशनदान युक्त चौकी, और चौखट-प्रणाली। यहाँ की किलेबंदी की विशालकाय दीवारें एक दूसरे से सटे अनियमित आकार के कटे पत्थरों से बनी हैं, जिन्हें बिना किसी बाध्यकारी सामग्री के ही बीच में मलवा भरकर बनाया गया है। प्रवेशद्वार के ऊपर बने गोपुरों और गर्भगृह का पत्थर और ईंटों से निर्माण किया गया है। छतों का निर्माण भारी मोटे ग्रेनाइट के पत्थर के शैलखंडों से किया गया है, जिनके ऊपर ईंट की जेली और चूने के मसाले की जलरोधी परत लगाई गई है।
विजयनगर वास्तुकला, रानी के स्नानघर और गजशालाओं जैसी गैर-धार्मिक इमारतों में, भारतीय इस्लामी वास्तुकला की खूबियों को अपनाने के लिए भी प्रसिद्ध है। ये इमारतें एक अति विकसित बहु-धार्मिक और बहु-जातीय समाज को दर्शाती हैं। हम्पी में निर्माण कार्य 200 वर्षों तक जारी रहा, जो यहाँ के धार्मिक और राजनीतिक भूदृश्य में विकास के साथ-साथ कला और वास्तुकला की प्रगति को भी दर्शाता है। यह शहर महानगरीय स्तर तक बढ़ा और कई विदेशी यात्रियों ने अपने बेहद खूबसूरत शब्दों के माध्यम से इसे अमरत्व प्रदान किया। 1565 ई. में हुए तालीकोटा के युद्ध ने इसकी भौतिक अवसंरचना को बहुत बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया।
विजयनगर के शासकों के संरक्षण में दक्षिण भारत के बाकी हिस्सों में फैली द्रविड़ वास्तुकला अभी भी जीवित है। राय गोपुरा, जो राजा कृष्णदेव राय के संरक्षण में बने मंदिरों में पहली बार निर्मित हुआ, आज संपूर्ण दक्षिण भारत में पाया जाता है।
मानदंड (i): हम्पी अनुकरणीय मंदिर वास्तुकला और शानदार प्राकृतिक दृश्यों से नियोजित व संरक्षित शहर के उल्लेखनीय एकीकरण और अद्वितीय कलात्मक निर्माण को दर्शाता है।
मानदंड (iii): यह शहर विजयनगर राज्य की लुप्त हो चुकी सभ्यता का असाधारण साक्ष्य प्रस्तुत करता है, जो कि राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल (1509-1530) के दौरान अपने चरमोत्कर्ष पर थी।
मानदंड (iv): यह राजधानी एक ऐसी संरचना का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक परिस्थिति को दर्शाता है, जो कि तालीकोटा के युद्ध (1565 सी.ई.) में विजयनगर साम्राज्य का विनाश था, जिसके बाद यहाँ की प्राकृतिक रूपरेखा में एकीकृत, कार्यशील मंदिर, धार्मिक, शाही, नागरिक और सैन्य संरचनाओं के रूप में शानदार पुरातात्विक अवशेष एवं यहाँ की समृद्ध जीवन-शैली के निशान बाकी रह गए हैं।
इस संपत्ति का क्षेत्रफल, इस स्थल के सभी प्रमुख आकर्षणों के समायोजन, प्रदर्शन और संरक्षण के लिए पर्याप्त है।
यहाँ के अधिकांश स्मारक अच्छी तरह से संरक्षित और सुरक्षित हैं। यहाँ की अति विकसित और अत्यंत परिष्कृत व्यवस्था, स्थापत्य शैलियों, कृषि गतिविधियों, सिंचाई प्रणालियों, औपचारिक और अनौपचारिक मार्गों, शिलाखंडों और चट्टानों एवं धार्मिक और सामाजिक अभिव्यक्तियों को सुस्पष्ट करती है। हालांकि, इन समग्रता संबंधी स्थितियों को निष्ठापूर्वक बनाए रखने के लिए मुख्य रूप से नियोजित और अनियोजित विकास से जुड़ी महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं, जो इस संपत्ति के भूदृश्य के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, अतिक्रमण और, वाणिज्यिक फ़सलों की कृषि में वृद्धि जैसे भूमि-उपयोग में बदलाव, यहाँ के विविध स्मारकों की भौतिक स्थिरता के लिए भी खतरा पैदा कर सकते हैं। आवासीय निर्माण कार्यों को नियमित करने और आगंतुक उपयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए संभावित विकास के साथ-साथ, विशेषतः उपमार्गों द्वारा, संचार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आधारभूत संरचनाओं के निर्माण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होगी। संपत्ति की समग्रता को बनाए रखने के लिए, आधुनिक विद्युतीकरण उपकरणों, टेलीफ़ोन के खंभों और अन्य तत्वों के दृष्टिगत प्रभावों को संबोधित करना भी महत्वपूर्ण होगा।
इस शानदार भूदृश्य को एक राजधानी के लिए अनुकूल बनाती कूटनीति दृष्टि से इसकी महत्वपूर्ण स्थिति और यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं, जिन्हें इस संपत्ति पर आज भी बनाए रखा गया है।
स्थान और विन्यास के संदर्भ में, इस स्थल की प्रामाणिकता अब भी बरकरार है, क्योंकि इसके मूल विन्यास में शामिल तुंगभद्रा नदी और शिलाखंड, आज भी पूरी तरह से कायम हैं। शैली और कार्य के संदर्भ में, पूरी राजधानी के डिज़ाइन और कार्यात्मक संरचना में, मानव-निर्मित सुविधाओं और भौगोलिक विन्यासों का एकीकरण, और उपनगरीय स्वरूप सहित, इसके मूल शहर की योजना आज भी सुस्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। मुख्य रूप से अछूते पुरातात्विक तत्व यहाँ की प्रामाणिक सामग्री और निर्माण के पर्याप्त सबूत प्रदान करते हैं। ज़रूरत पड़ने पर किए गए हस्तक्षेपों में भी यहाँ की विशेषताओं को बनाए रखा गया है। यहाँ की स्मारकीय संरचनाओं में, विजयनगर वास्तुकला के विकास के चरण और इसकी उत्कृष्टता स्पष्ट दिखाई देती है। जहाँ तक परंपराओं और तकनीकों की बात है, यहाँ के भौतिक अवशेष, स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री, पारंपरिक ज्ञान-प्रणाली, और कुशल शिल्प-कौशल का उपयोग करके इस भव्य महानगर को आकार देने वाले निर्माताओं की निपुणता को यथोचित साधुवाद देते हैं। आज भी यहाँ के समाज में उस समय के धार्मिक अनुष्ठानों, संघों, पारंपरिक कौशलों, और व्यवसायों की निरंतरता बनी हुई है।
तालीकोटा के युद्ध में हुए विनाश और समय बीतने के साथ, यहाँ के कुछ पुराने मूल समारोहों और परंपराओं में बदलाव आए हैं, जबकि त्योहार, मंदिरों के अनुष्ठान, तीर्थयात्रा, कृषि, आदि, के अभिन्न अंगों के रूप में कुछ परंपराएँ आज भी निरंतरता से कायम हैं। विरुपाक्ष मंदिर में आज भी निरंतर पूजा होती है, जिसके कारण मंदिर परिसर के विभिन्न हिस्सों में कई विस्तार और परिवर्तन हुए हैं। इसी प्रकार, धार्मिक सामग्रियों एवं धार्मिक और सामाजिक पर्यटकों की ज़रूरतों को पूरा करने वाली अव्यवस्थित रूप से बनी आस-पास की आधुनिक दुकानों तथा भोजनालयों के बड़े पैमाने पर विकास के साथ-साथ मंदिर के सामने एक प्राचीन मार्ग पर बनी डामर की सड़क के कारण यहाँ के विन्यास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। आधुनिक उपयोगों और यहाँ के प्राचीन अवशेषों की बनावट और विन्यास की सुरक्षा के बीच जो तनाव है, उसे अत्यंत संवेदनशीलता के साथ प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
संपत्ति के संरक्षण के लिए विभिन्न कानूनी दस्तावेज मौजूद हैं, जिनमें प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक अवशेष और स्थल अधिनियम, 1958 (ए.एम.ए.एस.आर. अधिनियम, 1958), ए.एम.ए.एस.आर. (संशोधन और मान्यता) अधिनियम, 2010, और भारत सरकार के नियम 1959, कर्नाटक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातात्विक स्थल व अवशेष अधिनियम, 1961, शामिल हैं। हाल ही में, 41,8724 हेक्टेयर के विश्व धरोहर क्षेत्र के संरक्षण और प्रबंधन के लिए हम्पी विश्व धरोहर क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण अधिनियम, 2001, का ड्राफ़्ट (बिल) लाया गया है।
इस काम में लगे अधिकारियों और एजेंसियों के विभिन्न स्तर हैं, जिनके द्वारा अधिनियमों की विविधता के तहत संपत्ति के संरक्षण और प्रबंधन को प्रभावित करने के लिए जनादेश दिए गए हैं। भारत सरकार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) और कर्नाटक सरकार अपने-अपने कानूनी प्रावधानों के तहत क्रमशः छप्पन संरक्षित राष्ट्रीय स्मारकों और बाकी के 46.8 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र की देखभाल और प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार हैं। ए.एस.आई. ने केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारकों के प्रबंधन के लिए कमलापुरम में कार्यालय स्थापित किया है। यह स्थानीय और ज़िला स्तर पर विश्व धरोहर स्थल के समन्वयक के रूप में भी काम कर रहा है, जो संपत्ति के मूल्यों के संरक्षण के लिए विभिन्न स्थानीय स्व-सरकारों, ज़िला प्राधिकरणों और हम्पी विकास प्राधिकरण के साथ संपर्क में है। बेंगलूरु में स्थित क्षेत्रीय कार्यालय, जो नई दिल्ली के ए.एस.आई. निदेशालय और इस कार्य से संबंधित कर्नाटक सरकार के उच्च-स्तरीय एजेंसियों के साथ समन्वय रखता है, कमलापुर में ए.एस.आई. स्थल कार्यालय की सहायता करता है।
महानिदेशक कार्यालय, ए.एस.आई., नई दिल्ली कार्यालय, एक तरफ़ तो यूनेस्को और दूसरी तरफ़ कर्नाटक सरकार के सर्वोच्च अधिकारियों एवं उन क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ समन्वय रखने वाला एक शीर्ष राष्ट्रीय निकाय है, जिनके अधिकार क्षेत्र में यह विश्व धरोहर संपत्ति आती है। मैसूर में डीएएम का कार्यालय है, जबकि हम्पी में इसका स्थानीय कार्यालय स्थित है। एचयूडीए, एचडब्लूएचएएमए, शहर योजना और अन्य ज़िला स्तरीय प्राधिकरण होस्पेट और बेल्लारी में स्थित हैं, जो उपायुक्त का मुख्यालय भी है। सांस्कृतिक भूदृश्यों और जीवंत परंपराओं जैसे संपत्ति के अन्य पहलुओं को यहाँ राज्य, शहर, नगरपालिका और ग्रामीण स्तर के संस्थानों द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
हम्पी विश्व धरोहर क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (एचडब्लूएचएएमए) नामक एक एकल धरोहर प्राधिकरण के गठन द्वारा, यहाँ के स्थानीय स्व-सरकारी प्राधिकारियों की, संबंधित अधिनियमों में सूचीबद्ध, शक्तियों का उपयोग जारी रखा जाता है और प्रबंधन-प्रणाली की प्रभावशीलता एवं विभिन्न संस्थानों से कार्यों के बीच समन्वय बनाए रखा जाता है। संपत्ति के बाकी हिस्सों में विकासात्मक गतिविधियों को अनुमोदित और नियमित करने की निर्णायक शक्तियाँ एचडब्लूएचएएमए के पास हैं। एकीकृत सूचना प्रबंधन केंद्र की स्थापना और संयुक्त विरासत प्रबंधन कार्यक्रम की शुरुआत, भारतीय कानूनी ढाँचे के अंतर्गत प्रभावी संरक्षण और प्रबंधन की दिशा में बड़े कदम हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य इस स्थल की विविध विशेषताओं और जटिल सांस्कृतिक प्रणालियों का अभिस्वीकरण करता है। यहाँ की प्रबंधन प्रणाली, इस स्थल की कल्पना इसकी संपूर्णता में करती है। विरासत-प्रबंधन तथा आर्थिक स्थिति को मज़बूत बनाने के लिए मानव-संसाधन विकास इसकी पहली और दूसरी प्राथमिकताएँ है। एकीकृत प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन का उद्देश्य है एक मूल्य-आधारित प्रबंधन, जो संपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
संपत्ति के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट दीर्घकालिक, मध्यकालिक और अल्पकालिक लक्ष्यों की पहचान की गई है और उनकी कार्यान्वयन प्रक्रियाएँ विभिन्न चरणों में हैं। मास्टर प्लान, जीआईएस प्लेटफॉर्म पर बेस मैप, संरक्षण योजना, विपदाओं से निपटने की योजना, सार्वजनिक उपयोग योजना जैसे प्रबंधन साधनों, और, स्थानीय समुदाय के सतत विकास और इस संपत्ति के विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक और मानव-निर्मित आपदा के कारण आने वाली विपदाओं के खिलाफ़ अन्य साधनों की आवधिक समीक्षा और नवीनीकरण, प्रबंधन-प्रणाली की मज़बूती को सुनिश्चित करने के लिए अतिआवश्यक कदम हैं। दीर्घकालिक लक्ष्यों में आंतरिक क्षमता का निर्माण और एक ऐसे नए व्यवस्थित दृष्टिकोण को अपनाना शामिल है, जिसमें कार्य, समन्वय और भागीदारी के साथ किया जाएगा। संपत्ति के विविध तत्वों के संरक्षण और प्रबंधन में परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए, एक क्रियाशील प्रणाली और संसाधनों के आवंटन को सुनिश्चित करने हेतु, निरंतर वित्त पोषण की आवश्यकता होगी।
तुंगभद्रा के दक्षिणी तट पर स्थित हम्पी एक गाँव है, जो कर्नाटक के कोप्पल ज़िले के गंगावती और बेल्लारी ज़िले के होसपेट तालुकों में पड़ता है। अगर इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता की बात करें, तो इसका संबंध नवपाषाण और ताम्रपाषाण युग तक जाता है। इस ज़िले में एक छोटा शिलालेख मिलने के कारण, इसकी भूमिका हमें अशोक साम्राज्य जैसे महत्वपूर्ण भारतीय ऐतिहासिक युगों में भी प्राप्त होती है। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना से पहले, इस क्षेत्र में चालुक्य, होयसाल, यादव और अन्य साम्राज्यों का शासन था।
यह 1335 से 1565 तक विजयनगर साम्राज्य के शासन का केंद्र रहा था। वर्तमान में इस संपत्ति के लगभग 41,8,724 हेक्टेयर क्षेत्र को यूनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया गया है। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों, हरिहर और बुक्का राम ने की थी, जो पहले तुगलक नौकरशाही का हिस्सा रह चुके थे। इन दोनों भाइयों ने इसी समय के आसपास शैव संप्रदाय की मान्यताओं को अपनाया था। वे खुद को भगवान विरुपाक्ष का प्रतिनिधि मानते थे और उनके नाम पर अपने आधिकारिक दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किया करते थे। यहाँ के नए शहर का निर्माण लगभग 1343 तक पूरा हो चुका था।
विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाले चार राजवंश थे- संगम, सुलुव, तुलुव, और अराविदु। तुलुव वंश के तीसरे शासक कृष्णदेव राय थे, जो विजयनगर के सबसे महान शासक के रूप में प्रसिद्ध हैं। कृष्णदेव राय एक महान विजयी राजा, विद्वान, लेखक, कला के उदार संरक्षक, और महान निर्माता थे।
परिसर में कई ऐसी उल्लेखनीय इमारतें हैं, जिनके निर्माण का श्रेय इस शासक को जाता है। इनमें शामिल हैं-
अन्य उल्लेखनीय स्मारकों में कृष्ण मंदिर, गजशालाएँ, रानी का स्नानगृह, कमल महल, और हज़ारा राम मंदिर शामिल हैं।
1982 में विश्व धरोहर स्थल समिति के समक्ष इस स्थल को पहली बार एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव रखा गया था। 1986 में, एक 'मानव रचनात्मक प्रतिभा' एवं 'सांस्कृतिक परंपराओं का साक्ष्य' होने तथा 'मानव इतिहास में इसकी महत्ता' के आधार पर इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई।