2 किमी से अधिक की दूरी में फैले हुए, ये 34 मठ और मंदिर, महाराष्ट्र के औरंगाबाद से थोड़ी ही दूरी पर, एक ऊँची बेसाल्ट चट्टान की दीवार को काटकर एक के बगल में एक बनाए गए हैं। 600 से लेकर 1000 ईस्वी काल के दौरान एक अटूट क्रम में बने स्मारकों से समृद्ध एलोरा, प्राचीन भारत की सभ्यता का जीवंत उदाहरण है। एलोरा परिसर, न केवल एक अद्वितीय कलात्मक रचना और तकनीकी अचंभा है, अपितु यह बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म को समर्पित अपने मंदिरों के साथ सहिष्णुता की उस भावना को भी पूरी तरह से दर्शाता है, जो प्राचीन भारत की विशेषता थी।
एलोरा की गुफ़ाएँ महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं। इन गुफ़ाओं को 6वीं से लेकर 11वीं शताब्दी ईस्वी के बीच बनाया गया था। यहाँ 100 से अधिक गुफ़ाएँ हैं, लेकिन इनमें से केवल 34 को ही आम जनता के लिए खोला गया है। इन 34 में से, पहली 12 बौद्ध गुफ़ाएँ हैं, 13 से लेकर 29 तक हिंदू गुफ़ाएँ हैं और 30 से लेकर 34 तक जैन गुफ़ाएँ हैं। इन गुफ़ाओं को 1983 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। इस क्षेत्र की स्थलाकृति अर्धवृत्त आकार का एक चट्टानी पठार है। बौद्ध गुफ़ाएँ दक्षिण में दायीं ओर स्थित हैं, जैन गुफ़ाएँ उत्तर में बायीं ओर स्थित हैं, जबकि हिंदू गुफ़ाएँ केंद्र में स्थित हैं।
ये चट्टानें बेसाल्ट की परतों से बनी हुई हैं, जिन्हें डेक्कन ट्रैप्स कहा जाता है, जिसके महीन कणों पर बारीक नक्काशी करना आसान होता है। एक व्यापार मार्ग के करीब होने के कारण ये एलोरा गुफ़ाएँ, अजंता गुफ़ाओं की तरह कभी भी गुमनामी में नहीं खोईं। ऐसे लिखित अभिलेख हैं, जिनसे ये प्रमाणित होता है कि यात्री नियमित रूप से यहाँ आते रहे हैं और अंतिम निर्माण के बाद भी इसे लगातार राजकीय संरक्षण मिलता रहा है।
एलोरा, जिसे स्थानीय रूप से वेरुल के नाम से भी जाना जाता है, में बनी इन कृतियों का निर्माण राजाओं तथा सेठ-साहूकारों और व्यापारियों के संरक्षण में किया गया था। हालाँकि, शिलालेख संबंधी साक्ष्य काफी कम हैं, फिर भी यह पता चलता है कि राष्ट्रकूट राजवंश ने हिंदू और बौद्ध गुफ़ाओं का, जबकि यादव राजवंश ने जैन गुफ़ाओं का निर्माण करवाया था।
बौद्ध गुफ़ाओं में मठ और प्रार्थना कक्ष दोनों हैं। मठ की इमारतें बड़ी और बहुमंज़िली हैं, जिन्हें पर्वत के अग्रभाग में काटकर बनाया गया है। इन मठों में आवास-कक्षों के साथ साथ रसोईघर और जलकुंड भी हैं। जैन गुफ़ाओं में बड़े हॉल हैं और पीछे की दीवार में मंदिर स्थित हैं। ये बड़े हॉल, वार्षिक तीर्थ आयोजनों में बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं के एकत्रित होने के लिए बनाए गए थे। हिंदू गुफ़ाओं में देवी-देवताओं की बहुत सारी मूर्तियाँ हैं। परंतु, एलोरा में वास्तुशिल्प के चमत्कार की बात करें, तो वह हिंदू गुफ़ा संख्या 16 का कैलाश मंदिर है। यह एक अखंड चट्टान को काटकर बनाया गया मंदिर है, जिसमें सहायक मंदिरों के साथ, हिंदू मंदिर के सारे घटकों को एक ही अखंड चट्टान में उकेरकर बनाया गया है। निर्मित संरचना मुक्त रूप से खड़ा, बहु-स्तरीय मंदिर संकुल है, जिसमें मंदिर कला और वास्तुकला की द्रविड़ शैली को देखा जा सकता है। चूंकि इन गुफ़ाओं का निर्माण विभिन्न राजवंशों के समय में उनकी देखरेख में किया गया था, इसलिए इनमें विभिन्न क्षेत्र और शैलीगत कार्यों के मिश्रण को देखा जा सकता है। द्रविड़ शैली से यह संकेत मिलता है कि इन्हें बनाने के लिए द्रविड़ क्षेत्र के शिल्पकार, संगतराश और कारीगर यहाँ आए थे। चूंकि ये गुफ़ाएँ एक प्राचीन व्यापार मार्ग के पास स्थित हैं, इसलिए इनका उपयोग आने वाले व्यापारियों और यात्रियों के लिए विश्राम स्थल के रूप में भी होता रहा।
ये गुफ़ाएँ, भारत में गुफ़ा वास्तुकला की सर्वोत्तम उपलब्धि का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा भारतीय कलाकारों के कौशल और रचनात्मक प्रतिभा को प्रदर्शित करती हैं। देवताओं और उनसे संबंधित मूर्तियाँ भारतीय कलात्मक और आध्यात्मिक परंपरा की एक अखंड श्रृंखला के अस्तित्व की साक्षी हैं। तीन धर्मों से संबंधित इन गुफ़ाओं का साथ साथ होना, विभिन्नदर्शनग्रहण और धार्मिक सह-अस्तित्व का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति की पहचान है।
© ब्रूनो पोप्पे
रचनाकार : ब्रूनो पोप्पे
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