बंबई के समीप ओमान के समुद्र में एक द्वीप पर स्थित ‘गुफ़ा नगरी’ (सिटी ऑफ़ केव्स) में शैलकृत (चट्टानों को काटकर बनाई जानी वाली/ रॉक-कट) गुफ़ाओं में शैव पंथ से जुड़ी कला का संग्रह है। यहाँ, विशेष रूप से मुख्य गुफ़ा में, भारतीय कला की सबसे उत्तम अभिव्यक्तियाँ पाई जाती हैं।
एलीफ़ेंटा की गुफ़ाएँ पश्चिमी भारत में एलीफ़ेंटा द्वीप (जिसे घारापुरी द्वीप नाम से भी जाना जाता है) में स्थित हैं, जहाँ एक संकीर्ण घाटी द्वारा अलग की गईं दो पहाड़ियाँ हैं। यह छोटा द्वीप कई प्राचीन पुरातात्विक अवशेषों से युक्त है, जो इसके समृद्ध सांस्कृतिक अतीत के एकमात्र प्रमाण हैं। ये पुरातात्विक अवशेष दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के प्रारंभ से ही यहाँ पर मानव वास के प्रमाण देते हैं। शैलकृत (रॉक-कट) एलीफ़ेंटा गुफ़ाओं का निर्माण 5वीं से 6वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में हुआ था। गुफ़ाओं में सबसे महत्वपूर्ण है गुफ़ा 1, जो सामने के प्रवेश द्वार से 39 मीटर की दूरी पर है। योजना में, पश्चिमी पहाड़ी की यह गुफ़ा भारत में एलोरा की डुमर लीना गुफ़ा से मिलती-जुलती है। गुफ़ा का मुख्य भाग, तीन खुले पक्षों और पीछे के गलियारे पर पोर्टिको को छोड़कर, 27 मीटर वर्ग का है और इसमें छः-छः स्तंभों की पंक्तियाँ हैं।
7-मीटर ऊँची सबसे उत्कृष्ट कृति, "सदाशिव", गुफ़ा के प्रवेश द्वार पर है। यह मूर्ति शिव के तीन पहलुओं को दर्शाती है: निर्माता, संरक्षक और विध्वंसक, जिनको क्रमशः, अघोरा या भैरव (बायाँ आधा भाग), तप्तपुरुष या महादेव (केंद्रीय पूर्ण चेहरा), और वामदेव या उमा (दायाँ आधा भाग) के रूप में दर्शाया गया है। नटराज, योगीश्वर, अंधकासुरवध, अर्द्धनारीश्वर, कल्याणसुंदरमूर्ति, गंगाधरमूर्ति, और रावण अनुग्रह मूर्ति की प्रस्तुतियाँ भी अपने रूपों, आयामों, विषयों, प्रस्तुतियों, सामग्री, संरेखण और निष्पादन के लिए उल्लेखनीय हैं।
स्तंभों के घटकों सहित, गुफ़ाओं का विन्यास, विभिन्न भागों में गुफ़ाओं की व्यवस्था और विभाजन, और सर्वतोभद्र योजना के अनुसार गर्भगृह का प्रावधान, शैलकृत (रॉक-कट) वास्तुकला में होने वाले महत्वपूर्ण विकास हैं। एलीफ़ेंटा की गुफ़ाएँ एक लंबी कलात्मक परंपरा से जुड़ी हैं, लेकिन नवीनता भी प्रदर्शित करती हैं। प्रतिवादी रसों से परिपूर्ण, कलात्मक सौंदर्य और मूर्तिकला का संयोजन, एलीफेंटा की गुफ़ाओं में एक चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था। हिंदू आध्यात्मिक विश्वास और प्रतीकविद्या का गुफ़ाओं के समग्र नियोजन में सूक्ष्मता से उपयोग किया गया है।
मानदंड (i): मुख्य एलीफ़ेंटा गुफ़ा में लिंग मंदिर के आसपास की पंद्रह बड़ी उभरी आकृतियाँ न केवल भारतीय कला के सबसे महान उदाहरणों में से एक हैं, बल्कि शैव पंथ के लिए सबसे महत्वपूर्ण संग्रह भी हैं।
मानदंड (iii): ये गुफ़ाएँ, पश्चिमी भारत में शैलकृत (रॉक-कट) वास्तुकला के इतिहास की सबसे शानदार उपलब्धि हैं। त्रिमूर्ति और, उनके विन्यास सहित अन्य विशाल मूर्तियाँ, अद्वितीय कलात्मक सृजन का उदाहरण हैं।
एलीफ़ेंटा की गुफ़ाओं के सभी पुरातात्विक घटक अपने प्राकृतिक स्थलों में संरक्षित हैं। पुरातात्विक सामग्री को प्रकट करने और दफन स्तूपों को उजागर करके जानकारी बढ़ाने की गुंजाइश है। सूचीबद्ध करने के समय इस नाजुक स्थल को आस-पास के औद्योगिक विकास से सुरक्षित रखने की आवश्यकता पर ध्यान दिया गया था। वर्तमान में, चट्टानों की सतह पर नमक की गतिविधि और सामान्य क्षरण गुफ़ाओं को प्रभावित कर रहा है। बहाली और संरक्षण कार्यों का मार्गदर्शन करने के लिए एक संरक्षण प्रबंधन योजना को अपनाकर संपत्ति के प्रबंधन को संवर्धित किया जा सकेगा।
स्मारक की संरचनात्मक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, अग्रभाग और स्तंभों पर कुछ मरम्मतों के किए जाने के बावजूद, विश्व विरासत सूची में इसके अभिलेखन के बाद से, संपत्ति की प्रामाणिकता को अच्छी तरह से बनाए रखा गया है। गुफ़ाओं के अलावा, एलीफ़ेंटा द्वीप पर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक के पुराने और पुर्तगाली काल के पुरातात्विक अवशेष भी मिलते हैं जैसा कि क्रमशः पहाड़ी के पूर्वी हिस्से की ओर दफन स्तूप और इसके शीर्ष पर स्थित एक तोप के रूप में देखा जा सकता है। इसके अलावा, गुफ़ाओं को एकाश्म (एक पत्थर से बने) मंदिरों, सर्वतोभद्र गर्भगृह, मंडप (प्रांगण), शैलकृत (रॉक-कट) वास्तुकला और मूर्तियों के रूप में संरक्षित किया गया है। अभिलेखन के बाद से आगंतुकों के अनुभव को बढ़ाने और स्थल के संरक्षण के लिए कई हस्तक्षेप किए गए हैं। इनमें मार्गों का निर्माण, गिरे हुए और टूटे हुए स्तंभों का संरक्षण, गिरे हुए और ढहते हुए गृहमुखों का संरक्षण, द्वीप के घाट से गुफ़ाओं की ओर जाने वाली सीढ़ियों का निर्माण, संरक्षक के आवास की मरम्मत और एक साइट सूचना केंद्र की स्थापना, शामिल हैं।
संपत्ति को मुख्य रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित किया जाता है, जो वन विभाग, पर्यटन विभाग, एमएमआरडीए, शहरी विकास विभाग, नगर नियोजन विभाग और महाराष्ट्र सरकार की ग्राम पंचायतों सहित अन्य विभागों की सहायता से एलीफ़ेंटा की गुफ़ाओं का प्रबंधन करता है। ये सभी संबंधित विभागों के विभिन्न विधानों के अंतर्गत कार्य करते है, जैसे कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम (1958) और नियम (1959); प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष (संशोधन और मान्यता) अधिनियम (2010); भारतीय वन अधिनियम (1927), वन संरक्षण अधिनियम (1980); नगर परिषद, नगर पंचायत और औद्योगिक टाउनशिप अधिनियम, महाराष्ट्र (1965); और क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, महाराष्ट्र (1966)।
समय के साथ संपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को बनाए रखने के लिए , बहाली और संरक्षण कार्यों का मार्गदर्शन करने के लिए संरक्षण प्रबंधन योजना को पूरा करना, उसका अनुमोदन करना और उसे लागू करना होगा; अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त वैज्ञानिक मानकों और तकनीकों का उपयोग करके नमक कि गतिविधि और गुफ़ाओं की सतह पर हो रहे सामान्य क्षरण को संबोधित करना होगा; आस-पास के औद्योगिक विकास से संपत्ति की सुरक्षा करनी होगी; और दबे हुए स्तूपों को उजागर करने पर विचार करना होगा। 1960 के दशक में कुछ स्तंभों पर की गई मरम्मत को ध्वस्त करके उनको दोबारा करने की आवश्यकता है क्योंकि इनमें दरारें पड़ गई हैं। इस स्थल के संरक्षण और पुरातत्व की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त संसाधनों (तकनीकी विशेषज्ञ सलाह) और धन की आवश्यकता है।
1987 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित एलीफेंटा की गुफ़ाएँ, महाराष्ट्र में मुंबई बंदरगाह से लगभग 10 किमी दूर, घारापुरी द्वीप पर स्थित हैं। द्वीप का नाम पुर्तगाली शब्द एलेफ़ांटे से लिया गया है, जो पुर्तगाली उपनिवेशवादियों द्वारा इस्तेमाल किया गया था, जिन्हें यहाँ पहुँचने पर जहाज़ से उतरने के स्थान के पास एक हाथी की मूर्ति मिली थी। इस द्वीप में 5 हिंदू गुफ़ाएँ, दो बौद्ध गुफ़ाएँ, कुछ स्तूप और कुछ जल कुंड हैं। ये संरचनाएँ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 7वीं शताब्दी ईस्वी तक की अवधि में बनाई गई थीं।
पहला निर्माण हीनयान बौद्धों द्वारा किया गया था। उन्होंने यहाँ रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं की सुविधा के लिए पूजा स्थल के रूप में स्तूपों, रहने के लिए कमरों और जलाशयों का निर्माण किया था। कुछ द्वार-मंडप स्तंभ, भित्ती स्तंभ, चित्र वल्लरियाँ और शेर की आकृतियों वाली एक दहलीज अवशेष के रूप में बची हैं।
इसके बाद हिंदू गुफ़ाओं का निर्माण हुआ। एलीफ़ेंटा में हिंदू देवताओं की मूर्तियाँ दक्षिण भारत की पल्लव शैली में बनाई गई हैं। ये मूर्तियाँ और कई सारी उभरी आकृतियाँ मुख्य रूप से शैव पंथ की पौराणिक कथाओं को दर्शाती हैं। त्रिमूर्ति सदाशिव या तीन मुखी शिव की 6.1 मीटर लंबी मूर्ति सबसे प्रसिद्ध है। अन्य उल्लेखनीय आकृतियाँ शिव को नटराज या नृत्य के भगवान के रूप में, योगीश्वर या योग के भगवान के रूप में, और अर्धनारीश्वर या पुरुष और स्त्री ऊर्जा के विलयन के रूप में दर्शाती हैं। अन्य पटलों पर शिव को गंगाधर के रूप में, शिव को राक्षस अंधक का वध करते हुए, शिव पार्वती विवाह, कैलाश पर्वत पर शिव और उनकी पत्नी पार्वती, के साथ-साथ, रावण को कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश करते हुए भी दर्शाया गया है। गुफ़ा में एक लिंग मंदिर भी है।
स्थानीय राजाओं के संरक्षण द्वारा हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के बनाए जाने से इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के पतन का पता चलता है। गुफ़ाओं में वैष्णव और शाक्त पंथों की मूर्तियाँ भी मौजूद हैं जो हिंदू धर्म की सामंज्यपूर्ण एकता का प्रमाण हैं। गुफ़ाएँ भारतीय कलाकारों की रचनात्मकता की गवाही देती हैं, जिन्होंने देवताओं की इन विशालकाय मूर्तियों को तराशा है। उभरी आकृतियों में चित्रित कहानियों में गतिशीलता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ये गुफ़ाएँ भारत की सनातन सामाजिक-धार्मिक परंपरा की द्योतक भी हैं, क्योंकि आज भी आगंतुक गुफ़ाओं में चित्रित कला के साथ अपने आप को जोड़ पाते हैं।
© यूनेस्को
रचनाकार : फ्रांसेस्को बैंडारिन
© यूनेस्को
रचनाकार : फ्रांसेस्को बैंडारिन
© यूनेस्को
रचनाकार : फ्रांसेस्को बैंडारिन
© यूनेस्को
रचनाकार : फ्रांसेस्को बैंडारिन
© यूनेस्को
रचनाकार : फ्रांसेस्को बैंडारिन
© यूनेस्को
रचनाकार : फ्रांसेस्को बैंडारिन