प्राचीन शहर धौलावीरा, जो हड़प्पा सभ्यता का दक्षिणी केंद्र रहा है, वह गुजरात राज्य के शुष्क खादिर द्वीप पर स्थित है। ईसा-पूर्व 3000-1500 के बीच आबाद यह शहर; एक पुरातात्विक स्थल है, जो दक्षिण-पूर्वी एशिया की बेहतरीन रूप से परिरक्षित शहरी बस्तियों में से एक है। इसमें किलाबंदी से युक्त एक शहर और कब्रिस्तान उपस्थित था। वर्षा ऋतु में बहने वाली दो नदियाँ, किलाबंदी से युक्त इस शहर को इस क्षेत्र का एक दुर्लभ संसाधन यानी जल, प्रदान करती थीं। इस शहर में सशक्त किलाबंद महल और समारोह आयोजित करने के एक मैदान के साथ-साथ छोटे-बड़े आकार की गलियाँ और घर भी हैं जो स्तरीकृत सामाजिक व्यवस्था का प्रमाण देते हैं। उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली, धौलावीरा के निवासियों की कठोर वातावरण में जीवित रहने और आगे बढ़ने के लिए, संघर्ष करने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित करती है। इस स्थल पर छह प्रकार के स्मारकों से युक्त एक बड़ा कब्रिस्तान है, जो हड़प्पा में लोगों के देहावसान से संबंधित एक अलग नज़रिए को दर्शाता है। इस स्थल के पुरातात्विक उत्खनन के दौरान, मनकों पर कार्य करने वाले कारखाने और विभिन्न प्रकार के पुरावशेष, जैसे कि ताँबा, सीप, रत्न, उपरत्नों से बने आभूषण, मृण्मूर्तियाँ, सोना, हाथी दाँत और अन्य प्रकार की वस्तुएँ पाई गईं हैं, जिनसे इस संस्कृति की कलात्मक और तकनीकी उपलब्धियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। हड़प्पा के अन्य शहरों के साथ-साथ मेसोपोटामिया क्षेत्र और ओमान प्रायद्वीप के शहरों के साथ अंतर्क्षेत्रीय व्यापार का प्रमाण भी पाया गया है।
धौलावीरा- हड़प्पा सभ्यता का एक शहर, ईसा-पूर्व 3,000 से लेकर ईसा-पूर्व 2,000 के बीच की एक शहरी बस्ती है जिसकी गणना दक्षिण एशिया की कुछ ही, भली-भाँति परिरक्षित की गईं शहरी बस्तियों में की जाती है। हड़प्पा के अभी तक खोजे गए 1,000 से अधिक शहरों में यह छठा सबसे बड़ा शहर है, जहाँ मानव बस्तियों का वास 1,500 से अधिक वर्षों तक रहा है। धौलावीरा न केवल मानव जाति की इस आरंभिक सभ्यता के उत्थान और पतन के संपूर्ण प्रवास का साक्ष्य देता है, बल्कि नगर नियोजन, निर्माण तकनीक, जल प्रबंधन, सामाजिक शासन-प्रणाली और विकास, कला, उत्पादन, व्यापार एवं मान्यता को लेकर अपनी बहुमुखी उपलब्धियों को भी प्रदर्शित करता है। अत्यंत समृद्ध कलाकृतियों के साथ, धौलावीरा की अच्छी तरह से संरक्षित शहरी बस्ती, अपनी विशेषताओं के साथ एक क्षेत्रीय केंद्र की विशद तस्वीर प्रदर्शित करती है, जो समग्र रूप से हड़प्पा सभ्यता के मौजूदा ज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
यह शहरी-क्षेत्र दो भागों से मिलकर बना है- दीवार से घिरा नगर और शहर के पश्चिम में स्थित, कब्रिस्तान। दीवारों से घिरे शहर में एक किला और उससे जुड़ी हुई सुदृढ़ प्राचीर है, साथ ही समारोह आयोजित करने का एक मैदान तथा किलाबंद मध्यवर्ती नगर और निम्नवर्ती नगर हैं। किले के पूर्व और दक्षिण में जलाशयों की शृंखला पाई जाती है। कब्रिस्तान की अधिकांश कब्रें, स्मारकों के रूप में मौजूद हैं।
धौलावीरा शहर के समृद्धि-काल में वहाँ की जो व्यवस्था थी, वह संभवतः विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों और स्तरीकृत समाज के आधार पर सुनियोजित शहर तथा पूर्णतः नियोजित और पृथक् रिहायशी क्षेत्रों का एक सर्वोत्तम उदाहरण है। जल का व्यवस्थित उपयोग करने वाली प्रणालियाँ और जल निकासी व्यवस्था की तकनीकी उन्नति अपने आप में अद्वितीय थी। इनके साथ-साथ वास्तुशिल्पीय और तकनीकी रूप से विकसित ये विशिष्टताएँ उनकी स्थानीय सामग्रियों की बनावट, उसके निष्पादन और उनके प्रभावी उपयोग में दिखाई देती हैं। हड़प्पा के पूर्ववर्ती नगर जो नदियों या जल के स्थायी स्रोतों के निकट बसे थे, उनके विपरीत धौलावीरा का खादिर द्वीप में स्थित होना, अलग-अलग खनिज पदार्थों और कच्चे माल के स्रोतों (ताँबा, सीप, अकीक-इंद्रगोप, शैलखड़ी, सीसा, पट्टीदार चूने का पत्थर आदि) का व्यवस्थित उपयोग करने तथा मगन (वर्तमान ओमान प्रायद्वीप) और मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक और बाहरी व्यापार आसान बनाने के लिए अनुकूल था।
मानक(iii)- धौलावीरा आद्य-ऐतिहासिक कांस्ययुगीन शहरी बस्ती का एक अद्वितीय उदाहरण है जो हड़प्पा सभ्यता (हड़प्पा का आरंभिक, विकसित और अंतिम चरण) से संबंध रखता है। यहाँ ईसा-पूर्व 3000 से लेकर ईसा-पूर्व 2000 तक के बहु-सांस्कृतिक और स्तरीकृत समाज के निशान विद्यमान हैं। यह शहर लगभग 1,500 वर्ष तक फला-फूला, जो यहाँ के अखंड दीर्घकालिक निवास का द्योतक है। उत्खनन-कार्यों से पाए गए अवशेष, स्पष्ट रूप से बस्ती की उत्पत्ति, उसके विकास, उसकी समृद्धि की अवस्था को और तत्पश्चात् शहर की व्यवस्था, वास्तुशिल्पीय तत्व तथा अन्य कई प्रकार के कारकों में निरंतर बदलावों के कारण हुए पतन को इंगित करते हैं।
मानक(iv)- धौलावीरा में पूर्वकल्पित नगर नियोजन, बहु-स्तरीय किलाबंदियाँ, उन्नत जलकुंड और जल-निकासी व्यवस्था होने से तथा निर्माण सामग्री के रूप में पत्थर का व्यापक उपयोग होने से, यह हड़प्पा के नगर नियोजन का एक उत्तम उदाहरण है। ये विशेषताएँ हड़प्पा सभ्यता के संपूर्ण विस्तार में, धौलावीरा की एक अनूठी स्थिति को दर्शाती हैं।
प्राचीन हड़प्पा सभ्यता के शहर, धौलावीरा की खोज 1968 में हुई थी और यहाँ 1989 और 2005 के बीच, पुरातात्विक अनुसंधान की 13 कालावधियों में उत्खनन कार्य किया गया था। उत्खनन में पाई गईं वस्तुओं को वैसे का वैसा ही संरक्षित किया गया था और उन वस्तुओं के सर्वोत्तम सार्वभौमिक महत्व को बढ़ाने में योगदान देने वाली भौतिक विशिष्टताओं को प्रदर्शित किया गया था। अर्थात्, नगर नियोजन, जल प्रबंधन प्रणालियों, वास्तुशिल्पीय तत्व और बनावट, कला और प्रौद्योगिकी के ज्ञान की आद्य-ऐतिहासिक प्रणालियाँ यथास्थान यथावत् बनाए रखी गई थीं। इस संपत्ति का सर्वोत्तम सार्वभौमिक महत्व प्रकट करने वाली विशिष्टताएँ इस क्षेत्र में स्थित हैं। हड़प्पा में मिलने वाले 1,500 वर्षों के निवास के भौतिक प्रमाण इस सभ्यता के पूर्व और उत्तर चरणों को दर्शाते हैं। धौलावीरा में उत्खनन-कार्यों से पाए गए अवशेष काफ़ी हद तक औद्योगिक गतिविधियों (उदाहरण के लिए मनकों का उत्पादन) से संबंधित विशिष्टताओं को स्पष्ट करते हैं और लगभग 1,500 वर्ष तक उन्नत जीवनशैली तथा व्यापार, अंतर्क्षेत्रीय संबंधों और विनिमयों के लिए किए गए प्राकृतिक संसाधनों के शोषण को इंगित करते हैं। इनके भौतिक स्वरूप अधिकांशतः यथास्थान यथावत् पाए गए हैं। इसके ह्रास को रोकने हेतु, कुछ क्षेत्रों के लिए संरक्षण उपाय और व्यवस्था को कार्यान्वित कर इन्हें कायम किया गया है ताकि इस क्षेत्र की भौतिक विशिष्टताएँ निश्चित रूप से बनी रहें। विस्तारित मध्यवर्ती क्षेत्र के लिए विकास और संरक्षण के दिशा-निर्देश तैयार करने बाकी हैं।
धौलावीरा शहर के पुरातात्विक अवशेषों में किलाबंदियाँ, प्रवेशद्वार, जलकुंड, सामारोह के मैदान, रिहायशी क्षेत्र, कारखाना क्षेत्र और कब्रिस्तान-परिसर शामिल हैं। ये सभी हड़प्पा संस्कृति और उसके विभिन्न स्वरूपों का स्पष्ट निरूपण करते हैं। यहाँ का शहरी नियोजन, वहाँ पाए जाने वाले अवशेषों से स्पष्ट होता है जो व्यवस्थित नियोजन को दर्शाता करता है। इस पुरातात्विक स्थल की प्रामाणिकता न्यूनतम हस्तक्षेपों और वैज्ञानिक संरक्षण प्रणालियों और तरीकों के ज़रिए बनाए रखी जाती है। साथ-ही उत्खनन से प्राप्त संरचनाओं का रखरखाव, उनकी मूल व्यवस्था में यथावत् स्थिति में किया जाता है। इन संरचनाओं के अवशेषों में कोई परिवर्धन या परिवर्तन नहीं किया जाता है।
उत्खनन-कार्यों से पाए गए अवशेष निर्माण शैली का प्रमाण, वास्तुशिल्पीय तत्वों और मनकों का उत्पादन करने वाले कारखानों के ढाँचे का प्रमाण देते हैं, जिनकी प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए उन्हें यथास्थान यथावत् रखा गया है। इस शहर की व्यवस्था का प्रमाण, जिसे उत्खनन कार्यों के दौरान भली-भाँति प्रलेखन बनाकर संरक्षित किया गया है, उस पर व्यापक नियोजन, उचित अनुपात और समानुपात तथा प्रणालियों की समझ, मुख्य दिशाओं के अनुसार समूचे शहर का संरेखण, जल संचयन, तीव्र-गति जल निकासी प्रणाली तथा अन्य कारीगरी के भी प्रमाण हैं। इन वस्तुओं की रचना पत्थर की चिनाई और मिट्टी से बनी हल्की ईंटों से होने के कारण, इनकी विशेषताओं को व्यापक रूप से परिरक्षित किया जाता है, जिसके कारण वास्तुशिल्पीय रचनाओं का संरक्षण सही स्थिति में विद्यमान है।
पुरातात्विक स्थल धौलावीरा, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा सुरक्षित और प्रबंधित किया जाता है जो भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत, उसी का संबद्ध कार्यालय और संगठन है। यह क्षेत्र राष्ट्रीय स्तर के कानूनों से सुरक्षित है, यानी प्राचीन संस्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (AMASR) जिसे 2010 में संशोधित किया गया था; प्राचीन संस्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष नियम, 1959; प्राचीन संस्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष नियम, 2011 और पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनयम, 1972 और नियम 1973 से सुरक्षित है। इसके संरक्षण, रखरखाव और प्रबंधन से संबंधित निर्णय संस्मारकों, पुरातत्वीय स्थलों और अवशेषों के लिए राष्ट्रीय संरक्षण नीति, 2014 द्वारा शासित हैं। राष्ट्रीय महत्त्व के “प्राचीन स्मारक” के रूप में अभिहित प्राचीन स्थल धौलावीरा सुरक्षित किए गए स्मारक से सभी दिशाओं में 100 मीटर तक के निषिद्ध क्षेत्र द्वारा और उसके आगे सभी दिशाओं में 200 मीटर तक के विनियमित क्षेत्र द्वारा सुरक्षित रखा जाता है। प्राचीन संस्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष नियम, 2011 के प्रावधानों के अनुसार, प्राचीन स्थल धौलावीरा के निकटवर्ती क्षेत्रों की सभी गतिविधियाँ निषिद्ध और विनियमित क्षेत्रों में निषेध और विनियमन के अधीन बनी रहती हैं। मध्यवर्ती क्षेत्र खादिर द्वीप की समूची पश्चिमी पट्टी को समाविष्ट करता है, जिससे इस क्षेत्र के बड़े हिस्से की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। मध्यवर्ती क्षेत्र, जिसके कुछ हिस्से निषिद्ध और विनियमित क्षेत्रों को समाविष्ट करते हैं, वह कच्छ मरुभूमि वन्य अभ्यारण्य को व्याप्त करता है, जो वन अधिनियम (वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972) द्वारा सुरक्षित है। भारत सरकार द्वारा, मध्यवर्ती क्षेत्र में स्थित प्राचीन उत्खनन स्थलों को, राष्ट्रीय महत्व के स्थलों के रूप में सूचीबद्ध करने का कार्य जारी है।
यह पुरातात्विक और मध्यवर्ती क्षेत्र, शीर्ष स्थानीय समिति और अन्य स्थानीय स्तर की समितियों द्वारा प्रबंधित हैं, जिनके सदस्यों के रूप में कुछ बड़े हिस्सेदार हैं। यह भागीदारी तंत्र, विभिन्न हित समूहों के बीच संवाद सुनिश्चित करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा, स्थल प्रबंधन योजना को अनुमोदित करते हुए उसे लागू किया गया है।
धौलावीरा, भारत की सिंधु घाटी सभ्यता का एक शहर है, जो महान कच्छ के रण, गुजरात में, खादिर द्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। 1990 में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की निगरानी में यहाँ शुरू हुए उत्खनन-कार्यों से, कई महत्वपूर्ण अवशेष बरामद हुए हैं, जो लगभग 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। इनसे ईसा-पूर्व तीसरी से दूसरी सहस्राब्दी के मध्य तक मौजूद मानव बस्तियों का कालक्रम पता चलता है, जो सात महत्वपूर्ण सांस्कृतिक चरणों को दर्शाते हैं। ये सातों चरण, हड़प्पा सभ्यता के उत्थान और पतन से मेल खाते हैं।
उत्खनन-कार्यों ने हड़प्पा शहर और उससे जुड़ी उन विशेषताओं पर प्रकाश डाला है, जो इस शहर को एक खास पहचान दिलाती हैं। लेकिन धौलावीरा अपनी व्यापक जल संचयन संरचनाओं के लिए विख्यात है, जिसका उद्देश्य, ‘अपनी जनता के लिए पेयजल की प्रत्येक बूँद की बचत करना’ रहा है। ये संरचनाएँ क्षेत्र की भू-जलवायु की स्थिति तथा वहाँ के निवासियों के उच्च स्तरीय द्रवचालित अभियांत्रिकी कौशल पर प्रकाश डालती हैं, जिन्होंने इस शुष्क प्रदेश में निवासियों के भरण-पोषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह शहर दो मौसमी धाराओं, मानसर और मनहर के बीच स्थित है; जो एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ शिलाएँ, कटक और प्राकृतिक तलछट बिखरे पड़े हैं। ये इस क्षेत्र को मानव बस्ती के निर्माण के लिए उपयुक्त बनाते हैं। अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में यह शहर, द्विभाजित किलों (महल और दुर्गप्राचीर), एक मध्यवर्ती नगर, एक निम्नवर्ती नगर, दो खेल के मैदान, एक उपभवन, जलाशयों की शृंखला और विशाल किलाबंदियों का समग्र रूप था। जल संचयन संरचनाओं में रोधक बाँध, जलाशय, तीव्र जल निकासी प्रणाली और कुएँ शामिल थे। शहर के भीतर कुल 16 जलाशय पाए गए हैं, जिन तक सीढ़ियों के सहारे पहुँचा जा सकता है। तटबंधों और सीढ़ियों का निर्माण पत्थर की चिनाई से करवाया गया है, जिससे बेहतरीन कारीगरी का पता चलता है।
धौलावीरा में पाई गईं अनोखी चीज़ों में दो बहु-उद्देशीय मैदान (स्टेडियम) शामिल हैं, जिनका उपयोग संभवतः बड़े सम्मेलनों के लिए हुआ करता था। दुर्ग के प्रवेशद्वार के निकट, सिंधु लिपि में एक 3-मीटर लंबा शिलालेख पाया गया है। इस अभिलेख को लकड़ी के एक बड़े तख्ते पर, जिप्सम के टुकड़ों को समायोजित करके, दस बड़े चिह्न या अक्षर बनाकर लिखा गया था। यद्यपि लिपि का अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ है, तथापि अक्षरों के आकार (37 सेंटीमीटर बड़े), उनके सुस्पष्ट स्थान और दृश्यता से यह इंगित होता है कि वह एक प्रकार का सूचना-पट्ट है।
इस शहर की अवस्थिति, नदी तट पर स्थित अन्य सिंधु शहरों के विपरीत है। शायद खादिर द्वीप का समृद्ध खनिज भंडार इसका एक प्रमुख कारण था। यहाँ के निवासियों ने ताँबा, सीप, अकीक-इंद्रगोप (अगेट-कार्नेलियन), सेलखड़ी, सीसा और चूने के पत्थर का इस्तेमाल करते हुए मनके, मिट्टी के पात्र, मुहरें, आभूषण तथा अन्य उपयोगी वस्तुएँ बनाईं। पत्थर के खंभे के सुंदर टुकड़े बनाकर उन्हें, भली-भाँति चमकाया जाता था। उस प्रत्येक टुकड़े के मध्य में बनाए जाने वाले छेद से जो लकड़ी की छड़ गुज़रती थी, उसके डंडे की मदद से उन्हें एक साथ समायोजित किया जाता था। धौलावीरा से 3.5 किमी उत्तर में एक धार पर स्थित सारण नामक स्थान पर एक बंदरगाह के अवशेषों की खोज हुई थी। इसने मगन (आधुनिक ओमान प्रायद्वीप) और मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक और बाहरी व्यापार को अति सुविधाजनक बनाया।
यहाँ की सामाजिक संरचना विविधतापूर्ण है, जिसका पता हमें यहाँ पाए गए मृतकों के क्रियाकर्मों से संबंधित विभिन्न संरचनाओं से चलता है। यद्यपि समाज में स्तरीकरण व्याप्त था और अलग-अलग वर्गों के लोग नगर के अलग-अलग क्षेत्रों में रहते थे, तथापि सार्वजनिक रूप से उपयोगी वस्तुओं के इस्तेमाल को लेकर दूर-दूर तक कोई भेदभाव नज़र नहीं आता था। शहर के सभी हिस्सों में मौजूद लोग, पानी का उपयोग कर पाएँ, इस उद्देश्य से बहुत से जलकुंड बनवाए गए थे।
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