प्रागैतिहासिक काल के स्थलों, एक प्रारंभिक हिन्दू राजधानी रह चुके एक पहाड़ी किले और गुजरात राज्य की 16वीं शताब्दी की एक राजधानी के अवशेषों से समृद्ध एक प्रभावशाली परिदृश्य जिसमें बड़े पैमाने पर ऐसे पुरातात्विक, ऐतिहासिक और जीवित सांस्कृतिक विरासत के स्थल मौजूद हैं, जिन्हें अब तक भी बरामद नहीं किया जा सका है। यहाँ 8वीं से 14वीं शताब्दी के बीच के अन्य अवशेषों के अतिरिक्त कई किले, महल, धार्मिक स्थल, रिहायशी परिसर, कृषिक संरचनाएँ और जल प्रतिष्ठान भी मौजूद हैं। पावागढ़ पहाड़ी की चोटी पर स्थित कालिका माता का मंदिर एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल माना जाता है जो साल भर बड़ी संख्या में तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। यह स्थल मुगलों से पहले का एकमात्र उत्कृष्ट और अपरिवर्तित इस्लामी शहर है।
मानदंड (iii): प्राचीन हिंदू वास्तुकलाओं, मंदिरों, पानी को रोकने वाली विशेष यंत्रावलियों और 16वीं शताब्दी में (जब यह एक क्षेत्रीय राजधानी थी) महमूद बेगड़ा द्वारा बनवाई गई धार्मिक, लशकरी और कृषिक संरचनाओं से समृद्ध, चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व उद्यान, ऐसी संस्कृतियों को दर्शाता है जो अब लुप्त हो चुकी हैं।
मानदंड (iv):ये संरचनाएँ हिंदू-मुसलमान वास्तुकला का एक बढ़िया मेल दर्शाती हैं। जामी मस्जिद यहाँ की एक प्रमुख संरचना है, जिसकी शैली के आधार पर भारत की मज्सिद वास्तुकला की नींव पड़ी। यह विशेष शैली क्षेत्रीय सल्तनतों के गौरवशाली शासनकाल की देन है।
मानदंड (v):चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व उद्यान एक अल्पकालिक राजधानी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें यहाँ के परिवेश, स्थलाकृति और प्राकृतिक विशेषताओं का सबसे अच्छा उपयोग किया गया है। यह स्थल परित्याग, वन अधिग्रहण और आधुनिक जीवन शैली के कारण काफ़ी असुरक्षित हो गया है।
मानदंड (vi): चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व उद्यान हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक पूजा और तीर्थ का स्थल है।
चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व उद्यान भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में स्थित है। हालाँकि पावागढ़ 800 मीटर ऊँची पहाड़ी पर स्थित है, चंपानेर क्षेत्र उसके नीचे फैला हुआ है। इस क्षेत्र में 8वीं से 16वीं शताब्दी के बीच की संरचनाएँ मौजूद हैं, जिनमें से कुछ को अब भी बरामद करनी बाकी है। एक पहाड़ी किले की उपस्थिति और 16वीं शताब्दी की राजधानी के अवशेष इस क्षेत्र के कूटनीतिक महत्व को दर्शाते हैं। यहाँ पाई गई संरचनाएँ एक पूर्ण शहरी परिसर के अस्तित्व का प्रमाण देती हैं। इस स्थल पर ऐसी इमारतें भी हैं जो हिंदू और मुसलमान वास्तुकलाओं का मेल प्रस्तुत करती हैं। इस स्थल को 2004 में एक विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
प्रागैतिहासिक (ताम्र-पाषाण युग) काल से यहाँ आबादी के प्रमाण होने के बावजूद, मध्यकाल में ही इस क्षेत्र का महत्त्व बढ़ा। दिल्ली में सल्तनत के पतन के बाद अलग-अलग क्षेत्रों के राज्य अपनी महत्त्वाकाँक्षा के अनुसार स्वतंत्र हो गए। इसके बाद सत्ताधिकार पाने के लिए जो होड़ मची, उसमें पश्चिम में मालवा और गुजरात राज्य सशक्त केंद्रों के रूप में उभरे। इन पर शासन करने लिए, चंपानेर-पावागढ़ क्षेत्र को नियंत्रित करना महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि यह गुजरात को मालवा से जोड़ने वाला एक ज़रूरी संधि-स्थल था। शिलालेख इस बात का प्रमाण देते हैं कि चंपानेर-पावागढ़ 1300 के दशक में मेवाड़ के खींची चौहान राजपूतों के अधिकार में था। 1484 में गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा ने अंतिम चौहान शासक को हराकर इस क्षेत्र पर यॉन अधिकार स्थापित किया। मालवा के खिलाफ़ युद्ध छेड़ने के लिए, महमूद ने अपनी राजधानी को अहमदाबाद से चंपानेर स्थानांतरित कर दिया।
फिर महमूद ने इस क्षेत्र को राजधानी का रूप देने का काम शुरू किया और इसे आवासीय, लशकरी और धार्मिक संरचनाओं से सुसज्जित करते हुए यहाँ नई सड़कें, किले, पुल और बगीचे बनवाए। इस क्षेत्र की परंपरा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यहाँ झीलों, तालाबों, कुओं, बावलियों और टँकियों जैसी कई जल संचयन संरचनाएँ भी बनावाईं। इस शहर में ऐसी इमारतें भी थीं जो नागरिकों की ज़रूरतों का ख्याल रखती थीं, जैसे सराय (आवास या विश्राम गृह), बाज़ार, कब्रिस्तान और खाली समय बिताने के लिए कबूतरखाने। इमारतों की कला और वास्तुकला में भारतीय-इस्लामी परंपरा दिखाई देती है। जामा मस्जिद में पाई जाने वाली बारीक नक्काशियों, पटलों पर मौजूद छिद्र-युक्त पथरीली कारीगरी और पारंपरिक गुजराती शैली में बने बालकनी-झरोखों के कारण यह मस्जिद भारतीय-इस्लामी परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण है। पावागढ़ पहाड़ी पर लकुलीश मंदिर, जैन मंदिर और कालिका माता मंदिर का भी निर्माण किया गया था।
दूसरे मुगल बादशाह हुमायूँ जब भारत के सम्राट के रूप में बेदखल किए गए, तब उन्होंने दिल्ली पर फिर एक बार कब्ज़ा करने की इच्छा से एक अभियान चलाया। इसके लिए धन इकट्ठा करने हेतु उन्होेंने आक्रमण करके इस शहर को लूटा, जिस कारण इस स्थान का पतन हुआ। गुजरात के सुल्तानों ने तब एक बार फिर राजधानी को अहमदाबाद स्थानांतरित कर दिया। राजनैतिक परित्याग के कारण, यह शहर अपने पतन की ओर बढ़ता गया। हालाँकि 1970 के दशक से चल रहे पुरातत्वीय उत्खननों में इसके मुगलों से पहले के एकमात्र उत्कृष्ट और अपरिवर्तित इस्लामी शहर होने के प्रमाण मिले हैं। 10वीं-11वीं शताब्दी के कालिका माता मंदिर को गुजरात का एक प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है और लोग आज भी यहाँ भारी मात्रा में दर्शन करने आते हैं।
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