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भीमबेटका के शैलाश्रय

भीमबेटका के शैलाश्रय, केंद्रीय-भारतीय पठार के दक्षिणी किनारे पर पाई जाने वाली, विंध्या पर्वत शृंखला की तलहटी में स्थित हैं। यहाँ मध्य-पाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक की चित्रकारियाँ देखी जा सकती हैं, जो एक घने जंगल के ऊपर, बड़े बलुआ पत्थरों की चट्टानों के भीतर, प्राकृतिक शैलाश्रयों के पाँच झुंडों में पाई गई हैं। इस जगह से सटे इक्कीस गाँवों के निवासी जिन सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करते हैं, वे इन शैल-चित्रकारियों में देखे जाने वाले दृश्यों से गहरी समानता रखते हैं।

अभिलेखन का औचित्य


मानदंड (iii): भीमबेटका यहाँ के लोगों और यहाँ के भूदृश्य के बीच एक लंबे समय से चले आ रहे पारस्परिक संबंध को दर्शाता है, जो कि यहाँ पर मिलने वाली शैल-चित्रकला की मात्रा और उनके स्वरूप से ही उजागर हो जाता है ।


मानदंड (v): भीमबेटका एक आखेटक और संग्राहक अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ा हुआ है, जो यहाँ की शैल-चित्रकला के दृश्यों और इस स्थल की परिधि पर पाए जाने वाले स्थानीय आदिवासी गाँवों में इस परंपरा के बचे अवशेषों में देखा जा सकता है।

भीमबेटका पुरातात्विक स्थल विश्व के प्रागैतिहासिक चित्रित आश्रयों के सबसे बड़े समूहों में से एक है। यहाँ पाए जाने वाले शैलाश्रय 1850 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले हुए हैं। ये शैलाश्रय विंध्या पर्वत शृंखला के रातापानी वन्यजीव अभयारण्य के अंदर स्थित हैं। प्रागैतिहासिक अवशेषों के अलावा, यहाँ बड़ी संख्या में हिंदू और बौद्ध पुरातात्विक अवशेष भी पाए जाते हैं।
भीमबेटका हिंदी शब्द 'भीमबैठका’ से आया है, जिसका अर्थ है 'भीम का आसन’। इसका संबंध भीम से है जो महाकाव्य महाभारत के नायकों में से एक थे। यह पूर्व से पश्चिम तक लगभग एक किलोमीटर लंबी, उत्तर से दक्षिण तक पाँच सौ मीटर चौड़ी और समुद्र तल से लगभग 650 मीटर ऊँची पहाड़ी है। पहाड़ी एक छोटे से आदिवासी गाँव, भियानपुर के दो किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।


हालाँकि शैल-चित्रकला पूरे भारत में पाई गई है, परंतु मध्य प्रदेश में इनकी सबसे अधिक मात्रा देखी जा सकती है, जिनमें भीमबेटका विशेष रूप से शामिल है। भीमबेटका की गुफ़ाओं की खोज 1957 में भारतीय पुरातत्वविद् डॉ विष्णु. एस. वाकणकर ने की थी। भीमबेटका की सबसे पुरानी शैल-चित्रकारियाँ लगभग 10,000 वर्ष पुरानी हैं और इन्हें तीन मुख्य रंगों - लाल, सफ़ेद और हरे, में बनाया गया है।


भीमबेटका में शैल कला के मुख्य रूप पेट्रोग्लिफ़्स (शिलोउत्कीर्णन), जियोग्लिफ़्स (चट्टानों की व्यवस्था करके ज़मीन पर निर्मित एक बड़ा डिज़ाईन), रॉक ब्रूज़िंग (ऋतुक्षरित चट्टानों के छोटे टुकड़ों को तोड़कर बनाई गई छवियाँ) और पिक्टोग्राफ़ (पत्थर पर बनी चित्रकारियाँ) हैं। सर्वाधिक रचनाओं में सामान्य तौर पर हाथी, मृग, शेर, बंदर एवं विशेष रूप से बैल और गायों जैसे जानवर तथा समूहों में या अकेले पाए जाने वाले मनुष्य देखे जा सकते हैं।


शैलाश्रय के पाँच समूहों को यूनेस्को द्वारा 2003 में एक विश्व धरोहर-स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी। हालाँकि, रेनहट्टी रोड पर दो अतिरिक्त शैलाश्रय समूह हैं, जो इनमें शामिल नहीं किए गए थे।
भीमबेटका के शैलाश्रयों के समूह कुछ इस प्रकार हैं:


समूह l (करितलाई से विनायक)- इसमें 12 आश्रय हैं। इनमें से कुछ आश्रयों में चित्रकारियाँ भी हैं। यहाँ लगभग 20 स्तूपों के अवशेष तथा एक संभावित विहार की दीवार भी मौजूद है।


समूह II (विनायक से छोटा जामुनझिरी)- इसमें 196 आश्रय हैं। यहाँ प्रसिद्ध "वाराह शैल" (सींग वाले बड़े सूअर की चित्रकारी वाला शैलाश्रय) भी मौजूद है। यहाँ मध्य-पाषाण काल के उपकरण, और मौर्य काल के यक्षों की चित्रकारियाँ भी हैं।


समूह III (छोटी जामुनझिरी से बड़ी जामुनझिरी)- इसमें 291 शैलाश्रय हैं। यहाँ भीमबेटका के मुख्य शैलाश्रयों में से एक, प्रेक्षागृह गुफ़ा स्थित है। यह भीमबेटका की सबसे बड़ी और सबसे जानी-पहचानी विशेषता है। कुछ शैलाश्रयों में शुंग काल के शिलालेख मिलते हैं।


समूह IV (बड़ी जामुनझिरी से फूटी तलाई)- इसमें 175 शैलाश्रय हैं। यहाँ मध्य-पाषाण काल की सुंदर चित्रकारियों, परमार काल के मंदिरों के खंडहरों और इमारतों के साथ-साथ बाँधों के अवशेष भी मिलते हैं।


समूह V (फूटी तलाई से रेनहट्टी रोड कॉलोनी)- इसमें 95 शैलाश्रय हैं।


इस प्रकार, भीमबेटका पुरातात्विक स्थल में लगभग 754 संख्यांकित शैलाश्रय और लगभग 500 शैल-चित्रकला स्थल हैं।