अजंता में स्थित पहले बौद्ध गुफ़ा स्मारक दूसरी और पहली शताब्दी ईसा पूर्व में बनाए गए थे। गुप्त काल (5वीं और 6वीं शताब्दी ईस्वी) के दौरान मूल समूह में, बड़े पैमाने पर अलंकृत, कई और गुफाएँ जोड़ी गईं। बौद्ध धार्मिक कला की उत्कृष्ट कृति मानी जानी वाली अजंता की चित्रकारियों और मूर्तियों का विशेष कलात्मक प्रभाव रहा है।
अजंता की गुफ़ाएँ महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद ज़िले में स्थित हैं। ये बौद्ध गुफ़ाओं का एक समूह है, जिसे दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर पाँचवीं शताब्दी ईस्वी के दौरान काटा और तराशा गया था। 1983 में यूनेस्को द्वारा गुफ़ाओं को एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया। यह स्थल एक घोड़े की नाल के आकार की पहाड़ी की खड़ी ढलान है जिसके सामने वाघोरा नदी बहती है। बौद्ध भिक्षुओं के वर्षावास के लिए यह 79 मीटर ऊँची पहाड़ी एक आदर्श स्थान के रूप में कार्य करती थी। इन गुफ़ओं के निर्माण के लिए आवश्यक धन, राजाओं, धनी व्यापारियों और बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा प्रदान किया गया था।
इस स्थान में पाई जाने वालीं बेसाल्ट की चट्टानें खुदाई और मूर्तिकला के लिए आदर्श रूप से अनुकूल थीं। ढलान का मुख पूर्व की ओर होने के कारण दिन में सूरज की किरणें गुफ़ाओं के अंदर तक आती थीं जिससे श्रमिकों और कलाकारों को अपने कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त रोशनी मिलती थी। अपने निवासियों के रहने के उद्देश्यों की पूर्ति करते हुए, इन गुफ़ाओं में चैत्य (प्रार्थना हॉल) और रहने के लिए विहार बने हैं। इन चैत्यों और विहारों, उनके सुंदर अग्रभागों, स्तंभों और उनके सजे हुए शीर्षों को आकार देने के लिए, चट्टान की सतह की खुदाई में महान वास्तु कौशल का निश्चय ही प्रयोग किया गया होगा।
ये गुफ़ाएँ खड़ी, बैठी और यहाँ तक कि लेटी हुई स्थिति में बुद्ध की मूर्तियों से भरी पड़ी हैं। बुद्ध को अक्सर उनकी उपदेश देने वाली मुद्रा में दिखाया गया है। दरवाजों के चौखटों और लिंटलों को भी अन्य दिव्य प्राणियों (यक्ष) और जानवरों (मकर) से सजाया गया है।
ये गुफ़ाएँ इनकी दीवारों और छतों पर पाए जाने वाले भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं, जिनमें बुद्ध के जीवन और जातक कहानियों से जुड़े दृश्य बनाए गए हैं। प्रसिद्ध बोधिसत्व पद्मपनी (दयालु बुद्ध) के चित्र सहित, ये भित्ति चित्र समय के कहर से बच गए हैं, और इनमें प्रदर्शित चेहरों के भाव, गतिशीलता और बारीक रेखाएँ आगंतुकों को आज भी विस्मित करती हैं। इनमें उपयुक्त रंग, उनके संयोजन और पैटर्न अभी भी जीवित जान पड़ते हैं, जो भारतीय महिलाओं की पारंपरिक पोशाक, साड़ी, जैसी आम चीज़ों में दिखाई देते हैं। इन भित्ति चित्रों में, पृष्ठभूमि के चित्रों को अग्रभूमि के चित्रों से थोड़ा ऊपर की ओर स्थित करके, गहराई का आभास दिया गया है।
कलाकार, जैसा कि प्राचीन भारतीय कलात्मक परंपरा में प्रचलित था, अनाम हैं और संभवतः वे बौद्ध धर्म के अनुयायी भी नहीं रहे होंगे। परंतु, संभवतः भिक्षुओं की निगरानी में, उन्होंने बौद्ध मूर्ती कला का हूबहू चित्रण किया है। गुफ़ाएँ भारत में बौद्ध धर्म की कहानी दर्शाती हैं और बुद्ध को मूर्ति के रूप में प्रदर्शित करते हुए महायान संप्रदाय की प्रगति का संकेत देती हैं। लोगों, वनस्पति और जीव-जंतुओं के माध्यम से चित्रित तस्वीरों में उस समय के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन की झलक भी मिलती है। ब्राह्मी लिपि में 90 से अधिक शिलालेखों के अध्ययन से दानदाताओं के बारे में महत्वपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक जानकारी प्राप्त हुई है।
ये गुफ़ाएँ मानव रचनात्मकता के कई पहलुओं का उत्कृष्ट उदाहरण देती हैं। वे वास्तुकला, निर्माण तकनीकी और कला के क्षेत्र में हासिल की गई महारत के प्रमाण हैं जो कि भारतीय कलात्मक परंपरा का प्रतिनिधित्व करती है। 1891 ईस्वी में जॉन स्मिथ के नेतृत्व में एक शिकार दल द्वारा, इन खोई हुईं गुफ़ाओं को संयोगवश ढूढ़ निकला गया था। तब से यहाँ मिले कलात्मक खजाने के संरक्षण, प्रलेखन और विवेचन के लिए विभिन्न प्रयास जारी हैं।
© ब्रूनो पोप्पे
रचनाकार : ब्रूनो पोप्पे
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