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ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद

  • Historic City of Ahmedabad
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बाहरी दीवारों से घिरा, अहमदबाद शहर, साबरमती नदी के पूर्वी तट पर 15वीं शताब्दी में सुल्तान अहमद शाह द्वारा स्थापित किया गया था, जो सल्तनत काल से एक समृद्ध वास्तुशिल्पीय विरासत का केंद्र बना हुआ है। इस विरासत में विशेष रूप से भद्रा दुर्ग, किला-शहर की दीवारों और द्वारों, कई मस्जिदों और मकबरों के साथ-साथ बाद के काल के महत्वपूर्ण हिंदू और जैन मंदिर शामिल हैं। शहरी ढाँचा फ़ाटकदार पारंपरिक गलियों (पुरों) में एक दूसरे से सटे पारंपरिक घरों (पोलों) से बना है, जिसमें पक्षी फ़ीडर, सार्वजनिक कुएँ और धार्मिक संस्थाएँ उसकी मुख्य विशेषताएँ हैं। यह शहर छह शताब्दियों से लेकर वर्तमान तक गुजरात राज्य की राजधानी है।


उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य


संक्षिप्त संश्लेषण


प्राचीर शहर अहमदाबाद की स्थापना सुल्तान अहमद शाह ने 1411 ई. में साबरमती नदी के पूर्वी तट पर की थी। यह छह शताब्दियों तक गुजरात राज्य की राजधानी के रूप में फलता-फूलता रहा है।
पुराने शहर को एक पुरातात्विक इकाई के रूप में माना जाता है, जिसकी निर्माण योजना सदियों बाद भी काफी हद तक बची हुई है। इसका शहरी पुरातत्व सल्तनत-पूर्व और सल्तनत काल के अवशेषों के आधार पर इसके ऐतिहासिक महत्व को सुदृढ़ बनाता है।

सल्तनत काल के स्मारकों की वास्तुकला ऐतिहासिक शहर के बहुसांस्कृतिक चरित्र का एक अनूठा मिश्रण दर्शाती है। यह धरोहर, अपनी विशिष्ट "हवेलियों", "पोलों" (फ़ाटकदारआवासीय मुख्य सड़कों), और खड़कियों (गलियों के आंतरिक प्रवेश द्वार) जैसे मुख्य घटकों सहित, अन्य धार्मिक इमारतों में सन्निहित पूरक परंपराओं और पुराने शहर की अत्यंत समृद्ध, लकड़ी की स्वदेशी वास्तुकला का प्रतीक है। इन हवेलियों और पोलों को सामुदायिक संगठनात्मक नेटवर्क की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, क्योंकि वह भी अहमदाबाद की शहरी विरासत का अभिन्न अंग है।

ऐतिहासिक शहर की लकड़ी आधारित वास्तुकला असाधारण महत्व की है और इस शहर की विरासत का सबसे अनूठा पहलू भी है। यह वास्तुकला, सांस्कृतिक परंपराओं, कला और शिल्प, संरचनाओं के प्रारूप और सामग्रियों के चयन में, अहमदबाद के महत्वपूर्ण योगदान को, और उन मिथकों और प्रतीकों के साथ शहर के जुड़ाव को प्रदर्शित करती है, जिसका यहाँ रहने वालों के साथ सांस्कृतिक संबंध है। शहर की घरेलू वास्तुकला की टाइपोलॉजी का क्षेत्रीय वास्तुकला के एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में प्रस्तुतीकरण और विवेचन किया जाता है, जिसका एक समुदाय-विशिष्ट कार्य और पारिवारिक जीवन शैली से संबंध है, जो इस शहर की विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कई धर्मों (हिंदू, इस्लाम, बौद्ध, जैन, ईसाई, पारसी, यहूदी) से संबंधित संस्थानों की उपस्थिति अहमदाबाद के ऐतिहासिक शहरी ढाँचे को बहुसांस्कृतिक सह-अस्तित्व का एक असाधारण और अनूठा उदाहरण बनाती है।
मानदंड (ii): 15वीं शताब्दी के सल्तनत काल के शहर की ऐतिहासिक वास्तुकला ने अपने समय में मानवीय मूल्यों के एक महत्वपूर्ण आदान-प्रदान को प्रदर्शित किया, जो वास्तव में सत्तारूढ़ प्रवासी समुदायों की संस्कृति को दर्शाता है। निर्माण योजना मानव मूल्यों के संबंधित सिद्धांतों और समुदाय के रहने और साझा करने के पारस्परिक रूप के स्वीकृत मानदंडों पर आधारित थी। धार्मिक दर्शन के प्रतिनिधि स्मारकीय भवनों ने शिल्प और प्रौद्योगिकी के सर्वोत्तम उदाहरणों को प्रस्तुत किया है, जो एक ऐसी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय सल्तनत वास्तुशिल्पीय अभिव्यक्ति के साक्षी हैं, जो भारत में अद्वितीय है। इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए, सल्तनत शासकों ने स्थानीय धार्मिक इमारतों के हिस्सों और तत्वों को शहर की मस्जिदों के निर्माण में जोड़कर उनका पुनः उपयोग किया। स्थानीय कारीगरों और राजमिस्त्रियों से अधिकतम काम लेकर छोटी इमारतों के रूप में कई नई मस्जिदें भी बनाई गई थीं, जिन उन लोगों को अपने स्वदेशी शिल्प कौशल का उपयोग करने की पूरी आजादी दी गई थी। इसलिए परिणामी वास्तुकला की एक प्रांतीय सल्तनत शैली विकसित हुई जो उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों में नहीं पाई जाती थी, जिसमें इस्लाम की धार्मिक इमारतों में स्थानीय परंपराओं और शिल्प को स्वीकार कर लिया गया था, भले ही इसमें इस्लामी धार्मिक इमारतों के निर्माण सिद्धांतों का सख्ती से पालन न किया गया हो। इस प्रकार सल्तनत काल के स्मारक, पश्चिमी भारत के इतिहास की 15वीं शताब्दी के दौरान, स्मारक कला में वास्तुकला और प्रौद्योगिकी के विकास का एक अनूठा चरण प्रस्तुत करते हैं।
मानदंड (v): सड़कों और सामुदायिक स्थानों के साथ, जीवित पर्यावरण के पदानुक्रम में अहमदनबाद शहर की निर्माण योजना, स्थानीय ज्ञान और मजबूत सामुदायिक बंधन की भावना प्रदर्शित करती है। पानी, सफाई और जलवायु नियंत्रण (विशेष रूप से आँगन) जैसे अपने स्वयं के प्रावधानों सहित, घर एक आत्मनिर्भर इकाई है। इसकी छवि, और, लकड़ी पर नक्काशी और धर्मवैधानिक अभिलेखों सहित, प्रतीकवाद के साथ इसकी अवधारणा, निवास स्थान का एक शानदार उदाहरण है। यह, जब समुदाय द्वारा अनूकूल स्वीकार्य रूप में अपनाया गया, तब, बस्ती स्तर पर अपने सार्वजनिक स्थानों में व्यक्त की गई सामुदायिक आवश्यकताओं के साथ, एक संपूर्ण निर्माण योजना उत्पन्न हुई और आत्मनिर्भर फ़ाटकदार गलियों "पोल" की रचना हुई। इस प्रकार, अहमदाबाद की, आस-पास एक दूसरे से सटे हुए पोल वाली निर्माण योजना, मानव निवास का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रदान करती है।

समग्रता

अहमदाबाद छह शताब्दियों में विकसित हुआ है और चक्रीय क्षय और वृद्धि के क्रमिक दौर से गुजरा है। कुल मिलाकर, शहर अभी भी अपने ढाँचे और शहरीपन में पूर्णता और अक्षुण्णता का अनुभव प्रदान करता है और अपने पारंपरिक लचीलेपन के साथ परिवर्तन और विकास को समावेशित करता है।

इस ऐतिहासिक शहर में, स्थलाकृति और भू-आकृति सहित, अखंडता की स्थितियाँ अभी भी काफी हद तक बरकरार हैं। जल व्यवस्था और प्राकृतिक सुविधाओं को स्थानीय अधिकारियों द्वारा, बुनियादी ढाँचे के प्रगतिशील कार्यान्वयन के कारण संशोधित किया गया है। इसका निर्मित वातावरण, दोनों ऐतिहासिक और समकालीन, शहर की आबादी और सामुदायिक आकांक्षाओं के संदर्भ में, परिवर्तित और विकसित किया गया है। जमीन के ऊपर और नीचे इसके बुनियादी ढाँचे में भी, जरूरत के अनुसार, क्रमिक रूप से वृद्धि और विस्तार किया गया है। इसके खुले स्थान और बगीचे, इसके भूमि उपयोग पैटर्न और स्थानिक संगठन काफी हद तक अपरिवर्तित रहे हैं क्योंकि पहले के समय के निशान बहुत ज्यादा नहीं बदले गए हैं। धारणाएँ और दृश्यात्मक रिश्ते (आंतरिक और बाहरी दोनों); इमारतों की ऊँचाई, और शहरी शैली, ढाँचे और संरचना के अन्य सभी तत्वों में बदलाव आए हैं, जिनमें से अधिकांश बदलाव मौजूदा ऐतिहासिक सीमाओं के अंदर समायोजित हो जाते हैं, हालाँकि समय के साथ कुछ विपथन भी हुए हैं।

प्रामाणिकता


अहमदाबाद बसावट की वास्तुकला घरेलू इमारतों के माध्यम से अपनी विशेषता प्रदर्शित करती है। लकड़ी की वास्तुकला को प्रमुखता से पसंद किया जाना शहर के लिए अद्वितीय है। पूरे वर्ष यहाँ के निवासियों को आराम प्रदान करने के लिए, यहाँ की बसावट का रूप मौसमी अनुक्रिया के अनुकूल है।

किले, मैदान-ए-शाही के अंत में तीन द्वार और इसके उत्तर और दक्षिण में एक एक बड़े मैदान के साथ जामा मस्जिद का निर्माण इस इस्लामी शहर को स्थापित करने में सुल्तान अहमद शाह का पहला कदम था। मैदान-ए-शाही के दोनों ओर और जामा मस्जिद के आस-पास की परिधि में उपनगर का विकास बाद के चरणों में हुआ।

सभी समुदायों के लिए घरेलू भवनों के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री, लकड़ी और ईंट की चिनाई सहित, मिश्रित है। लकड़ी ने उत्तम पर्यावरणीय आराम और सांस्कृतिक गुणवत्ता प्रदान की है। निर्माण तत्वों के आकारों के महत्वपूर्ण मौलिक नियंत्रण सहित, एक सामंजस्यपूर्ण आवासीय वातावरण को विकसित करने में इसका महान एकीकरणीय प्रभाव रहा है।
घर का कुल मिलाकर आकार जो भी हो, उसके अंदर केंद्र में एक आँगन होना एक स्वीकृत शैली थी। अंदर के कार्यों को, घर के आकार के आधार पर, आम तौर पर आंगन के आसपास या उसके किनारे आयोजित किया जाता था। यह सभी समुदायों में अनिवार्य रूप से समान था।

‘महाजन’ (कुलीन-वर्गीय संघ) की अवधारणा, जिसमें सभी लोग अपने धार्मिक विश्वासों के बावजूद शामिल हुआ करते थे, ने एक ऐसी सामाजिक संस्कृति का निर्माण किया जिसमें सामाजिक भलाई और साझा करने की महान भावना थी। यह इस्लामी और हिंदू-जैन अनुयायियों के अन्य प्रमुख समुदायों में भी देखा गया था। सामुदायिक बंधन, गुणकारी सह-अस्तित्व की प्रतिक्रिया के रूप में, सभी लोगों का मूलभूत कर्तव्य था। इस आधार पर बाजार आयोजित किए गए और सभी व्यापारी और कारोबारी इसका हिस्सा बन गए, जिसमें व्यक्तिगत हितों को सामूहिक नैतिकता के अधीनस्थ माना जाता था। इस प्रकार साझा की गई संस्कृति शहर में अनुकरणीय उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गई, जिसने इस शहर को उद्योग और व्यापार के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने में मदद की।

सुरक्षा तथा प्रबंधन संबंधी आवश्‍यकताएँ


अहमदाबाद में 28 समारक स्थित हैं जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा सूचीबद्ध किया गया है। एक स्मारक को राज्य पुरातत्व विभाग (एसडीए) द्वारा सूचीबद्ध किया गया है, और 2,696 महत्वपूर्ण भवनों का संरक्षण अहमदाबाद नगर निगम के धरोहर विभाग द्वारा किया जाता है।
एएसआई द्वारा सूचीबद्ध स्मारकों को पुरावशष तथा बहुमूल्य कलाकृति अिधिनयम, 1972, और प्रचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958, और संशोधन और मान्यकरण अधिनियम, 2010 (एएमएएसआर) के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर भी संरक्षण प्राप्त है। एसडीए द्वारा सूचीबद्ध स्मारक क्षेत्रीय महत्व के हैं और इनका संरक्षण एएमएएसआर द्वारा किया जाता है।
एमएमसी द्वारा सूचीबद्ध भवन और स्थल (दीवारयुक्त एतिहासिक शहर के घटक) अहमदाबाद शहरी विकास प्राधिकरण (एयूडीए) की विकास योजना द्वारा विशेष विनियम के अंतर्गत एक ज़ोन के रूप में संरक्षित किए जाते हैं।
धरोहर विभाग, एएमसी, अहमदाबाद में धरोहर प्रबंधन के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में शहर की धरोहर प्रबंधन योजना की तैयारी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एएमसी में सभी संबंधित प्रशासनिक खंड इसकी सहायता करते हैं, और इसके अलावा एयूडीए तथा एएसआई, गुजरात एसडीए और राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण भी इसकी सहायता करते हैं।
एएमसी में धरोहर विभाग को क्षमता निर्माण और तकनीकी क्षमता के साथ सम्पन्न किया जाना चाहिए, जो शहर के अभिलेखन, संरक्षण और निगरानी के चुनौतिपूर्ण आकार और सीमाओं के अनुसार होना चाहिए।

प्रस्तावित विरासत प्रबंधन योजना शहर की अपनी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और स्थायी प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। प्रबंधन योजना का उद्देश्य, ऐतिहासिक शहरी परिदृश्य पद्धति का उपयोग करते हुए, सतत विकास को बढ़ावा देना है जिससे अहमदाबाद के ऐतिहासिक शहर के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य की सुरक्षा और वृद्धि सुनिश्चित की जा सके। इसका उद्देश्य, शहर, समूह, और बड़े क्षेत्रीय स्तर पर, शहर के सभी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के प्रमुख घटक के रूप में, सांस्कृतिक विरासत संरक्षण और ऐतिहासिक क्षेत्रों के सतत शहरी विकास का एकीकरण करना है।
विकास नियंत्रण विनियमों में संशोधनों और परिवर्धनों को अंतिम रूप देने, उसका समर्थन और कार्यान्वयन करने के साथ, धरोहर प्रबंधन योजना के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
धरोहर प्रबंधन योजना के एक पूरक के रूप में, शहर के लिए एक आगंतुक प्रबंधन योजना को तैयार, अनुमोदित और कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
स्थानीय क्षेत्र योजना को धरोहर संरक्षण योजना के हिस्से के रूप में पूरा किया जाना चाहिए और उसे लागू किया जाना चाहिए और लकड़ी के ऐतिहासिक घरों के संरक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
संरक्षण और प्रबंधन प्रयोजनों के लिए ऐतिहासिक इमारतों के अभिलेखन के अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, ऐतिहासिक इमारतों का एक व्यापक और सटीक अभिलेखन किया जाना चाहिए, विशेष रूप से निजी स्वामित्व वाले लकड़ी के घरों का।
शहर के पश्चिमी भाग पर नए निर्माण और विकास परियोजनाओं के विस्तार और प्रभाव का एक विस्तृत मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

साबरमती नदी के पूर्वी तट पर स्थित, अहमदाबाद भारत की एकमात्र यूनेस्को शहरी विश्व धरोहर है। 15वीं शताब्दी में सुल्तान अहमद शाह द्वारा स्थापित अहमदाबाद कभी पूरी तरह से दीवारों से घिरा शहर था, जिसके केवल पंद्रह द्वार ही आज बरकरार हैं।
चालुक्य राजवंश, गुजरात सल्तनत, मुगल साम्राज्य और बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं, द्वारा अहमदाबाद शहर पर राज्य करने के कारण यहाँ किलों, मस्जिदों, और हिंदू और जैन मंदिरों का निर्माण हुआ। विशिष्ट शहरी विशेषताओं में पोल (एक दूसरे से सटे हुए पारंपरिक घर) और पुर (दरवाजों वाली पारंपरिक गलियाँ) शामिल हैं।

अदलाज वाव बावड़ी (स्टेपवेल)
अदलाज वाव को 1498 में रानी रुदाबाई ने बनवाया था। इसके तीन प्रवेश द्वार हैं, जो प्रत्येक कोनों में मंदिरों सहित, 16 स्तंभों पर स्थित एक विशाल मंच की ओर जाते हैं। अष्टकोणीय कुआँ पाँच मंजिल गहरा है और इसे अद्वितीय पत्थर की नक्काशियों से सजाया गया है जो कामुकता, वनस्पति, जीव और छाछ जैसे खाद्य पदार्थ प्रदर्शित करती हैं। अदलज बावड़ी गुजराती वास्तुकला का प्राथमिक उदाहरण है।

सिद्दी सईद की मस्जिद
सिद्दी सईद मस्जिद अहमदाबाद में सबसे प्रतिष्ठित ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। मस्जिद को उसकी मकड़ी के जाल की तरह बारीक जालियों वाली खिड़कियों के लिए जाना जाता है, जिनमें से दो में जीवन-वृक्ष की जटिल शाखाओं का चित्रण भी किया गया है। 1573 में निर्मित ये जटिल जालियाँ कभी पुराने किले की दीवार का हिस्सा हुआ करती थीं।

सरखेज रोजा

यह मस्जिद, मकबरा और महल परिसर अहमद शाह प्रथम के आध्यात्मिक सलाहकार, अहमद खट्टू गंज बख्श की याद में बनवाया गया था। ये विभिन्न इमारतें, 15वीं शताब्दी के मध्य में सुल्तान महमूद बेगड़ा द्वारा निर्मित एक बड़े तालाब के चारों ओर बनी हुई हैं। परिसर में महमूद बेगड़ा और गंज बक्श, दोनों, के मकबरे हैं।

जामा मस्जिद
1423 में अहमद शाह द्वारा निर्मित जामा मस्जिद भारत की सबसे खूबसूरत मस्जिदों में से एक है। इस मस्जिद के निर्माण में उपयुक्त अधिकांश सामग्री ध्वस्त हिंदू और जैन मंदिरों से ली गई थी और इसलिए यह मस्जिद इन धर्मों के साथ कुछ वास्तुशिल्पीय मिश्रण प्रदर्शित करती है। प्रार्थना कक्ष के 260 स्तंभों द्वारा समर्थित, कुछ गुंबदों पर कमल की नक्काशी विशिष्ट रूप से दिखाई देती है।
1819 के भूकंप में दो प्रसिद्ध हिलती मीनारें ऊपर से आधी ध्वस्त हो गईं , हालाँकि उनके निचले हिस्से अभी भी प्रार्थना कक्ष के मध्य पोर्टिको के बगल में खड़े हैं।

भद्रा का किला
1411 में अहमदाबाद में निर्मित भद्रा किले में एक सरकारी कार्यालय और एक काली मंदिर है। किले का द्वार, साबरमती के पश्चिम में फैले, अहमदाबाद दुर्ग का पूर्वी प्रवेश द्वार था। किले और इसके पूर्व में तीन दरवाज़ो के बीच में मैदान शाही या शाही चौक था, जहाँ शाही जुलूस और पोलो खेल आयोजित किए जाते थे।
मैदान आज स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय बाज़ार के रूप में कार्य करता है।

अहमदाबाद एक ऐसी सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है जिसने संस्कृति, और मानवीय मूल्यों के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। वर्षों से इस्लाम, हिंदू, बौद्ध, जैन, ईसाई, पारसी, और यहूदी धर्मों जैसी विभिन्न आस्थाओं का संरक्षण करने के कारण अहमदाबाद के ऐतिहासिक शहरी ढाँचे को बहुसांस्कृतिक सह-अस्तित्व का एक असाधारण और अनूठा उदाहरण माना जाता है।