कंचनजंगा संरक्षित जैवमंडल सिक्किम राज्य में स्थित है। इसकी पश्चिमी सीमा पर नेपाल और उत्तर-पश्चिम में तिब्बत (चीन) है। यह संरक्षित जैवमंडल, जो समुद्र सतह से 1,220 से 8,586 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, दुनिया के उच्चतम पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है। यह स्थल दुनिया के 34 जैवविविधता वाले केंद्रों में से एक है। इसमें बड़े प्राकृतिक वन शामिल हैं जो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में पाई जाने वाली उच्च जैवविविधता को बढ़ावा देते हैं। कृषि, बागवानी फ़सलें, पशुपालन, माहीगिरी, डेरी और मुर्गी पालन यहाँ की मुख्य आर्थिक गतिविधियाँ हैं।
हिमालय के परा-अक्षीय क्षेत्र में बसे हुए इस संरक्षित जैवमंडल के सबसे आम घटकों में बीहड़ों वाली घाटियाँ, गहरी खाइयाँ और जलमार्ग, वादियाँ, शिखर, पहाड़ियाँ एवं नदी वेदिकाएँ शामिल हैं। ये अधिकतर पहाड़ों के निचले हिस्से में पाए जाते हैं। ऊँचाई पर पहाड़ी ढलानें, पहाड़ के सुंदर चारागाहों का रूप ले लेती हैं। इस क्षेत्र में विभिन्न आकार की कई झीलें भी पाई जाती हैं। इन महत्त्वपूर्ण स्थालाकृतिक विशेषताओं के अतिरिक्त हिमालय की तलहटी में ऊपर की ओर निकली हुईं चट्टानें हैं जिनमें बर्फ़ीले हिमोढ़, खड़ी ढालें, पंछी के चंगुल के आकार की शिलाएँ आदि शामिल हैं। यहाँ 73 महत्वपूर्ण झीलें हैं जो 3.34 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई हैं जो सात जलसंभरों में अंतर्निहित हैं। हिमनद, पर्वत और शिखर इस संरक्षित जैवमंडल के सर्वोच्च बिंदुओं के रूप में स्थायी स्थान ग्रहण किए हुए हैं।
संरक्षित जैवमंडल सीमपारिक जैवविविधता के लिए एक मुख्य संरक्षण क्षेत्र है। इस क्षेत्र में लगभग 22 स्थानिक और 22 दुर्लभ एवं लुप्तप्राय पौधे हैं। संरक्षित जैवमंडल में कुछ नई वर्गिकियों की वनस्पतियाँ भी शामिल हैं, जैसे कि मायरमेकिस बखिमेंसिस (ऑर्किडेसिए), क्रैनियोटोम फरक्काटा वार. सिक्कीमेंसिस (लामियासी), क्रैनियोटोम फरक्काटा वार. यूरोलटा (लामियासी) और कॉर्टिएला गौरी (एपियासी)। यहाँ एपिफ़ाइट्स और लिआनास प्रचुर मात्रा में हैं। इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में बुरांश (रोडोडेंड्रोन) की लगभग 30 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं और 16 परिवारों से संबंधित 42 से अधिक प्रमाणित स्तनपायी जानवरों की प्रजातियाँ भी पाई गई हैं।
संरक्षित जैवमंडल का बहुत अधिक धार्मिक महत्त्व और सांस्कृतिक मूल्य है। यहाँ के कई पहाड़ तथा चोटियाँ, झीलें, गुफाएँ, चट्टानें, स्तूप और गर्म पानी के झरने पवित्र स्थान और तीर्थस्थल माने जाते हैं। संरक्षित जैवमंडल के भीतर कोई स्थानीय समुदाय नहीं है। संक्रमण क्षेत्र के 44 गाँवों में 8,353 परिवार रहते हैं जिनमें लोगों की कुल आबादी 35,757 है।
पर्यटन के ज़रिए थोड़ी-बहुत कमाई करने के अतिरिक्त, इस क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था अधिकतर पारंपरिक खेती-बाड़ी, बागवानी और पशुपालन पर निर्भर करती है। लेकिन ये सभी गतिविधियाँ अस्थायी आय प्रदान करने वाले कम महत्त्वपूर्ण उद्योग हैं। लगभग 75% घर-परिवार अपनी जीविका के लिए मूलभूत आवश्यकताओं पर ज़ोर देते हैं और वे संरक्षित जैवमंडल पर अधिक निर्भर नहीं करते।
कंचनजंगा संरक्षित जैवमंडल 2018 में यूनेस्को के संरक्षित जैवमंडलों के विश्व नेटवर्क (डब्लूएनबीआर) में शामिल किया जाने वाला भारत का ग्यारहवाँ संरक्षित जैवमंडल है। भारत में 18 संरक्षित जैवमंडल हैं जिनमें से अब तक 11 संरक्षित जैवमंडलों को डब्लूएनबीआर में शामिल किया गया है। कंचनजंगा संरक्षित जैवमंडल सिक्किम राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 41 प्रतिशत भू-भाग पर फैला हुआ है। यह सिक्किम के उत्तरी ज़िले के लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र को और पश्चिमी ज़िले के लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र को ढके हुए है। इसमें एक मुख्य क्षेत्र और चार मध्यवर्ती क्षेत्र हैं। यह नेपाल और चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा भी साझा करता है।
यह विशाल संरक्षित जैवमंडल, प्रकृति और संस्कृति के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का साक्षी है। इस संरक्षित जैवमंडल में और उसके आस-पास रहने वाले स्थानीय समुदाय दुनिया के तीसरे सबसे ऊँचे पर्वत, कंचनजंगा को उनका संरक्षक देवता मानते हैं और इसी पर्वत के नाम पर इस संरक्षित जैवमंडल का नाम रखा गया है। कंचनजंगा के प्रमुख देवताओं को संतुष्ट करने और सिक्किम में सुख-शांति और प्रसन्नता लाने के लिए सिक्किम में प्रत्येक वर्ष बम चू और पंग-लहबसोल त्योहार मनाए जाते हैं।
कंचनजंगा संरक्षित जैवमंडल दुनिया के सबसे बड़े संरक्षित जैवमंडलों में से एक है और यह अपनी प्रजातियों और पारिस्थितिक विविधता की भरमार के लिए जैवविविधता का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। संरक्षित जैवमंडल के मुख्य क्षेत्र का लगभग 86 प्रतिशत भाग पहाड़ी क्षेत्र के अंतर्गत आता है और शेष भाग हिमालय के आर्द्र शीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन क्षेत्रों में आते हैं। इस संरक्षित जैवमंडल का मुख्य क्षेत्र एक वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र भी है।
यहाँ सपुष्पक पौधों की कुल 4,500 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें 424 औषधीय पौधे, 11 प्रकार के बाँज, बसंती गुलाब की 60 प्रजातियाँ और पर्णांग की 362 प्रजातियाँ शामिल हैं। भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 द्वारा संरक्षित कई स्तनधारी प्रजातियाँ कंचनजंगा संरक्षित जैवमंडल में पाई जाती हैं। इनमें हिम तेंदुआ, हिमालयी काला भालू, कस्तूरी मृग, नीली भेड़, भौंकता हिरण, बोरैल और विशाल तिब्बती भेड़ शामिल हैं। इस संरक्षित जैवमंडल में सिक्किम के प्रांतीय पक्षी चिल्मिआ के साथ-साथ पक्षियों की 500 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें ट्रगोपैन फ़ेज़ेंट और मोनाल फ़ेज़ेंट जैसे बड़े आकार के तीतर भी शामिल हैं।
संरक्षित जैवमंडल में तीन मुख्य संबंधित क्षेत्र हैं- मुख्य क्षेत्र, मध्यवर्ती क्षेत्र और संक्रमण क्षेत्र। मुख्य क्षेत्र में एक संरक्षित पारिस्थितिक तंत्र है जो अत्यधिक विनियमन के अधीन है। मुख्य क्षेत्र भूदृश्यों, पारिस्थितिक तंत्रों, अनुवांशिक भिन्नता और प्रजातियों की विविधता के संरक्षण में योगदान देता है। मध्यवर्ती क्षेत्र मुख्य क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है और यह गतिविधियों की आंशिक निगरानी करता है। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से ऐसी गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता है जो पारिस्थितिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मूल्यवान हैं। तीसरा क्षेत्र संक्रमण क्षेत्र है जहाँ ऐसी अधिक-से-अधिक मानवीय गतिविधियों की अनुमति है जो पारिस्थितिकी और सामाजिक-सांस्कृतिक तत्वों को हानि पहुँचाए बिना सभी की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हों।
पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कंचनजंगा संरक्षित जैवमंडल के चार मध्यवर्ती क्षेत्रों को विकसित किया जा रहा है। इन क्षेत्रों में वृक्षारोपण और मृदा संरक्षण भी किया जा रहा है। संक्रमण क्षेत्र पारिस्थितिक पर्यटन, जैविक खेती और सामाजिक-आर्थिक विकास का केंद्र है।