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अचानकमार- अमरकंटक जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र

अचानकमार-अमरकंटक जीवमंडल आरक्षण क्षेत्र भारत के छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश राज्यों में सबसे प्रभावशाली और पारिस्थितिक रूप से विविध परिदृश्य है। यह दोनों राज्यों में कम विकसित और सबसे कम मानव क्रियाओं द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। इसमें अत्यधिक मूलभूत प्राकृतिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ सम्मिलित हैं।


पारिस्थितिक विशेषताएँ 


अचानकमार-अमरकंटक जीवमंडल आरक्षण क्षेत्र ऊँचे पर्वतों से लेकर, उथली घाटियों और मैदानों की स्थलाकृति के साथ, पहाड़ी श्रृंखलाओं के जोड़ (जंक्शन) पर स्थित है। नम पर्णपाती वन क्षेत्र का ६३% हिस्सा है। यह अपने अधिकांश क्षेत्र में फैले उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वनस्पतियों और अपने दक्षिणी भाग में उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनस्पतियों के कारण वनस्पतियों और जीवजंतुओं में बहुत संपन्न है। यहाँ मानव क्रियाओं द्वारा न्यूनतम प्रभावित भूदृश्य, स्थानिकता और आनुवंशिक भिन्नता है। इस क्षेत्र में थैलोफ़ाइटा, ब्रायोफ़ाइटा, टेरिडोफ़ाइट, जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म के ७९९ पौध वंश से संबंधित लगभग १४९८ पौधों की प्रजातियाँ हैं। ३ स्थानिक और २८२ क्षेत्रीय रूप से दुर्लभ प्रजातियाँ हैं, तथा विश्वस्तरीय संकटापन्न पुष्प संबंधी प्रजातियों की ३९ विभिन्न श्रेणियाँ हैं। पशुओं में, अकशेरुकी और कशेरुकी जीवों के २५६ वंश से संबंधित ३२७ प्रजातियाँ हैं, और इसके अलावा कई वर्गीकरण-पद्धति की दृष्टि से अवर्णित प्रजातियाँ भी  हैं। जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र ६७ विलुप्तप्राय प्रजातियों का आवास है, जो आईयूसीएन २००१ वर्गीकरण के अनुसार वैश्विक संकट की विभिन्न श्रेणियों में विभाजित की जा सकती हैं, जैसे चार सींग वाले मृग (टेट्रासेरस क्वाडरीकोर्निस), भारतीय जंगली कुत्ता (क्यूआन ऐल्पाइनस), सारस (ग्रस एंटीगोन), एशियाई सफेद पीठ वाला गिद्ध (जिप्स बैंगालॅन्सिस), सेक्रेड ग्रोव बुश फ्रॉग (फ़ीलोटस सैन्क्टिसिलवेटिकस)।


क्षेत्र का भूतत्त्व अद्वितीय है और ग्रेनाइट के साथ शीस्ट और शैल (नाइस) से लेकर बलुआ पत्थर, शेल, चूना पत्थर, बेसाल्टी लावा और बॉक्साइट तक विविध प्रकार का है। मिट्टी संरचना और बनावट विविध प्रकार की है जिसमें रेतीली से लेकर बलुई चिकनी मिट्टी, सामान्यतः हल्के भूरे से भूरापन लिए हुए और कुछ स्थानों पर पीलापन लिए हुए हरी चिकनी मिट्टी तक यहाँ मिलती है। लाल मिट्टी जो लौह ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण झरझरी  और उपजाऊ होती है, कई क्षेत्रों में बहुत सी नदियों के किनारे की जलोढ़ मिट्टी तथा कई क्षेत्रों में काली कपास की मिट्टी, पारिस्थितिकी तंत्र और प्रजातियों का पोषण करती हैं। मृदा और नमी संरक्षण, चेक बाँधों का निर्माण, नष्ट हुए बाँस के जंगलों की बहाली, घास के मैदानों  के विकास और भूदृश्य के संरक्षण के लिए पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार किया जा रहा है।


सामाजिक-आर्थिक विशेषताएँ 

सत्ताईस आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय ४१८ गाँवों में निवास करते हैं। पिछली जनगणना (२००१) के अनुसार २७ समुदायों से संबंधित क्षेत्र की कुल जनसंख्या ४३६१२८ है। मुख्य व्यवसाय कृषि (औषधीय पौधों के उत्पादन सहित), बाँस हस्तशिल्प और मध्यवर्ती क्षेत्र तथा संक्रमण क्षेत्रों में बनाए जाने वाले गैर-लकड़ी उत्पाद हैं।
 

अचानकमार-अमरकंटक जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र मध्य भारत में स्थित एक अंतर्राज्यीय क्षेत्र  है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के दो राज्यों में फैले, यह देश के पारिस्थितिक रूप से विविध और मानव क्रियाओं द्वारा न्यूनतम प्रभावित जैव-भौगोलिक क्षेत्र में स्थित है। यह ३८३५.५१ वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें से ५५१.५५ वर्ग किमी. आतंरिक क्षेत्र है। जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र तीन प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं (मैकल, सतपुड़ा और विंध्य) के जंक्शन पर स्थित होने के कारण यहाँ का भूदृश्य पहाड़ियों, उथली घाटियों और मैदानों के साथ अंकित है। पहाड़ कई जल-धाराओं, और तीन प्रमुख नदियों, नर्मदा, जोहिला और सोन के लिए प्रमुख स्रोत हैं। २००५ में इस क्षेत्र को जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फ़ीयर रिज़र्व) बनाया गया था और इसे २०१२ में यूनेस्को के विश्व जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र संघ (वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ़ बायोस्फ़ीयर रिज़र्व) का हिस्सा घोषित किया गया था। 


इस आरक्षित क्षेत्र में अद्वितीय और विविध भूतत्त्व है जो ग्रेनाइट के साथ शैल और शीस्ट से लेकर बलुआ पत्थर, शेल, चूना पत्थर, बेसाल्टी लावा और बॉक्साइट से बना है। इसके परिणाम स्वरूप, यहाँ की मिट्टी रेतीली से बलुई चिकनी मिट्टी, सामान्यतः हल्का भूरे से भूरापन लिए हुए, और कुछ स्थानों पर पीलापन लिए हुए हरी चिकनी मिट्टी तक, विविध प्रकार की है। इस क्षेत्र में तीव्र ग्रीष्मकाल, ठंडी सर्दियाँ और बरसात के मौसम के साथ विशिष्ट मानसून की जलवायु का अनुभव होता है।


यह क्षेत्र मुख्य रूप से नम पर्णपाती वनों से आच्छादित है जहाँ वनस्पतियों की १५२७ प्रजातियाँ और जीवजंतुओं की ३२४ प्रजातियाँ मौजूद हैं। वनस्पतियों में थैलोफ़ाइटा (शैवाल, कवक और लाइकेन), ब्रायोफ़ाइटा, फ़र्न, जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म सम्मिलित हैं। बीहड़ पहाड़ी इलाक़ा, साथ ही घास के मैदान, वन्यजीवों की ३२७ प्रजातियों को आश्रय देता है, जिसमें बाघ, बाईसन, भालू, चित्तीदार हिरण, चीता, वनबिलाव, लोमड़ी और सांभर सम्मिलित हैं। यहाँ चार सींग वाले मृग, भारतीय जंगली कुत्ते, सारस, एशियाई सफेद पीठ वाले गिद्ध, और सेक्रेड ग्रोव बुश फ्रॉग जैसी कुछ विलुप्तप्राय प्रजातियाँ भी हैं।


आतंरिक क्षेत्र में संरक्षित वन भूमि है, और मध्यवर्ती तथा संक्रमण क्षेत्रों में कृषि भूमि और नगर-क्षेत्र के छोटे समूह सम्मिलित हैं। इस आरक्षित क्षेत्र में लगभग ४०० गाँवों में कम से कम २७ आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय रहते हैं। यहाँ निवास करने वाली प्रमुख जनजातियाँ बैगा, गोंड, कोल, कंवर, परधान, और पंका हैं। वनोपज एकत्रित करने के अलावा, वे गेहूँ, मक्का और औषधीय पौधों जैसी मौसमी फसलें भी उगाते हैं। मध्यवर्ती क्षेत्र तथा संक्रमण क्षेत्रों में रहने वाले लोग बाँस हस्तशिल्प और गैर-लकड़ी उत्पाद बनाते हैं।


आरक्षित क्षेत्र में स्थित अमरकंटक शहर एक पवित्र स्थान है। यह नर्मदा नदी का उद्गम स्थल माना जाता है और हिंदू संत, आदि शंकराचार्य, के बारे में कहा जाता है कि वे इसका दर्शन करने आए थे। इस कारण से भक्त यहाँ मंदिरों और आश्रमों का दर्शन करने आते हैं। आरक्षित क्षेत्र अपने पठारों, वन श्रेणियों, झरनों और झीलों से पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है। 


मानव गतिविधि और बदलती वैश्विक जलवायु आरक्षित क्षेत्र के लिए समस्याएँ खड़ी कर रही  हैं। प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग, जल निकायों में अवांछित खरपतवार की तेजी से वृद्धि, स्वदेशी वनस्पतियों के लिए खतरा और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अनियमित उपयोग जैसे मुख्य चिंताजनक विषय हैं। घरेलू मलजल के अनुचित निष्कासन से उत्पन्न जल प्रदूषण भी समान रूप से महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। स्थानीय लोगों सहित, सभी हितग्राहियों की भागीदारी से इन समस्याओं का समाधान किया जा रहा है।