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तूतीनामा
पशु दंतकथाएँ, लोक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो सदियों से दुनिया भर में लोगों को मोहित करती आई हैं। तूतीनामा, जिसका शाब्दिक अर्थ है, "एक तोते की दास्ताँ", फ़ारसी में 52 कहानियों का एक संग्रह है, जिसे ज़िया अल-दीन नखशाबी द्वारा लिखा गया था। 14वीं शताब्दी का यह फ़ारसी मूल-ग्रंथ, 12वीं शताब्दी के एक संस्कृत संकलन की पुनरावृत्ति था, जिसका शीर्षक शुकसप्तति अर्थात तोते की सत्तर दास्तानें था। तत्पश्चात, मुगल सम्राट अकबर ने तूतीनामा के खूबसूरत चित्रण नियुक्त किए। इसकी समृद्ध सचित्र पांडुलिपि आगामी शताब्दियों के इतिहासकारों और विद्वानों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण रही। यह उस दौर के समाज और मूल्यों के अध्ययन का महत्वपूर्ण साहित्यिक और कलात्मक वाहक बनी।
52 कहानियों के एक संकलन के रूप में, तूतीनामा कथाकार का अनुसरण करता है: एक तोता जो अपनी मालकिन खुजास्ता को 52 रातों के लिए 52 कहानियों का वर्णन करता है। कहानी में आगे ऐसा पता चलता है कि खुजास्ता का पति, मैमुनिस एक व्यापारी था, जो व्यवसाय के कारण दूर होने पर, अपनी पत्नी को एक मैना और एक तोते के साथ छोड़ गया था। इस सचित्र पांडुलिपि में, उस वाक्य का वर्णन मिलता है, जिसमें एक मैना, खुजास्ता को अवैध संबंध रखने के लिए मना करती है, जिसके कारण खुजासता उसे मार डालती है। उसके बाद उसका वफ़ादार तोता लगातार 52 रातों तक हर रात उसे एक दिलचस्प कहानी सुनाकर, अप्रत्यक्ष रूप से लुभाने का तरीका खोज निकालता है जिससे उसका ध्यान किसी भी व्यभिचारी कृत्यों की ओर जाने से भटक जाए। ये कहानियाँ बुद्धिमत्ता और हास्य से भरी होती थीं, और इसके विषय, पशु दंतकथाओं या उन महिलाओं के आसपास केंद्रित थे, जो अपने गुणों या बुद्धि का उपयोग करके अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होती थीं।
सम्राट अकबर की शिल्पशाला के कई कलाकार पांडुलिपि की चित्रण परियोजना में शामिल थे, जिनमें प्रसिद्ध मुगल कलाकार, मीर सैय्यद अली और अब्द अल-समाद भी थे। प्रमोद चंद्र और शेरमन ली सहित कई इतिहासकारों द्वारा यह तर्क दिया गया है, कि अकबर द्वारा अधिकृत सचित्र पांडुलिपि, मुगल शैली के सबसे शुरुआती चरणों को दर्शाती है। पांडुलिपि का चित्रण और लेखन, चमकीले खनिज-आधारित वर्णकों का उपयोग करके एक पतले हाथी के दाँत के रंग के कागज़ पर किया गया है। पांडुलिपि में उपयोग किए जाने वाले रंगों में आर्सेनिक-आधारित पीला, पारा-आधारित लाल, सोना, चाँदी, चार सफ़ेद वर्णक और हरे और नीले रंगों के विभिन्न वर्णक शामिल थे। इसके अलावा, छवियों पर अरबी लिपि में सुलेख भी थे, जिन्हें नक्श कहा जाता है।
क्लीवलैंड म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट में तूतीनामा की लगभग पूरी सचित्र पांडुलिपि पाई जा सकती है। सम्राट अकबर के लिए तूतीनामा का दूसरा संस्करण भी बनाया गया था। हालाँकि, यह संस्करण कई संग्रहों में बिखरा हुआ है, इसका एक महत्वपूर्ण अनुभाग, डबलिन की चेस्टर बीट्टी लाइब्रेरी में उपलब्ध है।

खुजास्ता को संबोधित करता तोता

आठवीं रात - पति अपनी पत्नी को चीनी की जगह बजरी खरीदने के लिए फ़टकारता है

सत्रहवीं रात - बूढ़ी खूरीददार, मंसूर की पत्नी को युवक का प्यार भरा संदेश पहुँचाती है

बत्तीसवीं रात - कैवान, लतीफ़, और शरीफ़, उतारिद के साथ, खुर्शीद के निवास पर
तूतीनामा का प्राथमिक ऐतिहासिक महत्व इस बात से पता चलता है, कि यह पांडुलिपि उस समाज के कई पहलुओं के अध्ययन का एक ऐसा साहित्यिक और सचित्र वाहक है, जिसमें यह प्रस्तुत की गई थी। चित्रकारियों में उस समय के प्रचलित आभूषणों, वेशभूषाओं, धार्मिक एवं सामाजिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं की झलक दिखाई देती है। इसके अलावा, तूतीनामा की चित्रकारियों में कई नृत्य कलाओं को भी दर्शाया गया है। इस पांडुलिपि के द्वारा, उस समाज के विस्तृत भौगोलिक ज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय जागरूकता के बारे में भी पता लगाया जा सकता है, क्योंकि इन कहानियों के नायक, पूर्वी अफ़्रीका, अफ़गानिस्तान, इराक और चीन जैसे विभिन्न क्षेत्रों से आते थे। मुगल काल की सबसे शुरुआती सचित्र पांडुलिपियों के रूप में, तूतीनामा की चित्रकारियों ने आगामी मुगल शैली में बनाए गए लघुचित्रों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की और इसीलिए यह एक अमूल्य ऐतिहासिक स्रोत हैं।

चालीसवीं रात - तोता खुजास्ता को संबोधित करता है