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तेज़पुर - नाम के पीछे की कहानी
प्रकृति की गोद में बसा असम राज्य, मिथकों, रहस्यों, कथाओं, और किंवदंतियों का एक खज़ाना है। असमिया में ‘साधु कथा’ कहलाई जानी वाली ये कहानियाँ हज़ारों साल पुरानी हैं और इस भूमि और यहाँ के लोगों के इतिहास, संस्कृति, और परंपराओं के विषय में बताती हैं। ‘तेज़पुर’, विशाल नदी, ब्रह्मपुत्र के किनारे बसा हुआ एक प्राचीन शहर है, जहाँ की ऐसी ही एक किंवदंती प्रसिद्ध है। तेज़पुर को ‘शाश्वत प्रेम का शहर’ कहा जाता है, क्योंकि यहाँ एक ऐसी प्रेम कहानी ने जन्म लिया था, जो एक यादगार युद्ध का कारण बनी।

तेज़पुर के चित्रलेखा उद्यान में मौजूद पत्थर पर बनी नक्काशियाँ। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स
यह कहानी बाणासुर नामक एक असुर राजा की है, जो उस समय के सोनितपुर (वर्तमान में तेज़पुर) राज्य के शासक थे। ऐसा माना जाता है कि वे सहस्त्र भुजाओं के साथ पैदा हुए थे और भगवान शिव के प्रचंड भक्त थे। भगवान उनकी भक्ति से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने राजा को एक वरदान दिया। राजा ने शिव जी से अनुरोध किया कि वे स्वयं आकर उनके शहर के प्रवेशद्वारों पर पहरा दें। कहानी के अनुसार, एक दिन राजा ने भगवान शिव से यह कहा कि वे किसी ऐसे व्यक्ति से लड़ाई करना चाहते हैं, जो उन्हीं के जितना ताकतवर और बलशाली हो। इसपर भगवान शिव ने राजा से कहा कि उनकी यह इच्छा तभी पूरी होगी, जब उनके महल का ध्वजस्तंभ टूट जाएगा। साथ ही, शिव जी ने बाणासुर को यह चेतावनी भी दी कि उनका मुकाबला एक ऐसे महान योद्धा से होगा, जो उनका अहंकार तोड़ देगा।
बाणासुर की एक सुंदर जवान बेटी थी, जिसका नाम उषा था। उसके विवाह के सभी प्रस्तावों को ठुकराकर बाणासुर ने अपनी बेटी को ‘अग्निगढ़’ नामक एक किले में कैद कर दिया था। प्रतिमाओं से सजा अग्निगढ़ का वर्तमान हरा-भरा पहाड़ी उद्यान, किसी समय बाणासुर के राज्य का एक किला था और चारों ओर से अग्नि से घिरा हुआ था। अपनी कैद के दौरान, उनकी बेटी उषा ने एक रात सपने में एक नौजवान को देखा और उसी पल वह उससे प्रेम करने लगी। उसने अपना यह सपना अपनी सहेली चित्रलेखा को बताया, जो न केवल एक निपुण चित्रकार थी, बल्कि अलौकिक शक्तियों से भी संपन्न थी। एक करीबी सहेली होने के करण, उसने उषा के वर्णन के अनुसार उस नौजवान का एक चित्र बनाया।

अग्निगढ़ में चित्रलेखा को अपना सपना सुनाते हुए उषा की एक प्रतिमा। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स
ये नौजवान भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध निकले। जब चित्रलेखा ने यह देखा कि उषा उनके प्रेम में डूबी है, तब उन्होंने अपनी जादुई शक्तियों से सोए हुए अनिरुद्ध को किले में पहुँचा दिया, जहाँ उषा से उनका विवाह संपन्न हुआ। जब राजा बाण को उनके गुप्त प्रेम के बारे में पता चला, तब उन्होंने अनिरुद्ध को कैद करके उसे साँपों से बाँध दिया।
कृष्ण को जल्द ही पता चल गया कि उनके पोते को बंदी बना लिया गया है। कुछ ही देर में कृष्ण की यादव सेना ने द्वारका से आकर सोनितपुर पर आक्रमण कर दिया और महल के ध्वजस्तंभ को तोड़ दिया। यादवों के सामने असुर टिक नहीं पाए और बाणासुर को भगवान शिव की शरण में जाना पड़ा, जिन्होंने राजा को रक्षा का वचन दिया था। इसके बाद ‘हरि’ (कृष्ण) और ‘हर’ (शिव) के बीच एक ऐसा घमासान युद्ध हुआ, जिसे बाकी देवता देखते ही रह गए। बाणासुर को जल्द ही इस बात का एहसास हो गया कि कृष्ण की सेना को परास्त करना उनके लिए असंभव है और अंततः उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। फिर बाणासुर ने उषा और अनिरुद्ध को कैद से रिहा कर दिया। उन्होंने दोनों को उपहारस्वरूप एक सोने का रथ देकर द्वारका प्रस्थान करने की आज्ञा दी। जब यादव सेना नववर और नववधू के साथ द्वारका पहुँची, तब उनका बड़े ही हर्ष और उल्लास से स्वागत किया गया।

अग्निगढ़ में उषा और अनिरुद्ध का विवाह दर्शाती प्रतिमा। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स
लेकिन सोनितपुर का युद्ध इतना भीषण था कि इसमें दोनों सेनाओं के हज़ारों लोग मारे गए और पूरा शहर खून से लथपथ हो गया। असमिया में ‘तेज़’ शब्द का अर्थ है ‘खून’, जिसके करण इस रक्तपात के परिमाणस्वरूप ही इस क्षेत्र को तेज़पुर (खून का शहर) कहा जाने लगा।
तेज़पुर शहर ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान में इसे असम की ‘सांस्कृतिक राजधानी’ कहा जाता है। भले ही तेज़पुर की कहानी लोककथाओं पर आधारित है, लेकिन इसके बावजूद यह आज भी उस असीम प्रेम की कथा का स्मरण दिलाती है, जिसके कारण इस शहर को इसकी वर्तमान पहचान मिली।

अग्निगढ़ में हुए हरि-हर युद्ध का दृश्य। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स