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सोनम शेरिंग लेपचा
रोंग लापोन
रोंग लापोन (लेपचा मास्टर) के नाम से लोकप्रिय, सोनम शेरिंग लेपचा ने सिक्किम में लेपचा लोक संगीत को पुनर्जीवित और पुनर्स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 3 जनवरी, 1928 को कलिम्पोंग (पश्चिम बंगाल) की बंग बस्ती में जन्मे शेरिंग, सिक्किम की स्थानीय कलाओं को बढ़ावा देने में बहुत सहायक रहे हैं। शेरिंग ने अपनी औपचारिक शिक्षा पाँचवीं कक्षा तक जारी रखी और 1945 में वे अंग्रेज़ी फ़ौज के अधीन 10वें गोरखा राइफ़ल्स में शामिल हो गए। कई कारणों से शेरिंग लंबे समय तक इस पेशे को जारी नहीं रख पाए और अपने गाँव बंग बस्ती लौट गए। घर जाने के बाद, शेरिंग की लेपचा लोक संगीत में दिलचस्पी बढ़ी और उन्होंने लेपचा संस्कृति को पुनर्जीवित करने के सभी सम्भव प्रयास किए।

सोनम शेरिंग लेपचा

Sonam Tshering Lepcha in his museum
1950 के दशक में सोनम शेरिंग ने सिक्किम के अलग-अलग भागों की यात्रा की और विभिन्न पारंपरिक लेपचा गीतों, वाद्ययंत्रों, कलाकृतियों और पांडुलिपियों को इकट्ठा किया। उन्होंने खुद पारंपरिक वाद्ययंत्रों को बजाना भी सीखा और लेपचा लोगों की समृद्ध सांगीतिक धरोहर का प्रचार करने के लिए प्रतियोगिताएँ आयोजित कीं। सन् 1960 में सोनम शेरिंग आकाशवाणी पर सुने जाने वाले लेपचा समुदाय के सबसे पहले कलाकार बने। उन्होंने लेपचा लोक कथाओं पर आधारित दो सौ से अधिक लोक गीतों और दस नृत्य-नाटिकाओं की रचना की और उन्हें संगीतबद्ध किया। 1963 में शेरिंग ने अपनी पहली सांगीतिक नृत्य-नाटिका ‘तीस्ता-रंगीत’का मंचन किया।
लेपचा संस्कृति को विकसित करने और उसका प्रचार करने में सोनम शेरिंग लेपचा के प्रयासों को सरकार द्वारा सराहा गया और उन्हें लेपचा समुदाय और उसकी संस्कृति में अमूल्य योगदान देने के लिए सन् 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और सन् 2007 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। कलिम्पोंग में स्थित लेपचा संग्रहालय, जिसका निर्माण सोनम शेरिंग लेपचा द्वारा किया गया, लेपचा लोगों की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस संग्रहालय में उनके द्वारा जीवनभर इकट्ठे किए गए वाद्ययंत्रों और पांडुलिपियों के साथ लेपचा लोगों की संगीत परंपरा से संबंधित कई वस्तुएँ भी शामिल हैं। सन् 2011 में सोनम शेरिंग लेपचा ने ‘वॉन जाट लिंग छ्यो’: लेपचा लोक-गीतों . का एक संग्रह’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित की। सोनम शेरिंग लेपचा, लेपचा संस्कृति के एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे। उनकी मृत्यु सन् 2020 में 95 वर्ष की आयु में हुई। वे अपने पीछे लेपचा लोक-संगीत और संस्कृति की एक अनमोल विरासत छोड़ गए हैं।

लेपचा संग्रहालय की एक झलक