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पूर्वोत्तर भारत के ऑर्किड
पूर्वोत्तर भारत में वनस्पति की समृद्ध विविधता है, और इसे अक्सर 'फूलों वाले पौधों का केंद्र' माना जाता है। ऑर्किड इस विविधता में योगदान देने वाले सबसे व्यापक पौधों के परिवारों में से एक हैं। भारत में, ऑर्किड का अध्ययन सबसे पहले 1875 और 1897 के बीच प्रकाशित सर जे.डी. हुकर की ‘द फ़्लोरा ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया’ में ‘ऑर्किडया’ नामक भाग में दर्ज किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि भारत में उगने वाली लगभग 1300 ऑर्किड प्रजातियों में से 850 से अधिक प्रजातियाँ पूर्वोत्तर राज्यों में उगती हैं। इन राज्यों में, ऑर्किड प्रजातियों का सबसे अधिक प्रसार अरुणाचल प्रदेश में पाया जाता है, जिसे भारत का 'ऑर्किड स्वर्ग' भी कहा जाता है, जिसके बाद सिक्किम का स्थान आता है। हालाँकि, प्रत्येक राज्य में पाई जाने वाली ऑर्किड प्रजातियों के घनत्व के बावजूद, ऑर्किड मूल रूप से सभी राज्यों में स्थानीय आबादी के साथ-साथ उनकी पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों और संस्कृतियों से सहज रूप से जुड़े हुए हैं।

पूर्वोत्तर में स्थानीय ऑर्किड

राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा, असम और अरुणाचल प्रदेश का राजकीय पुष्प
राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा एक तरह का फ़ॉक्सटेल ऑर्किड है, जिसकी लता पर गुलाबी या बैंगनी, और सफ़ेद फूल उगते हैं। यह पूर्वोत्तर भारत में सब जगह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, खासतौर पर असम और अरुणाचल प्रदेश की तलहटी में। यह साल में एक बार अप्रैल में खिलता है, जो बसंत ऋतु के आरंभ का प्रतीक है, और इसे दोनों राज्यों के राजकीय पुष्प का स्थान दिया गया है।
राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा को स्थानीय तौर पर 'कोपु फूल' कहा जाता है। यह असमिया संस्कृति में बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह रोंगाली बिहू (या बोहाग बिहू), के त्योहार का प्रतीक है, जो असम का नया साल होता है। ये फूल बिहू के साथ-साथ उल्लास, उपजाऊपन, और मानव और प्रकृति दोनों में प्रेम के पर्याय बन गए हैं। ये ऑर्किड लोक गीत, कविता, और कला की विषयवस्तु के रूप में प्रसिद्ध हैं। कोपु फूल को आम तौर पर बिहू नृत्य करती हुई युवा स्त्रियों के बालों की शोभा बढ़ाते हुए देखा जा सकता है। ऐसी ही प्रथाएँ अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर की स्त्रियों में भी प्रचलित हैं। मणिपुर की स्त्रियाँ अपने बालों को ऑर्किड से सजाती हैं, और साथ में उनका बाजूबंद के रूप में आभूषण के तौर पर भी प्रयोग करती हैं।

Bअपने बालों में कोपु फूल लपेटे हुए बिहू नर्तकियाँ

पूर्व कमेंग, अरुणाचल प्रदेश, में पाया जाने वाला डेंड्रोबियम फ़िम्ब्रिएटम
अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कमेंग जिले में, डेंड्रोबियम प्रजाति के ऑर्किड को पवित्र माना जाता है क्योंकि उनका उपयोग स्थानीय बौद्ध मठों, जिन्हे गोम्पा कहा जाता है, की सजावट में किया जाता है। पूर्वोत्तर की अन्य जनजातियों, विशेष रूप से असम और अरुणाचल प्रदेश की ताई जनजातियों में, ऑर्किड बहुत अधिक सामाजिक-धार्मिक महत्व रखते हैं। जंगली ऑर्किड का उपयोग भोजन, चारे, लोक चिकित्सा और जड़ी बूटी से स्वास्थ्य उपचार में किया जा रहा है। ये पारंपरिक ज्ञान का हिस्सा हैं जो स्थानीय लोगों में पीढ़ियों से चला आ रहा है। अरुणाचल प्रदेश के खामटी लोगों को ऑर्किड के औषधीय उपयोगों के बारे में सबसे अधिक सुविज्ञ माना जाता है।
हाल के दिनों में, वनों की कटाई, जैव चोरी, और आकर्षक पौधों के अवैध व्यापार जैसे आसन्न संकटों की वजह से, पूर्वोत्तर भारत में पाई जाने वाली ऑर्किड की कई प्रजातियों पर ध्यान आकर्षित हुआ है। पवित्र उपवनों रूपी प्राकृतिक आवास में ऑर्किड के संरक्षण सहित, समुदाय-आधारित वन्यजीव संरक्षण, लंबे समय से इस क्षेत्र के लोगों की सामाजिक-आर्थिक संस्कृति का हिस्सा रहा है। ऑर्किड जैसी संकटग्रस्त वनस्पति का संरक्षण करने के लिए यहाँ अभयारण्यों, संचयनों, राष्ट्रीय उद्यानों, और विश्व धरोहर स्थलों का एक विशाल नेटवर्क भी मौजूद है। इस संबंध में, अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कमेंग जिले में सेसा ऑर्किड अभयारण्य, ऑर्किड को समर्पित संरक्षित क्षेत्र का एक उदाहरण है। वर्तमान में इसमें 200 से अधिक ऑर्किड प्रजातियाँ हैं। सेसा से बीस किलोमीटर दूर, ऑर्किड अनुसंधान और विकास केंद्र एक ऑर्किड आलय है जिसकी अपनी पौधशाला और ऊतक संवर्धन प्रयोगशाला है।