- 67 views
निगलने वाली झील की कहानियाँ - पला तिपो

पलक झील. चित्र स्रोत : मारा स्वायत्त ज़िला परिषद
पलक झील, जिसे सामान्यतः, पला तिपो कहा जाता है, (मारा भाषा में इसका अर्थ 'निगलने वाली झील' है), मिज़ोरम की सबसे बड़ी झील, और राज्य की एक अत्यंत महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संपत्ति है। हरे-भरे उष्णकटिबंधीय और पर्णपाती जंगलों, हरे-भरे मैदानों, और भव्य पहाड़ों से घिरी हुई, इस अंडाकार झील की अनुमानित लंबाई 870 मीटर और इसकी गहराई 17- 25 मीटर है। यह आस-पास के पारिस्थितिक तंत्र का केंद्र है। इस झील के कारण ऐसे पौधों और जानवरों का पोषण होता है, जिनमें से अधिकतर को विलुप्तप्राय समझा जाता है।
राज्य के दक्षिणी छोर के पास सैहा जिले में स्थित, यह झील भौगोलिक रूप से भारत-बर्मा जैव विविधता अतिक्षेत्र (हॉट-स्पॉट) के अंतर्गत आती है। मिज़ो तावंग (तिब्बती-बर्मी भाषा समूह की कुकी-चिन भाषा, जिसे मुख्यतः भारत और म्यांमार में बोला जाता है) में पलक ‘दिल’ का अर्थ 'झील' है। यह झील, पलक वन्यजीव अभयारण्य का एक प्रमुख प्राकृतिक केंद्र बिंदु है।
मारा स्वायत्त ज़िला परिषद द्वारा 1984 में आर्द्रभूमि को आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था, और राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत इसे राष्ट्रीय आर्द्रभूमि के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इस झील में दो पहाड़ी नदियों से पानी आता है, और इसका अपवाह क्षेत्र, घाटी का एक उपजाऊ हिस्सा है, जो मारा लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र है। इसके महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कार्य, और विशेष रूप से स्थानांतरणशील कृषि में इसके आस-पास के जंगलों का व्यापक उपयोग होने के कारण, पलक झील को 2021 से रामसर स्थलों की सूची में सम्मिलित किया गया है, जिससे इसके संरक्षण के महत्त्व को उजागर किया जा सके।

पहाड़ों, घाटियों, और जंगलों की गोद में बसी हुई अंडाकार झील, पला तिपो या पलक दिल। चित्र स्रोत: नीतिशा वर्मा
झील से जुड़ी कहानियाँ
आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के प्रतिदिन जीवन में, पला तिपो का बहुत सांस्कृतिक महत्व है। यह महत्त्व उन बहुत सी लोककथाओं, मिथकों, और मौखिक इतिहास पर आधारित है, जो इस झील से जुड़ा हुआ है। लोकप्रिय मौखिक इतिहास, इस झील की उत्त्पत्ति को 800 ईस्वी से 1200 ईस्वी के बीच बताता है, जिस समय क्षेत्र में बर्मा से मारा लोगों का पश्चिम की ओर प्रवास हो रहा था।
झील की उत्पत्ति के बारे में मारा लोककथा के अनुसार, किसी समय झील के स्थान पर ह्नीचाओ नाम का एक बड़ा गाँव था। गाँव के केंद्र में एक बड़ी चट्टान थी, जिसके नीचे एक गहरी गुफ़ा थी। इस गुफ़ा में एक पौराणिक विशालकाय साँप रहता था। यह साँप कभी-कभी गाँव के पशुधन का शिकार करता था, पर यह मामला तब अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया, जब ग्रामीणों को पता चला कि इस विशाल साँप ने अपनी भूख शांत करने के लिए ह्नीचाओ के बच्चों का शिकार करना शुरू कर दिया है। क्रोधित ग्रामीणों ने साँप को मारने की योजना बनाई। गाँव के शिकारी, मछली पकड़ने वाले एक बड़े डंडे और चारे के साथ, साँप को पकड़ने के लिए इकठ्ठा हुए। यहाँ से लोककथा दो भिन्न वृतांतों में बदल जाती है।
एक वृत्तांत के अनुसार, बहुत कठिनाइयों से साँप को मारा गया, जिसके बाद उसके मांस को ग्रामीणों के बीच में प्रतिभोज के लिए बाँट दिया गया था। एक विधवा औरत और उसके दो बच्चों को साँप के सिर का हिस्सा मिला। साँप का सिर पकाते समय उस औरत ने ध्यान दिया कि साँप की आँखें उसकी तरफ़ देखते हुए घूम और झपक रही थीं। घबराकर उसने खाना पकाने वाला बर्तन सड़क पर फेंक दिया। तभी उसे अपनी दहलीज़ के बाहर धीमी गड़गड़ाहट सुनाई दी। बाहर झाँकने पर, उसने देखा कि उसकी दहलीज़ को, बढ़ती हुई बाढ़ धीरे धीरे निगल रही है। विधवा, अपने बच्चों को लेकर घर के बाहर भाग गई, किंतु उसने देखा कि प्रचंड बाढ़ ने पूरे गाँव और उसके लोगों को डुबोकर, अंत में एक झील का रूप ले लिया है, जिसे, आखिरकार, पला तिपो नाम दिया गया।

झील से एक दृश्य। चित्र स्रोत : मारा स्वायत्त ज़िला परिषद
दूसरे वृत्तांत के अनुसार, ग्रामीणों द्वारा इस विशालकाय साँप को गुफ़ा से बाहर खींचने का प्रयास किया गया, लेकिन वे इसमें विफल रहे। साँप के शरीर का नीचे का आधा हिस्सा एक भारी धमाके के साथ गुफ़ा में वापस गिर गया। इसके गिरने से जो झटके आए, उससे गुफा का पानी ऊपर आ गया, और पूरा गांव जलमग्न हो गया। ये कहानियाँ, पौराणिक ह्नीचाओ गाँव के झील के पानी में हमेशा के लिए डूब जाने के बारे में बताती हैं। इन कहानियों की वजह से, पलक झील को 'निगलने वाली झील' का नाम दिया गया है।

पलक झील एक अत्यंत महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संपत्ति है, जो मिज़ोरम के पलक वन्यजीव अभयारण्य में स्थित है। चित्र स्रोत: नितिशा वर्मा
सदियों से, लोगों ने झील के भुतहा होने और इसमें आत्माओं का निवास स्थान होने के बारे में, कई कहानियाँ गढ़ी हैं। बहुतों का विश्वास है कि अभी भी झील के नीचे एक गाँव है। यह एक रुचिकर लोककथा है, जो औपनिवेशिक काल के दौरान उभरी प्रतीत होती है। इसके अनुसार एक अंग्रेज़ अधिकारी ने अपनी तलवार झील के बीच में गिरा दी थी। स्थानीय लोगों का मानना है, कि अधिकारी ने कुछ लोगों को तलवार निकालने का आदेश दिया और ये गोताखोर पूरे तीन दिनों के बाद ही लौटे थे। अपने बचाव में उन्होंने कहा था कि, झील के नीचे गाँव में आयोजित प्रतिभोज के कारण वे नशे में धुत थे!
अपने सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व के कारण, पला तिपो निःसंदेह मिज़ोरम और उत्तर-पूर्व भारत की एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक विरासत है।