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मावफलांग का पावन वन
मेघालय के विशिष्ट सांस्कृतिक परिदृश्य में प्रकृति और मानव का घनिष्ठ संबंध है l मनमोहक पहाड़ों और शानदार झरनों के बीच, मेघालय प्रकृति और संस्कृति के अंतरसंबंधों पर विकसित सांस्कृतिक परंपराओं का एक समृद्ध भंडार है। इस राज्य के पूर्वी खासी हिल्स ज़िले और जैयंतिया हिल्स ज़िले में कुछ पावन वन हैं, जिनका स्थानीय आस्था और ज्ञान से गहरा संबंध माना जाता है। पूर्वी खासी हिल्स ज़िले में ऐसे लगभग 50 से अधिक वन होने का प्रमाण है, और, इनमें मावफलांग का पावन वन सबसे बड़ा और प्राचीन है।

मावफलांग का पावन वन

मावफलांग के पावन वन के अंदर का दृश्य
लगभग 192 एकड़ में फैला मावफलांग का पावन वन, राजधानी शिलांग से 25 किलोमीटर दूर मावफलांग गाँव में स्थित है। यहाँ की सदियों पुरानी सांस्कृतिक मान्यताओं से इसका गहरा संबंध पाया जाता है। खासी शब्द ‘मावफलांग', दो शब्दों से मिलकर बना है, जिनमें 'माव' का अर्थ पत्थर है और 'फलांग' का अर्थ घास या ‘अंतहीन घास वाले पत्थरों की भूमि’ है। इस प्रकार ‘मावफलांग’ का शाब्दिक अर्थ 'काई से ढका हुआ पत्थर' है। स्थानीय खासी लोग, जो कथित तौर पर पिछले 800 वर्षों से इस वन का संरक्षण कर रहे हैं, इसे अपने स्थानीय देवता, ‘लबासा’ का निवास स्थान मानते हैं। खासी लोगों का दृढ़ विश्वास है कि ‘लबासा’ इस वन और उनके समुदाय को दुर्भाग्य से बचाते हैं। गाँव की रक्षा के लिए देवता तेंदुए का रूप धारण कर लेते हैं। मावफलांग वन में विभिन्न प्रकार के आवृतबीजी और औषधीय पौधे, पेड़, मशरूम, पक्षी, और कीड़े-मकौड़े पाए जाते हैं। इनमें से कुछ पेड़ 1000 साल से भी अधिक पुराने बताए गए हैं। मावफलांग वन में पौधों की लगभग 400 प्रजातियाँ और ऑर्किडों के 25 प्रकार भी पाए जाते हैं। रुद्राक्ष के पेड़ों के अतिररिक्त, चीड़, बरुंश (रोडोडेंड्रोन), और का फल (मिरिका एस्कुलेंटा) के पेड़ भी यहाँ प्रमुख रूप से पाए जाते हैं। कहा जाता है कि इस वन में कुछ घातक बीमारियों को ठीक करने की क्षमता रखने वाले औषधीय पौधों का एक विशाल संग्रह भी मौजूद है।
मावफलांग के पावन वन के विशिष्ट पहलुओं में से एक यहाँ के एकाश्मक स्तंभ (मोनोलिथ) हैं, जिन्हें जानवरों की बलि का स्थान माना जाता है। स्थानीय खासी लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ती के लिए यहाँ जानवरों की बलि देते हैं। एकाश्मक स्तंभों का पहला समूह जंगल के प्रवेश पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर गाँव के बुज़ुर्ग जंगल के अंदर बलि चढ़ाने के लिए देवता लबासा से अनुमति लेते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि इस समय यदि कोई तेंदुआ दिखाई दे जाए, तो इसे अनुष्ठान प्रारंभ करने के लिए एक शुभ संकेत माना जाता है, जबकि साँप के दिखने को अशुभ मानकर अनुष्ठान रद्द कर दिया जाता है। पारंपरिक खासी समाज की मन्यता के अनुसार, एक गाँव की उसके पावन वन के बिना कोई पहचान नहीं है।

मावफलांग के पावन वन के अंदर का दृश्य

एकाश्मक स्तंभों का एक समूह
मावफलांग वन के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह ब्लाह समुदाय का मूल निवास स्थान हुआ करता था। जब कबीलों के बीच युद्ध हुआ, और हिमा मावफलांग की जीत हुई, तब कबीले के सदस्यों ने एक मुखिया की तलाश शुरू की। आखिरकार, यह खोज उन्हें एक महिला तक ले गई, जो अपनी अलौकिक शक्तियों के लिए जानी जाती थी। किंतु उस महिला ने उनका मुखिया बनने से इनकार कर दिया l इसकी जगह उसने यह वादा किया कि अगर भगवान ने उसे कोई संकेत दिया, तो वह अपने बेटे को उनका मुखिया बना देगी। उसने जंगल के अंदर कुछ पौधे लगाए। उसका मानना था कि यदि पौधे तीन वर्ष तक जीवित रहे, तो उसका बेटा ही मुखिया बनेगा। पौधे तीन वर्ष तक जीवित रहे और इसके परिणामस्वरूप, उसका बेटा मुखिया बन गया।
मावफलांग के पावन वन का सबसे अनूठा पहलू यहाँ का एक विशेष नियम है, जिसके अनुसार कोई भी जंगल से कुछ भी लेकर नहीं जा सकता है – चाहे वह पत्थर, पत्ती, मृत फूल, या मृत लकड़ी के टुकड़े ही क्यों ना हों, क्योंकि ऐसा करने से देवता नाराज़ हो जाते हैं। इस जंगल की सबसे छोटी वस्तु को लेकर जाना या नष्ट करना लबासा के प्रति एक प्रकार का अनादर माना जाता है l मान्यता है कि ऐसा व्यक्ति सज़ा के तौर पर अंततः किसी रोग से पीड़ित हो जाता है।
खासी लोग प्रकृति की पूजा करते हैं, और उसके साथ एक घनिष्ठ संबंध रखते हैं। मावफलांग का पावन वन आज भी मेघालय के सांस्कृतिक मानचित्र का एक महत्वपूर्ण केंद्रबिंदु है।