- 148 views
Loktak Lake

लोकतक झील
लोकतक झील, दक्षिण एशिया में मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है, जो 250 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। वर्षा-ऋतु के दौरान, यह 500 वर्ग किलोमीटर तक के क्षत्र में फैल सकती है। यह मोईरांग, मणिपुर में स्थित है और मेतेई भाषा में इसके नाम का अनुवाद मोटे तौर पर "एक धारा का अंत" के रूप में किया जा सकता है। इस झील का आकार ही इसकी एकमात्र विशेषता नहीं हैl यहाँ हर साल 15 अक्टूबर को लोकतक दिवस मनाया जाता है, जो उस समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण है, जिसका पोषण इस झील से होता हैl
झील में तैरता ‘फुमड़ी’ नामक एक जैविक पदार्थ, इसकी खास विशेषता है। ‘फुमड़ी’, ‘फुमथी’, या ‘फुम’ तैरते हुए द्वीपों का एक अनूठा द्वीप-समूह है, जो अपघटन के विभिन्न स्तरों पर मौजूद वनस्पति, मिट्टी, और जैव पदार्थ जैसी अलग-अलग चीजों से बनता हैl इन पदार्थों में गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव कम होता है और प्लवनशीलता अधिक होती है, जिसके कारण ये पानी की सतह पर तैरते हैंl इसी कारण से, इन्हें 'तैरते चारागाह’ भी कहा जाता है। लोकतक झील की दक्षिणी ‘फुमड़ी’ को ‘रामसर स्थल’ घोषित किया गया है और यहाँ केयबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान नामक विश्व का एकमात्र तैरता राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। उद्यान में रहने वाले विशिष्ट जीवों में भृकुटि हिरण शामिल है, जिसे ‘सांगाई’के नाम से भी जाना जाता है। यह घबराने पर रुक जाता है और पीछे मुड़कर अपने खतरे को जाँचता है, जिस विशेषता के कारण इसे यह स्थानीय नाम मिला हैl यह अस्थिर ‘फुमड़ियों’ पर आकर्षक तरीके से कूदते और फुदकते हुए, जिस नज़ाकत से चलता है, उसके कारण इसे “नाचते हिरण” के उपनाम से भी जाना जाता हैl
केयबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान को ‘फुमड़ियों’ की मोटाई के आधार पर प्रशासनिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। उद्यान के पूर्वी क्षेत्र के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से में स्थित पाबोट और टोया पहाड़ियाँ बाढ़ के समय सांगाई, पाढ़ा (हॉग डियर), और अन्य वन्यजीवों को आश्रय प्रदान करती हैं। माना जाता है कि 1950 के दशक में सांगाई विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गए थे, परंतु मध्यस्थ संरक्षण प्रयासों के कारण इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। ‘फुमड़ियों’ पर उगने वाली लंबी घास और छोटी झाड़ियाँ हिरणों के भोजन का स्रोत हैं। जंगली सुअर, ऊदबिलाव, भारतीय कस्तूरी बिलाव, बेयर्स पोचार्ड (बतख की प्रजाति का पक्षी) जैसे प्रवासी पक्षियों, उभयचरों, सरीसृपों, और मछलियों की विभिन्न प्रजातियाँ भी लोकतक झील के स्पंदित एवं जीवंत पारितंत्र को अपना घर मानती हैं।

लोकतक झील पर बना घर
स्थानीय मानव आबादी भी इन तैरते जैविक द्वीपों पर रहती है। लोग आमतौर पर बाँस की मामूली झोपड़ियों में रहते हैं, जैसी कि चंपू खांगपोक गाँव में देखी जा सकती हैं। गीली ‘फुमड़ियों’ पर बाँस के खंभे और लकड़ी के तख्ते बिछाए जाते हैं ताकि उनपर आसानी से चला जा सके। लोकतक निवासियों के परिवहन का मुख्य साधन लंबी, पतली डोंगियाँ होती हैं। वे इन डोंगियों का इस्तेमाल करते हुए, ‘फुमड़ी’ के कटे हुए टुकड़ों से गोलाकार ‘आथाफुम’ बनाते हैं, जिनका उपयोग मत्स्य-पालन में होता है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि, मछली यहाँ के स्थानीय आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
लोकतक झील और इसका जैवमंडल लंबे समय से गीतों, कविताओं, नृत्यों, और इसके शांत वातावरण से उत्पन्न होने वाली विभिन्न कलाओं की अभिव्यक्ति का प्रेरणा स्रोत रहा है। इसका लोकप्रिय उदाहरण "खांबा थोईबी" नृत्य है। इस नृत्य में नायक ‘खांबा’ और नायिका ‘थोईबी’ की काल्पनिक कथा को दर्शाया जाता है, जिन्होंने मोईरांग देवता, भगवान थांडग्जिंग को प्रसन्न करने और इस भूमि के लिए शांति और समृद्धि का वरदान प्राप्त करने के लिए उनके सामने नृत्य किया था। मनुष्य और प्रकृति को एक डोर में बाँधने वाले जीव, सांगाई, के नाम पर ही सांगाई महोत्सव का नाम भी रखा गया है। यह महोत्सव हर साल, मणिपुर राज्य के व्यंजनों, संस्कृति, वस्त्रों, और समग्र समृद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, 21 से 30 नवंबर के बीच मनाया जाता है ।