के आर कल्याणरमन
के आर कल्याणरमन का जन्म 1907 में मद्रास प्रेसीडेंसी में वालजपेट के पास, कुट्टियम गाँव में, रामनाथ अय्यर और मंगम्मा के घर हुआ था। कल्याणरमन एक उत्कट गांधीवादी थे। उन्होंने तमिलनाडु में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया। कल्याणरमन ने विपुल साहित्य की रचना की और वे प्रेस से सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे। उन्होंने सामाजिक सुधारों के लिए अथक प्रयास किए - अछूतों का कल्याण और शराब के सेवन के खिलाफ़ उनका अभियान कुछ ऐसे उल्लेखनीय कार्य हैं जिनके लिए उन्हें जाना जाता है।
कल्याणरमन पेशे से एक स्कूल शिक्षक थे। ऐसा कहा जाता है कि शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त करने के दौरान ही वे इतने बहादुर थे कि उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने का साहस दिखाया जबकि ऐसा करना ब्रिटिशों द्वारा प्रतिबंधित था। उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और बाद में इस दुस्साहसिक कार्य के लिए चेतावनी देकर उन्हें रिहा कर दिया गया। अंततः कल्याणरमन के देशप्रेम ने उन्हें अपनी नौकरी छोड़ने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने खुद को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। यही वह समय था जब अंग्रेज़ों ने मनमाने कानून लागू करने शुरू कर दिए और भारतीयों के नागरिक अधिकारों को नियंत्रित करने की कोशिश की। भारी नमक कर, रैयतवाड़ी व्यवस्था (भू-राजस्व) और ‘रॉलेट एक्ट’ ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किए गए कुछ विधेयकों में से एक थे। महात्मा गांधी ने अहिंसक तरीकों से इन अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध करने का फ़ैसला किया। 1930 में गांधीजी द्वारा शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे देश में फैल गया। कल्याणरमन ने इसे तमिलनाडु में आयोजित करने का बीड़ा उठाया। कई मौकों पर, कल्याणरमन को वेल्लोर सेंट्रल जेल, तंजावूर जेल, बेल्लारी जेल और अलीपुर जेल आदि जेलों में कैद करके रखा गया था।
एक रूढ़िवादी परिवार में पैदा होने के बावजूद, कल्याणरमन ने छुआछूत को खत्म करने के प्रयास किए और हरिजनों के मानवाधिकारों के लिए संघर्ष किया। उनका मानना था कि वास्तविक स्वतंत्रता तभी प्राप्त की जा सकती है जब दलितों को समाज में समान दर्जा दिया जाएगा। उन्होंने हरिजन समुदाय की सेवा करने के लिए 1932 में, उत्तरी आरकोट ज़िले में हरिजन सेवा संघ की शुरुआत की। उन्होंने एक शिक्षक होने के नाते, इस संस्था के माध्यम से, उन्हें मुफ़्त शिक्षा प्रदान की। महात्मा गांधी ने शराब की बिक्री पर की जा रही राजस्व वसूली के लिए ब्रिटिश सरकार की आलोचना की, और शराब के निषेध का पूरा समर्थन किया। कल्याणरमन ने भी शराब के सेवन से होने वाले खतरों को उजागर करने के लिए तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों में आक्रामक रूप से अभियान चलाया और इस खराब आदत को छोड़ देने के लिए लोगों को मनाने का प्रयास किया। यहाँ तक कि उन्होंने पर्चे भी बाँटे और 'मदुपनम ओझिगा' नामक एक किताब भी लिखी जिसमें उन्होंने शराब के सेवन से जुड़ी समस्याओं पर ज़ोर दिया।
कल्याणरमन ने गरीबों के लिए अथक परिश्रम किया। स्वतंत्रता के बाद, 1956 में, उनके द्वारा किए गए कार्यों को सराहते हुए, तमिलनाडु सरकार ने उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। 1972 में, स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए और हरिजन समुदाय की निस्वार्थ सेवा करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ़ से उन्हें गौरवपूर्ण ताम्र पत्र प्रदान किया गया।