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वान्चीनाथन अय्यर

वान्चीनाथन अय्यर, जिन्हें लोकप्रिय रूप से वान्ची के नाम से जाना जाता है, का जन्म 1886 में शेनकोट्टई में रघुपति अय्यर और रुक्मणी अम्मल के घर हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि वे स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लेने वाले पहले और मुख्यतम तमिलों में से एक थे। उनका मानना ​​​​था कि सशस्त्र संघर्ष से ही स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।

जब वे त्रावणकोर में कार्यरत थे, तब वी ओ चिदंबरम पिल्लई (वीओसी), नीलकांत ब्रह्मचारी, सुब्रमण्य शिव और सुब्रमण्य भारती से उनकी आकस्मिक मुलाकात हुई। समय के साथ, वे सब उनके मार्गदर्शक बन गए। वे सभी ‘भारत मठ संगम’ नामक एक ऐसे संगठन का हिस्सा थे, जिसकी स्थापना अहंकारी अंग्रेज़ों से छुटकारा पाने और स्थानीय लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। यहाँ वान्चीनाथन, विनायक दामोदर सावरकर के साथी वीवीएस अय्यर से मिले, जो स्वयं एक क्रांतिकारी थे और सशस्त्र संघर्ष से स्वतंत्रता प्राप्त करने में विश्वास रखते थे। पांडिचेरी, उस समय, एक फ़्रांसिसी उपनिवेश था और ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के कारण स्वतंत्रता सेनानियों के लिए यह एक सुरक्षित जगह थी। वान्ची ने पांडिचेरी में सावरकर की कंपनी से हथियारों का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

वान्चीनाथन अय्यर

इस बीच, अंग्रेज़ भारत पर अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने जनता के बीच लोकप्रिय, स्वदेशी आंदोलन को, उससे जुड़े कार्यकर्ताओं को बंदी बनाकर, दबाने की कोशिश की। सन् 1911 में रॉबर्ट विलियम ऐश, तिरुनेलवेलि ज़िले के कलेक्टर और ज़िला मजिस्ट्रेट थे। उनके द्वारा किए गए कार्यों से अंग्रेज़ों को फ़ायदा होता था और स्थानीय लोगों के हितों को अनदेखा किया जाता था। यहाँ तक ​​कि उन्होंने वीओसी और सुब्रमण्य शिव जैसे स्वतंत्रता सेनानियों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया और साथ ही उन्होंने वीओसी की शिपिंग कंपनी, ‘स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी’ को बंद कराने की भी कोशिशें कीं, जो ब्रिटिश राज के दौरान किसी भारतीय द्वारा इस तरह का पहला उद्यम था। वीओसी और सुब्रमण्य शिव को जेल में यातनाएँ दी गईं, और बाद में जेल की अमानवीय परिस्थितियों के कारण उन्हें कुष्ठ-रोग हो गया। इसने वान्चीनाथन को गुस्से से भर दिया, और उन्होंने ऐश द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण उसको मारने का फ़ैसला किया।

वान्चीनाथन अय्यर का स्मारक (तिरुनेलवेलि ज़िले में शेनकोट्टई)

17 जून 1911 को, मणियाचि मेल नामक रेलगाड़ी, तिरुनुवेलि जंक्शन से मणियाचि के लिए रवाना हुई, जिसमें रॉबर्ट ऐश कोडाईकनाल जाने के लिए अपने परिवार के साथ सवार थे। मणियाचि जंक्शन पर, साफ़-सुथरे कपड़े पहने एक आदमी गाड़ी में चढ़ा, उसने पिस्तौल निकाली और बहुत पास आकर ऐश के सीने में गोली मार दी। हालाँकि, ऐश को मारने के बाद, वान्ची वहाँ से भागकर कहीं छुप गए, लेकिन बाद में वे मृत पाए गए। उन्होंने अपने मुँह में गोली मारकर खुद की जान ले ली थी। जब उनकी पिस्तौल मिली तो वह खाली थी, जिससे यह पुष्ट हो गया था कि उनकी मंशा केवल ऐश को और खुद को मारने की थी, किसी और को नहीं। ब्रिटिश राज के दौरान दक्षिण भारत में किसी ब्रिटिश अधिकारी की यह पहली बड़ी राजनीतिक हत्या थी। वान्चीनाथन की मृत्यु के बाद उनके आत्महत्या पत्र को पढ़ा गया जिसमें लिखा था कि वे 'सनातन धर्म' को पुनर्जीवित करना चाहते थे, और उन्होंने एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या करके केवल अपना कर्तव्य निभाया था।

वान्चीनाथन अय्यर के इस बहादुरी भरे निस्वार्थ कार्य ने अंग्रेज़ों को झकझोरकर रख दिया और स्वतंत्रता आंदोलन को गति प्रदान की। हालाँकि हत्या के पीछे का असली मकसद आज भी विवादित है, फिर भी भारत सरकार ने मणियाचि के रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 'वान्ची मणियाचि' कर वान्चीनाथन को गौरव प्रदान किया। उनकी स्मृति में, तमिलनाडु सरकार ने तिरुनेलवेलि ज़िले के शेनकोट्टई में उनके सम्मान में एक स्मारक भी बनवाया है।

वान्चीनाथन के नाम पर रखा गया रेलवे स्टेशन का नाम