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अनंत लक्ष्मण कन्हेरे
नाशिक के एक क्रांतिकारी

“मैंने किसी की मदद या सलाह के बिना अपने दम पर इस काम को अंजाम दिया है।”
- मुकदमे के दौरान अनंत लक्ष्मण कन्हेरे की गवाही

अनंत लक्ष्मण कन्हेरे का जन्म 7 जनवरी 1891 को रत्नागिरी ज़िले (महाराष्ट्र) के आयनी-मेटे में एक कोंकण परिवार में हुआ था। उनके दो भाई और दो बहनें थीं। उनके जीवन के शुरुआती साल निज़ामाबाद में बीते, जहाँ उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। बाद में वे औरंगाबाद चले गए, जहाँ वे ऐसे लोगों के संपर्क में आए जो गुप्त क्रांतिकारी समूहों में काम करते थे। इस बीच, महाराष्ट्र में, विनायक सावरकर और गणेश सावरकर के नेतृत्व में‘अभिनव भारत’ नामक एक युवा संगठन की स्थापना की गई। उन्होंने अखाड़ों के माध्यम से क्रांतिकारी भावना फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अनंत ‘अभिनव भारत’ संगठन में शामिल हो गए, क्योंकि वे उनके इस सिद्धांत में विश्वास करते थे कि ब्रिटिश शासन को केवल सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से ही उखाड़ फेंका जा सकता है। अंग्रेज़ो द्वारा भारतीय लोगों पर किए जा रहे अत्याचारों के लगातार बढ़ने से, आम लोगों में ब्रिटिश-विरोधी भावनाएँ बढ़ रही थीं।

अनंत लक्ष्मण कन्हेरे

नासिक के तीन क्रांतिकारी, कृष्णा कर्वे, अनंत कन्हेरे और विनायक देशपांडे

लोकमान्य तिलक, गणेश सावरकर और अन्य नेताओं के साथ अंग्रेज़ों द्वारा की जा रही क्रूरता लोगों को उत्तेजित करके उनमें प्रतिशोध और घृणा की भावना पैदा कर रही थी। जैक्सन, जो उस समय नासिक का ज़िला कलेक्टर था और अपने निर्दयी स्वभाव के लिए जाना जाता था, क्रांतिकारियों का प्रमुख निशाना था। वह क्रूर जैक्सन ही था जिसने बाबाराव सावरकर के खिलाफ़ अभियोग चलाया था। उसने वामन सखाराम खरे (एक वकील जिनका एकमात्र अपराध यह था कि वे क्रांतिकारियों के लिए लड़े थे) को इस हद तक प्रताड़ित किया कि उन्होंने अपना मानसिक संतुलन खो दिया। बात हद से आगे तब बढ़ गई जब एक ब्रिटिश अधिकारी ने एक किसान को इसलिए पीट-पीटकर मार डाला क्योंकि उसने उस अधिकारी को अपने वाहन से आगे नहीं निकलने दिया। इस पर भी जैक्सन ने उस अपराधी और उसके कृत्य को छिपाने का दुस्साहस किया। नासिक के लोगों ने इस तरह के अत्यचारों के खिलाफ़ विद्रोह करना शुरू कर दिया। मामले को शांत करने के लिए जैक्सन को जल्दबाज़ी में पदोन्नत कर उसका तबादला कर दिया गया। विजयानंद थिएटर में जैक्सन के लिए एक विदाई समारोह का आयोजन किया गया। अनंत कन्हेरे को लगा कि जैक्सन द्वारा अनगिनत ज़िंदगियों को पहुँचाई गई हानि का बदला लेने का यह अंतिम अवसर था, और उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि वे अकेले ही इस काम को अंजाम देने की ज़िम्मेदारी लेंगे।

29 दिसंबर 1909 को, नासिक (जिसे वर्तमान में नाशिक कहा जाता है) के ज़िला कलेक्टर, जैक्सन को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया, क्योंकि उसका दूसरे ज़िले में तबादला कर दिया गया था। इस कार्यक्रम में जहाँ एक तरफ़ मंच पर ‘शारदा' नामक एक नाटक प्रस्तुत किया जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ़ एक ऐसे नाटक से पर्दा उठने वाला था जिसने आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपनी गहरी छाप छोड़ी। ‘शारदा' नाटक आधा खत्म हो चुका था और मध्यांतर के समय दर्शक उठने ही वाले थे कि अचानक सभागार गोलियों की आवाज़ों से गूँज उठा। विशिष्ट अतिथि, ज़िला कलेक्टर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हत्या को अनंत लक्ष्मण कन्हेरे नाम के एक 18 वर्षीय युवक ने अंजाम दिया था।

जैक्सन को गोली मारने के बाद अनंत कन्हेरे की योजना थी कि वे खुद की जान ले लेंगे। हालाँकि अनंत ने जैक्सन की हत्या कर दी थी, लेकिन इससे पहले कि वे अपनी जान ले पाते, उन्हें पकड़ लिया गया। माना जाता है कि मुकदमे के दौरान अपनी गवाही में, उन्होंने कहा था, “मैंने किसी की मदद या सलाह के बिना अपने दम पर इस काम को अंजाम दिया है।” इसी से पता लगता है कि वे अपने साथियों को इस षडयंत्र से बाहर रखने का दृढ़ संकल्प कर चुके थे।

परंतु उन क्रांतिकारियों में से एक क्रांतिकारी दुश्मनों से जा मिला और परिणामस्वरूप, षड्यंत्र में शामिल सभी लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया। 19 अप्रैल 1910 को, युवा अनंत को, उन्नीस वर्ष की आयु में, केशव कर्वे और देशपांडे के साथ फाँसी दे दी गई। वे भारत के उन सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक थे जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा फाँसी पर लटकाया गया था।

अनंत लक्ष्मण कन्हेरे