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दुर्गा देवी

सार्वजनिक रूप से, दुर्गा देवी को उस महिला के रूप में जाना जाता है, जिसने भगत सिंह को लाहौर से भागने में मदद की थी जब उन्होंने पुलिस अधिकारी जॉन पी सॉन्डर्स की हत्या कर दी थी । हालाँकि, वास्तव में, यह भारत को ब्रिटिश शासन के चंगुल से मुक्त कराने के उनके अथक प्रयासों का केवल एक पहलू था। दुर्गा देवी वोहरा का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को प्रयागराज में रहने वाले एक गुजराती परिवार में हुआ था। ग्यारह साल की उम्र में, उनका विवाह भगवती चरण वोहरा से हुआ, जो एक क्रांतिकारी और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के सदस्य थे। शादी के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए दुर्गा देवी को उनके पति का पूरा समर्थन मिला और उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी में ऑनर्स के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे कन्या विद्यालय में अध्यापिका के रूप में कार्य करने लगीं।

दुर्गा देवी

दुर्गा देवी का जीवन

हालाँकि दुर्गा देवी के पति क्रांतिकारी गतिविधियों में पूरी तरह से शामिल थे, लेकिन वे क्रांतिकारी आंदोलन से सन् 1926 में ही जुड़ीं, जब लाहौर में 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की गई। दुर्गा देवी ने सुशीला दीदी के साथ मिलकर, करतार सिंह सराभा के रूपचित्र का अपने अँगूठों के रक्त से अभिषेक करके सभा की शुरुआत की। करतार सिंह गदर पार्टी के एक सदस्य थे, जो 16 नवंबर 1915 को शहीद हो गए थे।

शुरुआत में, एचएसआरए के साथ दुर्गा देवी की भागीदारी मुख्य रूप से क्रांतिकारी आंदोलन के 'घरेलू दायरे' तक ही सीमित थी। क्रांतिकारियों को भोजन और आश्रय मुहैया कराने और उनके लिए धन इकट्ठा करने के अलावा, उनकी भूमिका मुख्य रूप से एक संदेशवाहक की ही थी, जो संवेदनशील जानकारी और हथियारों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती थीं। एक बार उन्हें मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान में) से बम लाने का काम सौंपा गया था, और एक अन्य अवसर पर उन्हें जयपुर से बन्दूकें लाने के लिए कहा गया। दोनों ही मौकों पर, दुर्गा देवी ने सौंपे गए कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया, और इस प्रकार धीरे-धीरे वे एचएसआरए का एक अभिन्न अंग बन गईं।

भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त (दिल्ली षडयंत्र मामला) और सुखदेव (लाहौर षडयंत्र मामला) की गिरफ़्तारी के बाद, दुर्गा देवी को पंजाब प्रांत में एचएसआरए को पुनर्गठित करने का कार्यभार सौंपा गया। वे 'भगत सिंह रक्षा समिति' की एक प्रमुख सदस्य थीं, जिसकी स्थापना आंदोलन के लिए आर्थिक प्रबंध करने और भगत सिंह तथा उनके साथियों की रिहाई के लिए मुकदमा लड़ने हेतु की गई थी। दुर्गा देवी का काम जेल में बंद क्रांतिकारियों, उनके वकीलों और उन क्रांतिकारियों के बीच संपर्क स्थापित करने का था जो फ़रार थे। इस दौरान उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद से हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी लिया।

1930 में एक दुर्भाग्यपूर्ण बम परीक्षण दुर्घटना के दौरान हुई उनके पति भगवती चरण वोहरा की मृत्यु के बाद, दुर्गा देवी क्रांतिकारी आंदोलनों के एक सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करने लगीं। 8 अक्टूबर 1930 को दुर्गा देवी और सुखदेव राज ने गदरवादी क्रांतिकारी पृथ्वी सिंह आज़ाद के साथ मिलकर मुंबई के दौरे पर आए पंजाब के गवर्नर विलियम हेली की हत्या करने की कोशिश की। उनकी योजना विफल रही क्योंकि अंतिम समय पर गवर्नर का कार्यक्रम बदल दिया गया था। क्रांतिकारियों ने योजना में तत्काल परिवर्तन किया, और लैमिंगटन रोड पुलिस थाने में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों पर गोली चलाने का फ़ैसला किया। दुर्गा देवी ने तीन से चार बार गोलियाँ चलाईं, जिसमें टेलर नामक एक सार्जेंट घायल हो गया।

क्रांतिकारियों के साथ दुर्गा देवी के ताल्लुक होने के कारण पुलिस लगातार उन पर नज़र रखने लगी। इसलिए, उन्होंने सन् 1932 में आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें छह महीने कैद में रखा गया और इस शर्त पर रिहा किया गया कि वे कभी भी पंजाब और दिल्ली में प्रवेश नहीं करेंगी। वे गाज़ियाबाद चली गईं और उन्होंने दो साल प्यारे लाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका के रूप में कार्य किया। उसके बाद वे लखनऊ जाकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईं।

भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, दुर्गा भाभी ने राजनीति और उससे जुड़ी सभी गतिविधियों को त्याग दिया। उन्होंने अपना ध्यान शिक्षा की ओर लगाया। उन्होंने लखनऊ में, वंचित बच्चों के लिए एक विद्यालय शुरू किया, जिसे आज ‘लखनऊ मोंटेसरी इंटर कॉलेज’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने 'शहीद मेमोरियल एंड इंडिपेंडेंस स्ट्रगल रिसर्च सेंटर' नामक एक शोध संस्थान की स्थापना भी की, जिसने क्रांतिकारी आंदोलनों और उनसे जुड़े व्यक्तित्वों से संबंधित दस्तावेज़ एकत्र करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस केंद्र ने भगत सिंह के संकलित कार्यों को सर्वप्रथम प्रकाशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 15 अक्टूबर 1999 को दुर्गा देवी का निधन हो गया।