BHAGWATI CHARAN VOHRA
"मैं ऐसी जगह और ऐसे तरीके से मरना चाहता हूँ कि किसी को इसके बारे में पता न चले और न ही कोई आँसू बहाए।" - देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक भगवती चरण वोहरा के भविषयसूचक शब्द।
उस समय के क्रांतिकारी गुटों के ‘दिमाग’ माने जाने वाले भगवती चरण वोहरा का जन्म 15 नवंबर 1903 को पंजाब में रहने वाले एक गुजराती परिवार में हुआ था। उनके पिता, शिव चरण वोहरा एक रेल अधिकारी थे। उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा अंग्रेज़ी सत्ता की वफ़ादारी से सेवा करने के लिए 'राय बहादुर' की उपाधि से सम्मानित किया गया था। सन् 1918 में भगवती चरण का विवाह ग्यारह वर्षीय दुर्गा देवी से करवा दिया गया था। सन् 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड का युवा भगवती चरण वोहरा पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। बैसाखी के दिन हुईं निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्याओं ने भगवती चरण को राष्ट्रवादी आंदोलन में उतरने के लिए विवश कर दिया।
भगवती चरण एक प्रगतिशील व्यक्ति थे। उन्होंने सुनिश्चित किया कि दुर्गा देवी अपनी शिक्षा ज़ारी रखें। उन्होंने उनके लिए एक निजी शिक्षक की व्यवस्था की और उन्हें विश्वविद्यालय जाने के लिए भी प्रोत्साहित किया। हालाँकि, 1921 में, भगवती चरण ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए स्वयं अपनी पढ़ाई छोड़ दी। चौरी चौरा कांड के कारण गांधीजी द्वारा आंदोलन को अचानक वापस लेने के बाद, भगवती चरण ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की। वे लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा भारतीय छात्रों के लिए शुरू किए गए नेशनल कॉलेज में दाखिल हो गए। यहाँ, वे प्रोफ़ेसर जयचंद्र विद्यालंकार से मिले, जो गुप्त क्रांतिकारी पार्टी, ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ (एचआरए) के सदस्य थे। उनके माध्यम से ही भगवती चरण को क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में जानकारी मिली। नेशनल कॉलेज में, वे भगत सिंह, सुखदेव, यशपाल और उन अन्य लोगों से भी मिले जो उनके जैसा ही सोचते थे और जो आगे चलकर स्वतंत्रता के संघर्ष में उनके साथी बने।
सन् 1926 में, भगवती चरण वोहरा और भगत सिंह ने ‘नौजवान भारत सभा’, नामक एक युवा संगठन की स्थापना की, जिसने एचआरए के एक सार्वजानिक संगठन के रूप में काम किया। भगवती चरण को संगठन के प्रचार सचिव के रूप में चुना गया, और उन्होंने इसका घोषणा-पत्र लिखने में भी सहयोग दिया। बाद में, उन्होंने भगत सिंह के साथ ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (एचएसआरए) के घोषणा-पत्र का मसौदा तैयार करने में भी मदद की। गांधीजी के निबंध, 'बम की पूजा’ के जवाब में, उन्होंने और चंद्रशेखर आज़ाद ने 'बम का दर्शन' शीर्षक से एक विवादास्पद निबंध लिखा। सन् 1927 में, भगवती चरण ने लाहौर छात्र संघ के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई।
भगवती चरण वोहरा एक उत्कृष्ट वक्ता, विचारक, संगठनकर्ता और मत-प्रचारक थे। उन्होंने पंजाब के युवाओं के बारे में कई छोटे निबंध, पुस्तिकाएँ और पत्रिकाएँ लिखने के लिए अपने प्रभावी संवाद कौशल का उपयोग किया। इन निबंधों में एक निबंध जिसका शीर्षक 'मैसेज ऑफ़ इंडिया' था, बेहद लोकप्रिय हुआ। दुर्भाग्य से, इन रचनाओं को छोड़कर उनकी कोई भी रचना वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।
भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त (विधानसभा बम मामला) और सुखदेव, राजगुरु, शिव वर्मा, तथा अन्य क्रांतिकारियों (लाहौर षडयंत्र मामला) की गिरफ़्तारी के बाद, भगवती चरण ने भारत के तत्कालीन वायसराय, लॉर्ड इरविन की हत्या करके अधिकारियों पर उनके साथी क्रांतिकारियों को रिहा कर देने के लिए दबाव डालने का प्रयास किया। उनके नेतृत्व में, कुछ क्रांतिकारियों ने 23 दिसंबर 1929 को दिल्ली में वायसराय को ले जा रही ट्रेन को बम से उड़ाने की साज़िश रची। योजना के अनुसार बम फटा ज़रूर, लेकिन वायसराय को कोई चोट नहीं आई। उनकी योजना की स्पष्ट विफलता के बावजूद, क्रांतिकारी फिर से संगठित हुए, और इस बार भगत सिंह और अन्य साथियों को जेल से भगाने का प्रस्ताव रखा गया। 28 मई 1930 को भगवती चरण, यशपाल और सुखदेव राज ने रावी नदी के तट पर एक बम का परीक्षण करने का फ़ैसला किया। दुर्भाग्य से, बम में कुछ खराबी आ गई और वह भगवती चरण के हाथों में ही फट गया जिससे मौके पर ही उनकी मृत्यु हो गई।
इस त्रासदी के बाद उनके सहयोगी बिजॉय कुमार सिन्हा ने भगवती चरण के इन शब्दों को दोहराया,"मैं ऐसी जगह और ऐसे तरीके से मरना चाहता हूँ कि किसी को इसके बारे में पता न चले और न ही कोई आँसू बहाए।” उनके ये शब्द भविष्यवाणी साबित हुए क्योंकि इस दुर्घटना से, इस वाक्य में निहित उनकी इच्छा पूरी हो गई। भगवती चरण वोहरा का निःस्वार्थ जीवन, ‘नौजवान भारत सभा’ के सिद्धांत - ‘सेवा, पीड़ा, बलिदान’ का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।