का फान नोंगलाइट
(मेघालय)
यह अकीर्तित नायिका मेघालय से थीं, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के केंद्र से मीलों दूर था। का फान नोंगलाइट हिमा नोंगखलाव के अंतर्गत आने वाले रिम्मई गाँव की रहने वाली थीं। उन्हें खासी पहाड़ियों से आने वाली पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। 1799 में जन्मीं, का फान नोंगलाइट के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
का फान नोंगलाइट, यू तिरोत सिंग के समय के दौरान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुईं, जिन्हें खासी पहाड़ियों के ‘नायक’ के रूप में जाना जाता है। वे खासी पहाड़ियों के नोंगखलाव क्षेत्र के सिमिलेह (प्रमुख) कबीले से थे और ब्रिटिश कब्ज़े के खिलाफ़ अपनी युद्ध रणनीति, वीरता और खासी क्षेत्र पर अडिग नियंत्रण के लिए जाने जाते थे। यह असल में एक बंदूकों बनाम तलवारों तथा तीरों का युद्ध था, जिसमें तिरोत सिंग ने अपनी छापामार रणनीति से औपनिवेशिक ताकतों का मुकाबला किया। कहा जाता है कि का फान नोंगलाइट ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ़ यू तिरोत सिंग की लड़ाई में उनकी सहायता की थी।
अभिलेखों के अनुसार, एक अवसर पर, यू तिरोत सिंग के सैनिकों को यह समाचार मिला कि ब्रिटिश सैनिक मैरांग गाँव से बाहर निकलने लगे हैं और नोंगखलाव की ओर बढ़ रहे हैं। तिरोत सिंग के लोगों ने तुरंत लैंगस्टीहरिम में ब्रिटिश सैनिकों के लिए एक जाल बिछाया। गर्मी का मौसम था, और असहनीय गर्मी के कारण, ब्रिटिश सैनिक झरने के पास विश्राम करने लगे। बहादुर का फान नोंगलाइट ने बहुत चतुराई से सैनिकों को जलपान प्रदान करने की अगुआई की, जबकि यू तिरोत सिंग के लोग छाँव में प्रतीक्षा करने लगे। जिस समय थके हुए अंग्रेज़ आराम की साँस ले रहे थे, का फान नोंगलाइट ने मौका देखकर उनके सारे हथियार छीन लिए और उन्हें झरने के नीचे गड्ढे में फेंक दिया। यू तिरोत सिंग के सैनिकों ने इसका फ़ायदा उठाया और निहत्थे ब्रिटिश सैनिकों पर हमला कर उन्हें अपनी गिरफ़्त में ले लिया। इस तरह स्वतंत्रता संग्राम में का फान का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। ऐसा माना जाता है कि वे हथियार आज भी उसी गड्ढे में पड़े हैं। वर्तमान में, यह झरना ‘द फान नोंगलाइट फ़ॉल्स’ के नाम से जाना जाता है। अपुष्ट खबरों से एक अन्य घटना का भी पता चलता है, जिसमें 32 ब्रिटिश सैनिकों की हत्या में का फान का भी हाथ बताया जाता है।
का फान नोंगलाइट ने खासी जनजाति की गरिमा को पुनर्स्थापित करने और बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लंबी बीमारी के कारण पूर्वी-पश्चिम खासी पहाड़ियों के नोंगरमई गाँव में 06 दिसंबर 1850 को उनका निधन हो गया। आदरस्वरूप उनको श्रद्धांजलि देने के लिए, लिंगदोह नोंगलाइट कबीले ने रोज़मर्रा में फान नोंगलाइट द्वारा उपयोग किए जाए वाले बर्तनों और उनके घर को सुरक्षित रखा है, ताकि वर्तमान पीढ़ी खासी की इस अतुल्य महिला स्वतंत्रता सेनानी, का फान नोंगलाइट के बारे में देख और सीख सके। हाल ही में, का फान नोंगलाइट के जीवन पर एक पुस्तक प्रकाशित हुई है, जिसका शीर्षक है - ‘का फान नोंगलाइट – अ लेडी फ़्रीडम फ़ाइटर ऑफ़ इंडिया’। यह किताब उनके वंशजों में से एक डेनियल स्टोन लिंगदोह ने लिखी है।