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कोतवाल धन सिंह गुर्जर
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने वाले कोतवाल

कोतवाल धन सिंह गुर्जर

भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में, मेरठ शहर को 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के केंद्र के रूप में याद किया जाता है। धन सिंह गुर्जर, जिन्हें धुन्ना सिंह के नाम से भी जाना जाता है, वे मेरठ के असाधारण कोतवाल के रूप में भी याद किए जाते हैं। उनकी एक उत्प्रेरक के तौर पर, हमेशा उन घटनाओं के लिए प्रशंसा की जाएगी, जिसने इस ऐतिहासिक विद्रोह को जन्म दिया। अंततः इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया तथा भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।

धन सिंह का जन्म संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के मेरठ के पांचाली गाँव में, गुर्जरों के शक्तिशाली जमींदार समुदाय में हुआ था। 09 मई 1857 को, ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाहियों ने उनको दिए गए कारतूसों के उपयोग के आदेश की अवहेलना की। इन कारतूसों के बारे में यह अफ़वाह थी कि इन पर पशुओं की चर्बी लगाई गई थी और इनका उपयोग करना सिपाहियों की धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ़ था। ब्रिटिश अधिकारियों ने प्रतिक्रिया स्वरूप उन्हें सेना से निकाल दिया और जेल भेज दिया। इस घटना की खबर, जंगल की आग की तरह फैल गई। 10 मई को, ज़िले भर के ग्रामीणों ने एकत्र हो कर, मेरठ पुलिस थाने को घेर लिया तथा विरोध प्रदर्शन करते हुए सिपाहियों की रिहाई की माँग की।

उस समय धन सिंह कोतवाली के प्रमुख थे। उस क्षेत्र के कोतवाल के रूप में शहर की रक्षा करना उनका कर्तव्य था। हालाँकि, विद्रोहियों का साथ देने के लिए उनके कई अधिकारियों ने अपने पदों को छोड़ दिया था। इन घटनाओं ने धन सिंह को क्रांति में शामिल होने और आगे बढ़कर नेतृत्व करने के लिए प्रेरित किया। उनके नेतृत्व में, 800 से अधिक कैदियों को रिहा किया गया था। उन्होंने अन्य क्रांतिकारियों के साथ उस स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लेने के लिए हाथ मिलाया, जिसे अब "दिल्ली की घेराबंदी" के रूप में जाना जाता है। यह स्वतंत्रता के पहले संग्राम में, सबसे निर्णायक संघर्षों में से एक था।

क्रांतिकारियों ने, शहर भर में अंग्रेज़ों से जुड़ी हर वस्तु को लूटा और नष्ट कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचारों और अन्यायपूर्ण शासन के विरोध में लूट, चोरी और हत्याएँ होने लगीं। मगर ब्रिटिश सेना ने अपनी पूरी शक्ति और सत्ता के बल पर, विद्रोह को दबा दिया। मेरठ शहर में हुए इस विद्रोह की शुरूआत की जाँच के लिए और सुरागों का पता लगाने के लिए, एक समिति का गठन किया गया। चश्मदीद गवाहों के बयानों के आधार पर, समिति द्वारा एक रिपोर्ट दायर की गई, जिसमें धन सिंह गुर्जर को मुख्य आरोपी और उस विद्रोह का प्रमुख नेता घोषित किया गया। जो विद्रोह हुआ था उसका बदला लेने के लिए, अंग्रेज़ों ने धन सिंह के गाँव पांचली पर हमला कर दिया, जिसमें 400 ग्रामीणों की मौत हो गई। धन सिंह को, अंग्रेज़ों के खिलाफ़ साज़िश रचने के लिए, मौत की सज़ा सुनाई गई और 04 जुलाई 1857 को, उनको फाँसी दे दी गई।

मेरठ में धन सिंह गुर्जर की प्रतिमा

धन सिंह गुर्जर की प्रतिमा का अनावरण (जुलाई 2018 - मेरठ)
 

बहादुर धन सिंह को, सम्पूर्ण भारत में विभिन्न पहलों के माध्यम से, देशवासियों द्वारा याद किया जाता है। उनके वीरतापूर्ण नेतृत्व की स्मृति में, 2018 में, पुलिस महानिदेशक (उत्तर प्रदेश) ओपी सिंह ने, उस सदर पुलिस थाने (मेरठ) में धन सिंह गुर्जर की एक प्रतिमा का अनावरण किया, जहाँ वह 190 साल पहले कोतवाल हुआ करते थे। इसके अलावा, मेरठ विश्वविद्यालय के सामुदायिक केंद्र का नाम बदलकर धन सिंह कोतवाल सामुदायिक केंद्र कर दिया गया है। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए तथा उनके सम्मान के तौर पर, दिल्ली के मध्य से गुज़रने वाली एक प्रमुख सड़क और लोनी (गाज़ियाबाद) में एक विश्वविद्यालय का नाम भी, उनके नाम पर ही रखा गया है।