जंजीरा किला महाराष्ट्र के तट से कुछ दूर, अरब सागर में एक छोटे से द्वीप पर स्थित है। इस किले की चौड़ी दीवारों से टकराती हुई समुद्री लहरों का दृश्य देखने लायक होता है। इस अजेय किले को चारों ओर से घेरता हुआ समुद्र, हमलावरों के विरुद्ध एक अभेद्य खाई का काम करता था।
यह किला ब्रोच, दमन, दीव और मैंगलोर को जोड़ने वाले व्यस्त समुद्री व्यापार मार्ग पर स्थित है। इस किले ने उस व्यापारिक मार्ग के नौपरिवहन की कमान संभाली है जो अफ़्रीका, फ़ारस और यूरोप को भारतीय उपमहाद्वीप से जोड़ता है। जंजीरा किले ने विभिन्न देशों और प्रदेशों से व्यापारियों को सदैव आकर्षित किया है। यह किला उन व्यापारियों के लिए, ऐसे व्यापारिक मार्गों पर रुकने का एक स्थान बन गया था। सोलहवीं शताब्दी में, किले में विलासिता की वस्तुओं जैसे हाथी दाँत, सोना, रेशम, घोड़े और गुलामों में व्यापार किया जाता था।
जंजीरा किले की वास्तुकला से ऐसा आभास होता है, जैसे यह अरब सागर में चट्टानों के बीच पानी पर तैर रहा हो। चित्र स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
किले का नाम अरबी शब्द - जज़ीरा से आता है जिसका अर्थ है "समुद्र के बीच में एक द्वीप"। ऐसा माना जाता है कि जिस द्वीप पर यह किला स्थित है, वह पहले कोली जनजाति के लोगों का गाँव हुआ करता था, जिनका मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना था। शुरुआत में कोलियों ने मोटी लकड़ियों से एक छोटे किले का निर्माण किया, ताकि वे समुद्री लुटेरों के निरंतर हमलों से खुद को बचा पाएँ।
यद्यपि, सिद्दी लोगों ने इस जगह के रणनीतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इस संरचना के वर्तमान रूप का निर्माण किया था। कुछ किवदंतियों केअनुसार, किले का निर्माण पूरा होने में कई रुकावटें आईं। ऐसा माना जाता है कि इन बाधाओं को दूर करने के लिए तत्कालीन सिद्दी शासक ने अपने 22 वर्षीय पुत्र की बलि दी थी। सिद्दी लोग मूल रूप से अबीसीनिया के थे और उनमें से अधिकांश लोगों को दिल्ली सल्तनत के समय गुलामों, अंगरक्षकों और सैनिकों के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप में लाया गया था। परंतु अपनी वीरता और कड़ी मेहनत से वे महत्वपूर्ण पदों तक पहुँचे और अंततः जंजीरा के शासक बन गए। अहमद नगर के निज़ाम शाह के सेनापति, मलिक अंबर, इसी समुदाय के थे।
सिद्दियों ने डचों, पुर्तगालियों, फ़्रांसीसियों, अंग्रेज़ों, मुगलों और मराठों के साथ कई भयंकर समुद्री युद्ध लड़े, जिन सभी में वे अपराजित रहे। कुछ किंवदंतियों के अनुसार, जब मुगल सम्राट जहाँगीर बार-बार मलिक अंबर को युद्ध के मैदान में हराने में असफ़ल रहे, तो उन्होंने अंबर की प्रतिमूर्ति का निर्माण करने का आदेश दिया, जिसके ऊपर सम्राट अपनी कुंठा को दूर करने के लिए तीर चलाया करते थे। जंजीरा के गढ़ ने, सिद्दियों को मराठों के विरुद्ध कई राजनीतिक-मैत्रियों का हिस्सा बनने का अवसर दिया। औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान, मुगलों को मराठा आक्रमणों का सामना करने में मदद करने के लिए, सिद्दियों को मुगल साम्राज्य के मनसबदार बनाया गया था। इसी तरह, उन्होंने अंग्रेज़ों की सहायता की, जिसके लिए उन्हें "नवाब" की उपाधि दी गई। दिलचस्प बात यह है कि सिद्दी राजाओं की श्रेणी में नहीं आते थे। समय-समय पर, वे अपने समुदाय में से एक सक्षम नेता को चुनते थे जो जंजीरा के किले की रक्षा करता था। चुने हुए नेता को "वज़ीर" कहा जाता था। 1879 ई. के बाद ही उन्हें “नवाब” की उपाधि दी गई थी जिसके बाद सिद्दी शासन एक राजवंश में तब्दील हो गया।
सिद्दियों का वर्चस्व उनके शासक सुरुल खान (1706-1732 ई.) के शासनकाल में अपने चरम पर पहुँचा था। उन्होंने किले में ज़रूरी किलेबंदी करवाई और बाद में जंजीरा राज्य के क्षेत्र का विस्तार किया। उनके शासनकाल में, सिद्दियों ने मुख्य भूमि में 22 किलों पर फतह पाई, जिनके लिए मराठा भी संघर्ष कर रहे थे। जंजीरा के किले ने सिद्दियों को, उनके क्षेत्र को मुख्य भूमि तक विस्तारित करने में मदद की। राजापुरी (तट के किनारे एक गाँव जहाँ से जंजीरा किले तक पहुँचा जा सकता है) से लगभग एक किलोमीटर दक्षिण में एक गढ़ी का निर्माण किया गया था, जहाँ तीन सिद्दी शासकों की कब्रें है। इस परिसर को “खोखरी मकबरे” के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, मुख्य भूमि पर सिद्दी शासकों द्वारा निर्मित अहमदगंज महल या नवाब महल स्थित है। यह महल 1885 में, तत्कालीन शासक द्वारा फ़्रेंको-तुर्की वास्तुकला की शैली में बनाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि मराठा भी जंजीरा किले के रणनीतिक महत्व को जानते थे परंतु इसे जीतने में असमर्थ होने के कारण, उन्होंने भी 1676 ई. में “पद्मदुर्ग” या “कासा किले” नामक एक समुद्री किले का निर्माण किया। उत्तर- पूर्वी दिशा में बने इस किले का बाद में परित्याग कर दिया गया, क्योंकि इसमें जंजीरा किले के समान ताज़े पानी के स्रोत न के बराबर थे।
जंजीरा किले के शक्तिशाली बुर्ज । चित्र स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स
जंजीरा किला मुरुड के तट से लगभग 3 किलोमीटर दूर है और रणनीतिक रूप से अरब सागर के चट्टानों से भरे छिछले पानी के केंद्र में स्थित है। इस कारण, कोई भी बड़ा सशस्त्र जलयान किले पर हमला नहीं कर सकता। किले की दीवारें 40 फ़ीट ऊँची हैं। वे चूना पत्थर, काँच और गुड़ के मिश्रण से निर्मित हैं और उनके 28 बुर्ज भी हैं, जिसके कारण किले पर फतह करना और भी मुश्किल हो जाता है। जैसे-जैसे हम किले के करीब पहुँचते हैं, ऐसा लगता है मानो ये विकट दीवारें ऊपर की ओर उठ रही हों। शत्रु पर नज़र रखने के लिए ये दीवारें बहुत उपयोगी होती थीं। शेर दरवाज़ा, एक छिपा हुआ प्रवेश द्वार है और यह इस तरीके से बनाया गया है कि यह केवल 20 मीटर की दूरी से ही दिखाई देता है। दूसरे द्वार को दरिया दरवाज़ा कहा जाता है, क्योंकि यह अरब सागर के गहरे पानी की दिशा में खुलता है। इसका उपयोग एक पलायन मार्ग के रूप में भी किया जाता था और इसलिए इसे चोर दरवाज़ा भी कहा जाता है।
शेर दरवाज़े से जंजीरा के किले का प्रवेश द्वार। चित्र स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स।
छिपा हुआ चोर दरवाज़ा, अनंत समुद्र की दिशा में खुलता है। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स।
जंजीरा किला एक छोटे-से एकांत शहर के जैसा था। किले के अंदर एक मस्ज़िद, एक महल और हौज़ थे। समुद्र के खारे पानी से घिरे होने के बावजूद, किले में दो जलाशयों से, पीने का ताज़ा पानी प्रचुर मात्रा में आता था। लंबी घेराबंदियों के दौरान यहाँ रहने वाले इन्हीं तालाबों के पानी के सहारे जीवित रहे। किले के भीतर कई बावलियाँ भी थीं जिनमें साल भर पीने का पानी उपलब्ध रहता था। यह किला कलक बंगड़ी, चावरी और लांडा कसम नामक तीन विशाल तोपों के लिए प्रसिद्ध है। इस किले में पंचायतन शैली में बना एक मंदिर, एक सात मंज़िला दरबार कक्ष, एक अन्न भंडार कक्ष और प्रसिद्ध शीश महल जैसी संरचनाएँ भी हैं।
किले के अंदर ताज़े पानी का एक जलाशय। चित्र स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स।
जंजीर किले में स्थित, भारत की तीसरी सबसे बड़ी तोप - कलक बंगड़ी। चित्र स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स।
ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेज़ भी सिद्दियों से डरते थे, जो वहाँ से सुरक्षित रूप से गुज़रने के लिए उन्हें कर की एक निश्चित राशि दिया करते थे। स्वंतंत्रता के बाद, जंजीरा का किला भारत में सम्मिलित हो गया। दिलचस्प बात यह है कि सिद्दी लोग जंजीरे किले में ही बसे रहे जब तक उन्हें 1972 में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा निकाल नहीं दिया गया। इस किले को साढ़े तीन शताब्दियों तक कोई भी फतह नहीं कर पाया। निश्चित रूप से, यह सिद्दियों के पराक्रम, साहस और वीरता का जीता जागता प्रमाण है।
जंजीरा किले के खंडहर। चित्र स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स