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करतार सिंह सराभा

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

करतार सिंह सराभा

करतार सिंह का जन्म 24 मई 1896 को पंजाब के सराभा गाँव में हुआ था। वे एक साधारण सिक्ख परिवार में जन्मे इकलौते बेटे थे। पिता की मृत्यु के बाद उनके दादा ने उनका पालन-पोषण किया। करतार सिंह सराभा का जन्म अविभाजित पंजाब में हुआ था, जो कई समय से भयंकर सूखे से जूझ रहा था। बेहतर अवसरों की तलाश में, पंजाबियों ने कनाडा और अमरीका जैसी जगहों पर पलायन करना शुरू कर दिया था। 20वीं सदी के पहले दशक तक हज़ारों पंजाबी इन देशों में चले गए थे। जुलाई 1912 में, सराभा कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में अपनी आगे की शिक्षा पूरी करने के इरादे से सैन फ़्रांसिस्को पहुँचे। यद्यपि यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने वहाँ शिक्षा ग्रहण की या नहीं। हालाँकि, कैलिफ़ोर्निया में उनके अनुभवों ने उनका भविष्य बदल दिया।

आम तौर पर अप्रवासियों और विशेष रूप से औपनिवेशिक देशों से आए अप्रवासियों के प्रति अमरीकियों का द्वेष बहुत स्पष्ट था। उस समय, सराभा कई अन्य अप्रवासियों की तरह ही कैलिफ़ोर्निया में एक मज़दूर के रूप में काम कर रहे थे जिस दौरान उन्हें एक औपनिवेशिक देश से आने के कारण होने वाले अपमान का अच्छे से एहसास हुआ। अमरीका में भारतीय लोग अक्सर अपनी समस्याओं पर चर्चा करने और अपने दुखों को साझा करने के लिए एक दूसरे से मिलते थे। ऐसे संघों और विचारों के आदान-प्रदान के कारण, अपने देश के उपनिवेशवादियों (अंग्रेज़ों) की तरफ़ करतार सिंह का क्रोध और भी बढ़ गया। 1913 में, ओरेगॉन में गदर पार्टी का गठन हुआ। यह भारतीयों का एक संगठन था, जो सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंक, अपने लोगों की गरिमा को वापस स्थापित करना चाहता था। संगठन का मुख्यालय सैन फ़्रांसिस्को में था। सराभा ने इसमें सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया। उन्होंने वहाँ के भारतीयों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रकाशित किए जाने वाले गदर अखबार के पंजाबी अंक को प्रकाशित करने की पहल की।

जुलाई 1914 में, जब प्रथम विश्व युद्ध में यूरोप भी सम्मिलित हो गया, तो गदर पार्टी के सदस्यों ने इसे अंग्रेज़ों पर हमला करने के एक अवसर के रूप में देखा। इसके बाद उन्होंने भारतीयों को भारत में ही संगठित करने की योजना बनाई। करतार सिंह गदर आंदोलन के उन सदस्यों में से एक थे, जो 1914 के अंत तक भारत लौट आए थे। उनमें से कई क्रांतिकारियों को, उनके आगमन पर ही ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ़्तार कर लिया था। करतार सिंह और रास बिहारी बोस जैसे अन्य क्रांतिकारियों ने इस घटना से विचलित हुए बिना, पंजाब में छावनियों में देशभक्त सैनिकों को ढूँढकर, अंग्रेज़ों के खिलाफ़ संगठित करने का काम जारी रखा। हालाँकि, इससे पहले कि वे विद्रोह कर पाते, अंग्रेज़ों ने क्रांतिकारियों को गिरफ़्तार कर लिया। इसके परिणामस्वरूप लाहौर षडयंत्र मुकदमा दायर हुआ, जिसके अंतर्गत अवरूद्ध हुए विद्रोह में शामिल क्रांतिकारियों के खिलाफ़ लाहौर में कई मुकदमे चलाए गए। न्यायालय में करतार सिंह सराभा ने बिना किसी खेद या ग्लानि के गर्व के साथ यह कहा कि अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लोगों को लामबंद करना उनका कर्तव्य था। उनकी अडिग देशभक्ति ने न्यायाधीशों को पूरी तरह से उनके खिलाफ़ कर दिया। सराभा को उनके हमवतन विष्णु गणेश पिंगले के साथ 16 नवंबर 1915 को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई।

करतार सिंह सराभा केवल उन्नीस वर्ष के थे जब उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने फाँसी दे दी थी। उनकी बहादुरी, सक्रियता और भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता, किसी भी वीर योद्धा से कम नहीं थी। वे समकालीन स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा और साहस का स्रोत बने। उदाहरण के लिए, भगत सिंह जो निर्भीक करतार सिंह सराभा को अपना आदर्श मानते थे।

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करतार सिंह सराभा गदर आंदोलन के उन महान सदस्यों में से एक थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अथक संघर्ष किया