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तिरुपर कुमारन
कोड़ि कथा कुमारन (ध्वज को बचाने वाले कुमारन)

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

Portrait of Tirupur Kumaran

ओकेएसआर कुमारस्वामी मुदलियार का जन्म 04 अक्टूबर 1904 को चेन्निमलाई (वर्तमान में तमिलनाडु का इरोड ज़िला) के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनका परिवार हथकरघा बुनाई के उद्योग में काम करता था और उनकी स्कूली शिक्षा के खर्च का भार उठाने में असक्षम था। इसलिए परिवार की आय बढ़ाने और काम सीखने के लिए उन्हें कक्षा 5 में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उनके परिवार की इच्छा के अनुसार, 19 वर्ष की आयु में ही उनकी शादी कर दी गई। इस दौरान उन्होंने कताई मिल में एक सहायक के रूप में काम करना जारी रखा।

इसी बीच युवा कुमारन पूरे देश में तेज़ी से गति पकड़ते स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित हो रहे थे। गांधीजी के मूल्यों और उद्देश्यों से प्रेरित होकर, उन्होंने उनके निर्देशों के अनुसार प्रदर्शनों और गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में उनकी बढ़ती रुचि को देखकर उनके परिवार को चिंता हुई। उनके परिवारवाले कई बार उनसे मिलने जाते और उन्हें आंदोलन से दूर रहने की चेतावनी देते क्योंकि उन्हें लगता था कि वह अपने पूरे परिवार के जीवन को खतरे में डाल रहे थे। वे उनके कार्यस्थल पर भी जाते और उनके सहकर्मियों से कहते कि वह उन्हें ऐसी गतिविधियों का हिस्सा बनने से रोकें।

लेकिन कुमारन ने उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया। बल्कि वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इतनी तल्लीनता से शामिल हुए कि उन्होंने कुछ समय बाद ही देश बंधु युवा संघ की स्थापना की। इस समूह के सदस्य मुख्य रूप से तमिलनाडु और आसपास के अन्य क्षेत्रों के युवा थे, जो भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए उत्सुक थे। उन सब ने साथ मिलकर पूरे तमिलनाडु में कई ब्रिटिश विरोधी मार्च आयोजित किए। कुमारन को प्यार से तिरुपुर कुमारन के रूप में जाना जाता था क्योंकि वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने वाले युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत थे।

1932 में जब ब्रिटिश अधिकारियों ने बंबई में एक प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए गांधीजी को जेल में डाल दिया, तो पूरे देश में दंगे और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। उसी वर्ष 11 जनवरी को तिरुपुर में, त्यागी पी एस सुंदरम के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन के सम्मान में और ब्रिटिश अधिकारियों के प्रति अपनी अवज्ञा दिखाने के लिए एक देशभक्ति मार्च आयोजित किया गया था। प्रदर्शनकारियों ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लहराया, इस बात की परवाह किए बिना कि उस समय ऐसा करने पर प्रतिबंध था। तिरूपुर कुमारन झंडा थामे हुए प्रदर्शनकारियों में से एक थे। ब्रिटिश सेना ने प्रदर्शनकारियों पर लाठियाँ बरसानी शुरू कर दीं। कुमारन ने निडर होकर परिसर छोड़ने से इनकार कर दिया। वह इस अफ़रा-तफ़री में फँस गये, और बाद में वह सड़क पर मृत पाए गए, लेकिन उस अवस्था में भी उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज को कसकर पकड़ा हुआ था। उनके परिवार का सबसे बड़ा डर सच हो गया था। 27 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही शहीद हुए कोडि कथा कुमारन (ध्वज को बचाने वाले कुमारन) का बलिदान हमेशा स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक अभिन्न अंग रहेगा।

इस युवा स्वतंत्रता सेनानी को श्रृद्धांजलि देने के लिए तिरुपुर रेलवे स्टेशन के सामने कुमारन सलाई में तिरुपुर कुमारन स्मारक बनाया गया। 2004 में चेन्निमलाई, इरोड जिले (तमिलनाडु) में एक संस्मारक डाक टिकट जारी किया गया था। उनकी 118 वीं जयंती के अवसर पर, 4 अक्टूबर 2021 को, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इरोड शहर में संपत नगर की मुख्य सड़क का नाम बदलकर त्यागी कुमारन रोड कर दिया।

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

Memorial statue of Tirupur Kumaran