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ब्रजकिशोर प्रसाद

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

Painting of Braj Kishore Prasad

ब्रज किशोर प्रसाद का जन्म 14 जनवरी 1877 को बिहार के सिवान जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक वर्षों की शिक्षा छपरा में पूरी की और फिर कानून की पढ़ाई के लिए कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। उन दिनों, अँग्रेज़ी में शिक्षा को लोकप्रिय बनाने के लिए, अंग्रेज़ों ने उनके द्वारा शासित प्रांतों में एक प्रबंधन प्रणाली शुरू करी, जिसके तहत ज़मींदारों ने इस उद्देश्य के लिए स्कूल और कॉलेज निर्मित किए। शिक्षा के विद्यालयों में इस तीक्ष्ण बदलाव ने प्रसाद को प्रभावित किया। विद्वान और उदारवादी होने के अलावा, वह एक विधिवेत्ता, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और एक परोपकारी व्यक्ति भी थे। वे बिहार में आधुनिकता के आगमन की साक्षात पहचान बने।

गांधीजी के चंपारण में कदम रखने से बहुत पहले से ही, प्रसाद कानूनी तरीकों से किसानों की दुर्दशा में सुधार लाने के लिए काम कर रहे थे। वह न्याय के लिए हमेशा निडरता और आत्मविश्वास से अपनी आवाज़ उठाते थे, जबकि कई लोग सरकार के खिलाफ़ बोलने से डरते थे। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप बंदोबस्त रिपोर्ट (सेटलमेंट रिपोर्ट ) आई, जो वैसे तो रैयतों (किसानों) के लिए विशेष रूप से सहायक नहीं थी पर यह एक संकेत था कि सरकार उनकी समस्याओं से अवगत थी।

1915 में महात्मा गांधी के साथ उनकी मुलाकात ने उन्हें वास्तव में इतना प्रेरित किया कि उन्होंने अपना पूरा ध्यान देश की आज़ादी की लड़ाई को समर्पित करने के लिए वकालत छोड़ दी। चंपारण मुद्दे को उठाने के गांधीजी के निर्णय में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके लिए गांधीजी ने राजेंद्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिन्हा को उनके साथ नेतृत्व करने के लिए चुना था। प्रसाद के समर्पण से गांधीजी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी आत्मकथा, ‘द स्टोरी ऑफ माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ में, "द जेंटल बिहारी" के शीर्षक वाला एक पूरा अध्याय उन्हें समर्पित किया।

चंपारण आंदोलन में प्रसाद की भूमिका की आज भी प्रशंसा की जाती है। उनकी उत्कृष्ट संगठनात्मक क्षमता, उनकी कानूनी कुशाग्रता और उनके किसानों की समस्याओं से अवगत होने से गांधीजी को किसानों की पीड़ा को दूर करने में मदद मिली। यहाँ तक की राज्यपाल के निमंत्रण पर गांधीजी उन्हें राज्यपाल से मिलने राँची भी ले गए थे। इस महत्वपूर्ण बैठक के परिणामस्वरूप 1917 के चंपारण कृषि विधेयक को प्रस्तुत किया गया, जिसमें तिनकाठिया प्रणाली को समाप्त करने का सुझाव दिया गया (वह प्रथा जिसने किसानों को अपनी भूमि के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करने के लिए मजबूर किया था) और किसानों को तवन (मुआवज़ा) के 25% का भुगतान करने की बात की गई। हालाँकि, यह एक उपयुक्त समाधान नहीं था, लेकिन यह निश्चित रूप से सही दिशा में एक कदम था।

चंपारण आंदोलन के बाद, पूर्णकालिक राजनेताओं का एक नया समूह उभरा, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विचारधारा और कार्यप्रणाली थी, और ब्रज किशोर प्रसाद इस समूह के अग्रणी थे। कुछ मुद्दों पर गांधीजी के साथ उनकी असहमति के बावजूद, प्रसाद गांधीजी के सबसे भरोसेमंद सेनापति थे। जब गांधीजी चंपारण में नहीं थे, तो उनकी जगह प्रसाद को सौंपी गई। बिहार में कांग्रेस पार्टी को ब्रज किशोर प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा और राजेंद्र प्रसाद द्वारा विकसित और मज़बूत किया गया था। जनता के बीच उनकी लोकप्रियता और उस क्षेत्र में उनके प्रभाव की वजह से उन्हें सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस कार्य समिति के लिए चुना गया। परंतु उन्होंने अपनी गतिविधियों को बिहार तक सीमित कर दिया, और गांधीजी के सिद्धांतों और नीतियों को वहीं लागू करने का प्रयास किया।

प्रसाद बिहार के स्वतंत्रता संग्राम में अग्र स्थान पर थे, और सिवान जिला स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे था। इस क्षेत्र के निवासी अपनी बहादुरी और लड़ने के जोश के लिए जाने जाते थे। सिवान, सामाजिक मुद्दों पर आवाज़ उठाने के लिए भी जाना जाता था, जिनमें से एक था पर्दा-विरोधी आंदोलन जिसका नेतृत्व भी प्रसाद ने ही किया था। उन्होंने महिलाओं के उद्धार के लिए प्रयत्न किए। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित होने के लिए अपने घरों से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित किया। वास्तव में उन्होंने अपनी बेटियों के ज़रिए एक मिसाल कायम करी। प्रसाद ने उन्हें शिक्षित किया और उन्हें राजनीतिक और सामुदायिक मसलों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इसने अन्य महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। प्रसाद ने सामाजिक सुधार लाने के लिए कड़ी मेहनत की जिससे किसानों की स्थिति में सुधार हो सके।

अस्वस्थ होते हुए भी, ब्रज किशोर प्रसाद ने पटना में सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया। दुर्भाग्यवश, यह अकीर्तित नायक 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करते हुए देखने के लिए जीवित नहीं रहे, क्योंकि 1946 में उनका निधन हो गया।

सच्चिदानंद सिन्हा द्वारा लिखित उनकी जीवनी, ‘ब्रज किशोर प्रसाद: द हीरो ऑफ मैनी बैटल्स’, भारत के राष्टीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित की गई है। आज, बिहार विद्यापीठ अन्य प्रतिष्ठित सहयोगियों के साथ उनके संयुक्त प्रयासों की विरासत है।

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

Braja Kishore Prasad - Biography