Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

अनुसूया प्रसाद बहुगुणा

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

अनुसूया प्रसाद बहुगुणा

अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का जन्म 18 फरवरी 1894 को उत्तराखंड के चमोली ज़िले के पुण्यतीर्थ अनुसूया देवी आश्रम में हुआ था। उनका नाम अनुसूया देवी के नाम पर रखा गया था। वे एक वीर और साहसी स्वतंत्रता सेनानी और उत्तराखंड राज्य के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक नेताओं में से एक थे। अनुसूया बहुगुणा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नंदप्रयाग से और मैट्रिक की पढ़ाई पौड़ी से पूरी की थी। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक किया, और 1916 में, उन्होंने कानून की पढ़ाई की। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, वे नायब तहसीलदार के रूप में कार्यरत रहे। इस दौरान वे उभरती राष्ट्रवाद की लहर से प्रेरित हुए, जो उस समय पूरे देश में फैल रही थी।

1919 में, अनुसूया बहुगुणा और बैरिस्टर मुकुंदी लाल ने 13 अप्रैल 1919 के जलियाँवाला बाग नरसंहार के पश्चात् आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अमृतसर सत्र में भाग लिया। उसमें अनुसूया और मुकुंदी ने अंग्रेज़ों द्वारा शासित गढ़वाल में लोगों की समस्याओं को प्रस्तुत किया। इस सत्र ने उन्हें रॉलेट अधिनियम के खिलाफ़ गढ़वाल में एक आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। यह अनुसूया के लिए एक कठिन कार्य साबित हुआ, क्योंकि गढ़वाल के लोग अंग्रेज़ी प्रशासन के प्रति वफ़ादार थे।

उन्होंने गढ़वाल के लोगों को एकजुट करके, सफलतापूर्वक ऊपरी गढ़वाल क्षेत्र में प्रचलित कुली उतार, कुली बेगार और बरदायश जैसे सामाजिक दुराचारों के खिलाफ़ लड़ने के लिए प्रेरित किया। बिना किसी भुगतान के जबरन श्रम करवाने वाली प्रथा को कुली बेगार कहा जाता था।

अंग्रेज़ी अधिकारियों के सामान को उठाने के अलावा, ग्रामीणों को कचरा उठाने और यहाँ तक कि अंग्रेज़ों के कपड़े धोने जैसे अन्य निम्न कार्यों के लिए भी मजबूर किया जाता था। हालाँकि कुली उतार के तहत एक न्यूनतम वेतन निर्धारित किया गया था, लेकिन वास्तव में वह कभी लागू ही नहीं हुआ। बरदायश प्रथा के अनुसार स्थानीय लोगों को अंग्रेज़ों को भोजन, फल, और दूध जैसी अन्य खाद्य सामग्री मुफ़्त में देनी पड़ती थी।

1921 में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के नेतृत्व में गढ़वाल में कुली बेगार प्रथा का अंत हुआ। इसके उपरांत गढ़वाल के लोगों ने उन्हें ‘गढ़केसरी’ की उपाधि से सम्मानित किया। लेकिन उनके प्रयास यहाँ खत्म नहीं हुए और वे कई सामाजिक कार्यों से निरंतर रूप से जुड़े रहे। उन्होंने बद्रीनाथ मंदिर में हो रहे भ्रष्टाचार और कुप्रशासन के खिलाफ़ आवाज़ उठाई। उनके प्रयास रंग लाए और बद्रीनाथ मंदिर प्रबंधन अधिनियम को संयुक्त प्रांत विधान परिषद् में सफलतापूर्वक पारित किया गया।

1921 में उन्हें गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित गढ़वाल युवा सम्मेलन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। उसी वर्ष उन्हें गढ़वाल से ज़िला कांग्रेस कमेटी का मंत्री चुना गया। 1930 में, महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए नमक सत्याग्रह में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने उत्तराखंड में इस आंदोलन का नेतृत्व किया। इसके कारण उन पर ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 144 के तहत आरोप लगाया गया था, और चार महीने के लिए जेल भेज दिया गया था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, उन्हें अंग्रेज़ी सरकार द्वारा घर में नज़रबंद कर दिया गया था। इन सब के बावजूद, उपनिवेशवाद के खिलाफ़ उन्होंने अपनी लड़ाई कभी नहीं छोड़ी।

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण 23 मार्च 1943 को उनकी अकाल मृत्यु हो गई। 10 अक्टूबर 1974 को, इस अकीर्तित नायक की याद में उत्तराखंड में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर कॉलेज अगस्त्यमुनि की स्थापना की गई।