देशभक्त तरुण राम फूकन
(1877 - 1939)
तरुण राम फूकन का जन्म 22 जनवरी 1877 को हुआ था। वे ‘देशभक्त’ के नाम से मशहूर थे क्योंकि अपने देश के प्रति उनका प्रेम जगज़ाहिर था। गुवाहाटी में कॉटन कॉलेजिएट स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के पश्चात् उन्होंने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने लंदन जाकर कानून की पढ़ाई की और ‘बार-एट-लॉ’ की डिग्री प्राप्त की। इसके उपरांत, फूकन भारत वापस आए और गुवाहाटी के अर्ल लॉ कॉलेज में एक शिक्षक के पद पर कार्यरत हुए। गांधीजी से प्रेरित होकर, फूकन वकालत छोड़कर राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने।
1920 में, फूकन कांग्रेस पार्टी से जुड़े और उन्होंने असम में कांग्रेस पार्टी के गठन में एक प्रमुख भूमिका निभाई। 1921 में, जब गांधीजी ने पहली बार असम का दौरा किया, तब फूकन उनके विश्वसनीय सहयोगी रहे। फूकन असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और गांधीजी के संदेश का प्रचार करते हुए असम के कोने-कोने तक यात्रा की। अंतत: उन्हें असहयोग आंदोलन में भागीदारी के लिए अंग्रेज़ अधिकारियों द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया और एक वर्ष की कैद की सज़ा सुनाई गई। 1926 में उन्होंने गुवाहाटी के पांडु में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति को आयोजित करने में एक मुख्य भूमिका निभाई। गांधीजी, मोतीलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, और मदन मोहन मालवीय जैसे कई अन्य प्रमुख राष्ट्रीय नेता इस सत्र का हिस्सा बने। इस दौरान, गांधीजी भरलुमुख में फूकन के घर रुके और ‘बिदेशी बोस्त्रो डाह जग्या’ (विदेशी वस्तुओं को जलाना) में हिस्सा लिया। फूकन असम में स्वदेशी आंदोलन की एक प्रमुख हस्ती बन गए, और उन्होंने खादी के उपयोग को लोकप्रिय बनाया।
फूकन के लिए, स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में, उनके आस-पास के लोगों को शिक्षित करना बहुत महत्वपूर्ण था। महिला सशक्तिकरण के पक्के समर्थक होने के नाते, उन्होंने महिलाओं को अपने घरों से बाहर निकलने और राष्ट्रीय गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। 1921 में, जब गांधीजी ने फूकन के घर पर बैठकें कीं, तो उनकी पत्नी सहित कई महिलाओं ने उन बैठकों में भाग लिया। न केवल उन्होंने ब्रिटेन में उत्पादित सामानों का बहिष्कार किया, बल्कि कई महिलाओं ने स्वदेशी कपड़े की कटाई और बुनाई भी शुरू कर दी। उन्होंने गांधीजी की यात्रा के दौरान खादी की 500 टोपियाँ बनाने की भी पहल की जो कांग्रेस के कार्यकर्ता पहनने वाले थे। अन्य स्थानों पर ग्रामीण महिलाओं ने एकजुट होकर असहयोग आंदोलन का संदेश जगह-जगह फैलाया।
1921 में, असम-बंगाल रेलवे कर्मचारियों और पूर्वी बंगाल के स्टीम कर्मचारियों ने चाँदपुर बागान श्रमिकों के साथ मिलकर, अंग्रेज़ों द्वारा किए गए अत्याचारों के विरोध में अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की। तरुण राम फूकन उस समय राजनीतिक रूप से बहुत सक्रिय थे और उन्होंने इस हड़ताल को असम-बंगाल रेलवे की ब्रह्मपुत्र घाटी सीमा तक ले जाने की कोशिश की। नबीन चंद्र बोरडोलोई सहित अन्य युवा कांग्रेसियों के एक समूह ने इसमें उनकी सहायता की। उन्होंने सी आर दास और जे एम सेनगुप्ता जैसे बंगाली राष्ट्रवादी नेताओं के साथ संबंध बनाए रखे, जो बंगाल हड़ताल में महत्वपूर्ण हस्तियाँ थे। कई बाधाओं से घिरे होने के बावजूद, हड़ताल के दौरान फूकन और उनके साथियों ने श्रमिकों को प्रेरित किया और उनका हौंसला बढ़ाया।
हालाँकि, फूकन एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, परंतु उन्हें हमेशा इस तरह से नहीं देखा जाता था। उस समय के अधिकांश स्वतंत्रता सेनानियों की ही तरह, इस देशभक्त को भी देश के लिए किए गए उनके काम के लिए वह मान्यता नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। लोगों के बीच राष्ट्रवादी उत्साह को परिपक्व करने के उनके प्रयासों का लिखित रूप में बहुत अच्छे से उल्लेख नहीं किया गया है। उनकी निस्वार्थता और देशभक्ति की भावना का स्मरण करने के लिए और युवा पीढ़ी को प्रबुद्ध करने के लिए, हर साल 28 जुलाई को असम सरकार उनकी पुण्यतिथि को देशभक्ति दिवस के रूप में मनाकर उन्हें सम्मानित करती है।