सुहासिनी गांगुली
03 फ़रवरी 1909 को, अविभाजित बंगाल के खुलना ज़िले में अविनाशचंद्र गांगुली और सरला सुंदरा देवी के घर जन्मी, सुहासिनी गांगुली एक क्रांतिकारी थीं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया।
सन् 1924 में, गांगुली ने ढाका ईडन स्कूल से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। डिप्लोमा के साथ-साथ, गांगुली ने काम करना भी शुरू कर दिया। मूक और बधिर बच्चों के एक विशेष विद्यालय में पढ़ाने के लिए, वे कलकत्ता स्थानांतरित हो गईं। सूत्रों के अनुसार, कलकत्ता में रहने के दौरान, सुहासिनी गांगुली दो प्रसिद्ध क्रांतिकारियों, प्रीतिलता वाड्डेदार और कमला दास गुप्ता से मिलीं, जिन्होंने उन्हें जुगांतर क्रांतिकारी समूह का हिस्सा बनने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया। जुगांतर समूह में शामिल होने के तुरंत बाद, एक अर्ध-क्रांतिकारी छात्र संगठन - ‘छात्री संघ’ में नए सदस्यों की भर्ती और प्रशिक्षण में मदद करके, उन्होंने इस संघ को भी अपना समय दिया।
छात्री संघ और जुगांतर समूह के साथ उनके मज़बूत संबंधों ने उन्हें समान विचारधारा रखने वाले कुछ ऐसे व्यक्तियों से परिचित कराया, स्वतंत्रता की अटूट इच्छा से प्रेरित जिनके सामाजिक-राजनीतिक विचार, उनसे मिलते थे। गुप्त क्रांतिकारी समूहों की दैनिक गतिविधियों को विफल करने के लिए, ब्रिटिश अधिकारियों की नियमित निगरानी के चलते, गांगुली के लिए कलकत्ता से बाहर काम करना बहुत मुश्किल हो गया था, क्योंकि अंग्रेज़ उन पर भी कड़ी निगरानी रखने लगे थे। इन क्रांतिकारियों के खून के प्यासे अंग्रेज़ों के कारण, जुगांतर पार्टी के कई सदस्यों को छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1928 से 1930 के बीच, सुहासिनी गांगुली को गिरफ़्तारी के डर से चंदननगर में शरण लेनी पड़ी, जो फ़्रांसीसियों के नियंत्रण में था।
18 अप्रैल 1930 को, चटगाँव शस्त्रागार छापे के बाद, जिसमें भारतीय स्वतंत्रता क्रांतिकारियों ने पुलिस और सहायक बलों के शस्त्रागार को लूटने का प्रयास किया था, छात्री संघ के वरिष्ठ नेताओं ने, 21 वर्षीय गांगुली को पुलिस से भागे हुए क्रांतिकारियों को आश्रय प्रदान करने का निर्देश दिया। उन्होंने जुगांतर पार्टी के एक साथी सदस्य, शशधर आचार्य के साथ विवाहित होने का ढोंग शुरू किया, जिससे वे दोनों उन क्रांतिकारियों के लिए अपने दरवाज़े खोल पाए, जिन पर अंग्रेज़ों की कड़ी निगरानी थी। उसी वर्ष सितंबर में, चंदननगर में गांगुली के घर पर ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने छापा मारा, जिसका नेतृत्व चार्ल्स टेगार्ट कर रहा था। टेगार्ट अपनी क्रूरता और कैदियों को अमानवीय यातना देने के लिए जाना जाता था। इस बार, छापे में एक साथी जुगांतर सदस्य- जीबन घोषाल की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो गई। इसके बाद, गांगुली, शशधर आचार्य और गणेश घोष को गिरफ़्तार कर लिया गया, हालाँकि, गांगुली को उनकी गिरफ़्तारी के कुछ समय बाद ही रिहा कर दिया गया था।
1925 के नव अधिनियमित बंगाल आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग करते हुए, ब्रिटिश पुलिस ने गांगुली को 1932 में गिरफ़्तार कर लिया। उन्हें खड़गपुर के पास हिजली कारावास शिविर में छह सालों तक रखा गया। दिलचस्प बात यह है कि वर्तमान में, खड़गपुर का भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), इसी शिविर स्थल पर स्थित है।
हिजली से अपनी रिहाई के बाद, गांगुली ने देश की आज़ादी के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। वे आधिकारिक तौर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुड़ गईं और उन्होंने पार्टी के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया। 1942 और 1945 के बीच, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले एक क्रांतिकारी, हेमंत तराफ़दार को आश्रय देने की वजह से, गांगुली को फिर से जेल में डाल दिया गया। स्वतंत्रता के बाद, 1950 के दशक की शुरुआत में, गांगुली को कम्युनिस्ट पार्टी के निर्देशों के तहत की गई गतिविधियों के कारण, 1950 में नए अधिनियमित पश्चिम बंगाल सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया।
23 मार्च 1965 को, एक दुर्भाग्यपूर्ण सड़क दुर्घटना में, सुहासिनी गांगुली की मृत्यु हो गई। सुहासिनी गांगुली सरनी, पटुआपारा, भवानीपुर, कोलकाता शहर का एक इलाका, इस अकीर्तित नायिका के संघर्षों की याद दिलाता है।