महाबिरी देवी
भारत के लंबे स्वतंत्रता संग्राम में 1857 का विद्रोह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसमें विदेशी शासन से मुक्त होने के प्रयास में पहली बार साधारण नागरिकों ने एक बड़े पैमाने पर भाग लिया था। विभिन्न समुदायों के साधारण लोगों ने एक जुट हो कर अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ़ संगठित प्रतिरोध किया जिसने इतिहास का रुख बदल दिया।
परंतु इस विद्रोह में महिलाओं की भूमिका, विशेष रूप से उनकी जो दलित समुदाय से थीं, अक्सर कम करके आँकी जाती है और फिर अंत में भुला दी जाती है। महाबिरी देवी एक ऐसी ही दलित समुदाय की महिला थीं। दुर्भाग्य से, अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ने के उनके अथक प्रयास का ज़िक्र, स्थानीय लोककथाओं के अलावा और कहीं नहीं पाया जाता।
वीरांगना महाबिरी देवी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर के मुंडभर गाँव से थीं। दिलचस्प बात है कि अधिकांश दलित वीरांगनाओं के नामों के आगे या तो देवी या बाई लगाया जाता है। ये शब्द इन महिलाओं के अत्यधिक नैतिक चरित्र पर ज़ोर देते हुए, उनकी महानता, बहादुरी और पक्के राष्ट्रवाद को दर्शाते हैं। उनका जन्म भंगी जाति के एक परिवार में हुआ था जो कि मुख्य रूप से कूड़ा उठाकर साफ़-सफ़ाई और अन्य निम्न काम किया करते थे। इस कारण उनका समुदाय सदियों पुरानी अस्पृश्यता की प्रथा का शिकार था। हालाँकि वे एक साधारण परिवार से थीं और बहुत गरीबी में पली-बढ़ी थीं, परंतु वे बहुत ही बुद्धिमान और होशियार थीं। जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, वे बहुत दृढ एवं बहादुर थीं। वे एक उत्पीड़ित समाज में बड़ी हुईं थीं, इसलिए वे किसी के भी खिलाफ़ हो रहे शोषण और गलत कामों से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहती थीं, चाहे वह अंग्रेज़ी शासन से संघर्ष करना ही क्यों न हो। अल्पायु में ही उन्होंने महिलाओं का एक संघ बनाया जिसका उद्देश्य था अपने-अपने समुदाय की महिलाओं और बच्चों को किसी भी घृणित कार्य करने से बचाना और उन्हें सम्मान के साथ जीने के लिए प्रेरित करना।
1857 में, जब उत्तर भारत के कई हिस्से उपनिवेशवाद-विरोधी आक्रोश से पूर्ण थे और अंग्रेज़ों को हराने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे थे, महाबिरी ने उत्साह से आगे आकर अपने साहस और बहादुरी को प्रदर्शित किया। जब अंग्रेज़ों ने मुज़फ़्फ़रनगर को घेरा, तब महाबिरी ने 22 महिलाओं का एक समूह बना कर उन्हें कट्टा और ग्रासा जैसे लोहे के हथियार दिए और अंग्रेज़ी सैनिकों पर अचानक से हमला कर दिया। हालाँकि महाबिरी देवी और महिला योद्धाओं के उनके समूह ने कई अंग्रेज़ी सैनिकों को मार डाला, परंतु आखिरकार वे और उनके साथी अंग्रेज़ों द्वारा बेरहमी से मारे गए।
वीरांगना महाबिरी देवी ने निडर होकर संघर्ष किया और राष्ट्र के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इस तरह उन्होंने औपनिवेशिक शासन के आधार को हिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक तरफ़ जहाँ यह कहानी देश की स्वतंत्रता के लिए दलितों द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में बताती है, वहीं दूसरी तरफ़, यह दलित समुदाय के साथ हो रहे शोषण और अन्याय के विरुद्ध उनकी लड़ाई का भी वर्णन करती है। परंतु इस तरह के बलिदान और प्रतिरोध का आधिकारिक दस्तावेज़ों में शायद ही कहीं उल्लेख मिलता है जिसके कारण यह कहानी धीरे-धीरे लुप्त होने लगी है। देश की सेवा में दलितों की विरासत, वीरता, गौरव और बलिदान को याद रखना ज़रूरी है। वर्तमान में, महाबिरी देवी के योगदान को मुज़फ़्फ़रनगर क्षेत्र में प्रचलित लोककथाओं और नाटकों के माध्यम से याद किया जाता है।