सुब्रमण्य शिव
(1884-1925)
सुब्रमण्य शिवम, जिन्हें सुब्रमण्य शिव के नाम से जाना जाता है, का जन्म 1884 में डिंडीगुल जिले (मदुरई क्षेत्र) के बटलागुंडु गाँव में राजम अय्यर और नागलक्ष्मी के यहाँ हुआ था। उन्होंने युवावस्था में ही आध्यात्मिक अन्वेषण में बहुत रुचि दिखाई और अपने चाचा, जो ओधा स्वामी नामक एक संन्यासी थे, के उत्साही शिष्य बन गए थे। उनके परिवार की विषम परिस्थितियों ने उन्हें जिला अदालत में नौकरी स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया, जिसे उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में उतरने के लिए शीघ्र ही छोड़ दिया था। वे एक उत्कृष्ट वक्ता थे, जो हर संदर्भ में अपने मन की बात खुलकर कहते थे। वे बाल गंगाधर तिलक के सिद्धांत, जो विरोधी से हमेशा दृढ़ता से और बिना समझौता किए सामना करने की वकालत करते थे, से बहुत प्रभावित थे।
कुछ समान मित्रों ने उन्हें वीओ चिदंबरम पिल्लई (वीओसी) से मिलवाया, जिनके पास अपनी स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी शुरू करके, ब्रिटिश जहाज कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने का साहस और प्रबंधन कौशल था। शिव, वीओसी के करीबी मित्र और सहयोगी बन गए तथा उन्होंने वीओसी की नौपरिवहन गतिविधियों और श्रमिक संघ नेता के रूप में उनकी भूमिका के समर्थन में सार्वजनिक रूप से बोलना शुरू कर दिया।
इस प्रकार शिव और एक अन्य पुराने स्वदेशी समर्थक, पद्मनाभ अयंगर, ने, तूतिकोरिन में ब्रिटिश स्वामित्व वाली कोरल मिलों में हड़ताल का आयोजन करने में वीओसी का साथ दिया। इसके ठीक बाद, 9 मार्च, 1908 को, उन्होंने जिला कलेक्टर विंच के आदेशों की अवहेलना करते हुए बिपिन चंद्र पाल की कलकत्ता में जेल से रिहाई का जश्न मनाने के लिए, तिरुनेल्वेली में एक बड़ी रैली का आयोजन किया। विंच ने तीनों को गिरफ्तार करवाकर उन पर मुकदमा चलाया। वे पलायमकोट्टई की एक जेल में रखे गए और मार्च के अंत में रिहा कर दिए गए।
परंतु, शिव और वीओसी के उग्र भाषणों से अंग्रेज़ विचलित थे और उन पर फिर से देशद्रोह का आरोप लगाया गया और, देश भर से नेताओं द्वारा मिले समर्थन से अप्रभावित, उन्हें क्रमशः 20 और 10 साल के लिए निर्वासन की सजा सुनाई गई। अपील करने पर, अंग्रेजों ने कुछ रियायत की और कैद को कम करते हुए वीओसी को 6 साल और सिवा को 3 साल के लिए कोयम्बटूर जेल भेज दिया गया, जहाँ उनके साथ कठोर और अमानवीय व्यवहार किया गया।
दुर्भाग्यवश, शिव को जेल में कुष्ठ रोग हो गया। परिणामस्वरूप उन्हें अपनी यात्राओं और भाषणों को भी कम करना पड़ा, यद्यपि उनकी देशभक्ति के कारण लोग उनकी ओर आकर्षित होते रहे। उनके भाषणों के कारण उन्हें कई बार और जेल की सजा हुई। उन्होंने अपना शेष जीवन तमिल में एक के बाद एक तीन समाचार पत्रों को चलाने में बिताया, जिनमें से पहले का नाम ‘ज्ञान भानु’ था, जो अपनी विषय-वस्तु के अलावा साहित्यिक महत्व के कारण अत्यधिक प्रशंसित था। इसे देशभक्त तमिल कवि, सुब्रमण्यम भारती, के कुछ गीतों को प्रकाशित करने का गौरव प्राप्त था। शिव एक प्रख्यात लेखक भी थे, और उन्हें, ‘रामानुज विजयम’ और ‘माधव विजयम’ सहित उनकी पुस्तकों के लिए जाना जाता है।
उन्होंने अपने अंतिम कुछ वर्ष पप्पारापट्टी में बिताए, जहाँ उन्होंने अपने मित्रों की सहायता से देशबंधु चित्तरंजन दास को भारत माता के लिए एक मंदिर की आधारशिला रखने में सहायता की। दुर्भाग्य से, उनके पास इस अभियान को आगे बढ़ने का समय नहीं था। वे अपने मित्रों की सांगत में थे जब, 1925 में, अपने समय से पहले, बढ़ते कुष्ठ रोग और कमजोरी के कारण, उनका शांतिपूर्वक निधन हो गया।
1 अगस्त, 2021 को, तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के पप्पारापट्टी में दस साल पहले बनाए गए स्मारक परिसर में स्वतंत्रता सेनानी सुब्रमण्य शिव के सम्मान में एक नए पुस्तकालय भवन के खोले जाने की घोषणा की गई। उसी समय, लगभग एक शताब्दी पहले स्वतंत्रता सेनानी द्वारा देखे गए सपने को साकार करते हुए, उसी परिसर में लगभग एक मीटर ऊँची भारत माता की एक काँस्य प्रतिमा का अनावरण भी किया गया।