Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

पुष्पलता दास

A sculpture at Kanaklata Udyan in Assam showing the police shooting of 1942, Image Source: Wikipedia

पुष्पलता दास

27 मार्च 1915 को लखीमपुर (असम) में जन्मी, पुष्पलता दास एक कर्मठ कार्यकर्ता, उत्साही गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होनें बचपन से ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया था। 6 साल की उम्र में, वे बानर सेना में सम्मिलित हो गईं थीं, जो स्वदेशी को बढ़ावा देने और लोगों के बीच खादी को लोकप्रिय बनाने के लिए काम करने वाला लड़कियों का एक स्थानीय रूप से संगठित स्वयंसेवी दल था।

असम में ऐसे समय में पली-बढ़ी, जब युवा पीढ़ी भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं के काम और विचारधारा से बहुत ही प्रेरित थी, पुष्पलता ने स्कूल में ही इन विचारों को आत्मसात करना शुरू कर दिया था। 1930 में, 15 साल की उम्र में, और पानबाज़ार गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ते हुए, पुष्पलता ने अपने दो मित्रों के साथ कामरूप महिला समिति के परिसर के अंदर मुक्ति संघ नामक एक क्रांतिकारी संगठन की शुरुआत की। यह ऐसा समय था जब देश सविनय अवज्ञा आंदोलन में उलझा हुआ था। अंग्रेज़ी शासन की बेड़ियों से देश को आज़ाद कराने की लड़ाई में सम्मिलित होने के लिए इन लड़कियों ने शपथ ली और इस पर अपने खून से हस्ताक्षर किए। जब भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई, तब उन्होंने बहिष्कार का भी आयोजन किया। संघ की खबर सामने आने पर पुष्पलता को उनके स्कूल से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद, उन्हेंने निजी तौर पर पढ़ाई की, और स्नातक के बाद, 1938 में वे कानून की पढ़ाई के लिए अर्ल लॉ कॉलेज, गुवाहाटी, चली गईं। अपने छात्र वर्षों के दौरान, वे कम्युनिस्ट विचारों से अत्यधिक प्रभावित थीं और छात्र सक्रियतावाद में सम्मिलित थीं। वे उन संगठनों से भी जुड़ी थीं जिनका उद्देश्य नागरिक अधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना था।

लगभग 1940 के दशक में, सविनय अवज्ञा आंदोलन के हिस्से के रूप में, पुष्पलता उन अनेक महिलाओं में से एक थीं, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे थीं। वे असम में कांग्रेस पार्टी की महिला शाखा की संयुक्त सचिवों में से एक थीं और उन्हें महिला स्वयंसेवकों को संगठित करने और तैयार करने का प्रभार दिया गया था। इस समय तक, वे अंग्रेजों से आज़ादी के राष्ट्रीय उद्देश्य के प्रति पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हो गईं थीं। महात्मा गांधी के आह्वान ने अनेक लोगों के अंदर राष्ट्रवादी भावनाओं को जागृत किया, और पुष्पलता ने भी ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ में भाग लिया, जिसके कारण अंततः उन्हें जेल में डाल दिया गया था।

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पुष्पलता का नेतृत्व कौशल सबसे आगे थे, जब उन्हें और उनके पति ओमियो कुमार दास, एक गांधीवादी, को असम के दरांग जिले की महिलाओं को संगठित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। सत्याग्रहियों को दो समूहों, शांति वाहिनी और मृत्यु वाहिनी, में विभाजित किया गया था। 20 सितंबर 1942 को गोहपुर, ढेकियाजुली, बिहाली और सूतिया में शांतिपूर्ण जुलूस निकालकर और पुलिस थानों के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध अपनी अवज्ञा दर्शाने की योजना थी। परंतु, उनकी योजना सफल नहीं हुई, क्योंकि पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाईं, जिसके कारण कई लोग मारे गए और कई घायल हो गए।

A sculpture at Kanaklata Udyan in Assam showing the police shooting of 1942, Image Source: Wikipedia

कनकलता उद्यान में 1942 की पुलिस गोलाबारी दर्शाती हुई एक मूर्ति, चित्र स्रोत: विकिपीडिया

पुष्पलता दास एक अनुकरणीय महिला थीं जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आगे बढ़कर नेतृत्व किया और कई अन्य लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। 1942 में, उन्हें भारत सुरक्षा नियम (डिफेंस ऑफ़ इंडिया रूल) के तहत गिरफ्तार किया गया और साढ़े तीन साल के लिए जेल में डाल दिया गया। उनकी दृढ़ता ऐसी थी कि जब वे कारावास में बीमार पड़ गईं और सरकार ने उन्हें पैरोल पर जाने का अनुरोध किया, तो उन्होंने मना कर दिया था। उन्होंने असम सरकार द्वारा दिए गए ताम्रपत्र को भी अस्वीकार कर दिया। देश के स्वतंत्र हो जाने के बाद भी, उन्होंने विभिन्न क्षमताओं और भूमिकाओं में काम करना जारी रखा। वे राज्य सभा और असम विधान सभा की सदस्य थीं। 1999 में, भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 9 नवंबर 2003 को पुष्पलता दास का निधन हो गया।