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लोक नायक ओमियो कुमार दास

लोक नायक के नाम से प्रसिद्ध ओमियो कुमार दास, एक बहुआयामी व्यक्तित्व वाले नेता थे: एक असमिया सामाजिक कार्यकर्ता, विचारधारा से गांधीवादी, एक शिक्षाविद् और एक प्रसिद्ध लेखक। 21 मई 1895 को असम के नगाँव जिले में जन्मे, ओमियो का पालन-पोषण उनके नाना लक्ष्मीकांत बरकाकती ने किया था, जो स्वयं एक बुद्धिजीवी और राष्ट्रवादी थे और युवा ओमियो के व्यक्तित्व पर उनका अचूक प्रभाव पड़ा था। अपने जीवन में बहुत पहले से ही देश में बदलते राजनीतिक माहौल से अवगत हो जाने के कारण, वे अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान देश के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित हो गए थे।

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

लोक नायक ओमियो कुमार दास

ओमियो तेज़पुर हाई स्कूल के विद्यार्थी थे जब उन्होंने 1905 के बंगाल विभाजन आंदोलन में भाग लिया। उसी समय, उन्होंने देश की जरूरतों के लिए अति आवश्यक धन कमाने के लिए एक मजदूर के रूप में भी काम किया। महाविद्यालय में उनकी राष्ट्रवादी भावना और मजबूत हुई, जब उन्होंने कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन में एक स्वयंसेवक के रूप में, गांधीजी, एस एन बनर्जी, एनी बेसेंट और अन्य दिग्गज नेताओं को बोलते हुए सुना था। जब गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया, तो ओमियो ने अपने आसपास के युवाओं को भाग लेने के लिए संगठित करने का काम अपने ऊपर ले लिया। इस आंदोलन के दौरान, हजारों विद्यार्थियों द्वारा अपने शिक्षण संस्थानों को छोड़ दिया गया, विदेशी सामान का बहिष्कार किया गया, शराब और अफ़ीम की दुकानों पर धरना दिया गया, सरकार की अवहेलना की गई, और कानूनी अदालतों को नकारा गया। 1921 में, इस आंदोलन ने और भी गति पकड़ी जब ओमियो दरांग जिला कांग्रेस के महासचिव बने। एक बार, शराब की दुकान पर धरना देने के प्रयास में उनका सामना एक क्रोधित महिला से हो गया जो शराब खरीदने आई थी। ओमियो ने उसे शराब के सेवन के नकारात्मक प्रभाव के बारे में समझाया। महिला ओमियो से इतनी प्रेरित हुई कि उसने शराब का सेवन बंद करने की कसम खा ली। इसके बाद उसने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया। यह ओमियो के नेतृत्व का एक नमूना था। वे असम में स्वतंत्रता संग्राम के पथ प्रदर्शकों में से एक बने। 1930 में जब गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया, तो ओमियो ने अपने आसपास के युवाओं को भाग लेने के लिए संगठित करने का काम अपने ऊपर ले लिया। अपनी अंग्रेज़- विरोधी गतिविधियों के लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।

उनके अदम्य मनोभाव और राष्ट्रवादी भावना के कारण उन्हें क्रमशः 1937 और 1945 में असम विधान सभा और संविधान सभा के लिए चुना गया। श्रम मंत्री के रूप में, उन्होंने असम के चाय बागान श्रमिकों के हित के लिए चाय बागान श्रमिक भविष्य निधि की स्थापना की पहल की, और शिक्षा मंत्री के रूप में, उन्होंने, गांधीजी की अतिप्रिय, बुनियादी शिक्षा की अवधारणा को सम्मिलित करके शिक्षा प्रणाली में सुधार किया। ओमियो का राजनीतिक जीवन उपलब्धियों से भरा हुआ था और इसके अलावा वे एक सामाजिक विचारक, सुधारक, पत्रकार और लोकप्रिय लेखक भी थे। ‘गांधीजीर जीबोनी’, ‘महात्मा गांधीक आमी किदोर बुजिलु’, और ‘असोमोट महात्मा’ जैसी पुस्तकें लिखने के अलावा, उन्होंने गांधीजी की आत्मकथा, ‘द स्टोरी ऑफ़ माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ का असमिया (मोर सत्य अनेश्वनार काहिनी) में अनुवाद भी किया। अपनी प्रतिबद्धता और देशभक्ति की विरासत को पीछे छोड़ते हुए, ओमियो का 23 जनवरी 1975 को निधन हो गया। आज, ओमियो कुमार दास सामाजिक परिवर्तन और विकास संस्थान (ओकेडी) और लोकनायक ओमियो कुमार दास कॉलेज जैसे कई संस्थान इस अकीर्तित नायक की स्मृति में मौजूद हैं। 1963 में, भारत सरकार ने उन्हें समाज में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

लोकनायक ओमियो कुमार दास (स्मारक डाक टिकट) का प्रथम दिवस आवरण