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गंगाधरराव बालकृष्ण देशपांडे

गंगाधरराव बालकृष्ण देशपांडे को कर्नाटक के भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता के रूप में जाना जाता है। वे राष्ट्रीय स्वतंत्रता के महान उद्देश्य के लिए लड़ने हेतु गांधीजी के आह्वान पर प्रतिक्रिया दिखाने वाले राज्य के सबसे पहले लोगों में से एक थे। 1900 के दशक की शुरुआत में, पूरे देश में अंग्रेज़ों के विरुद्ध भावनाएँ चरम पर थीं, और परिवर्तन की माँग देश में फैल रही थी। इस परिवेश में देशपांडे ने कर्नाटक और महाराष्ट्र के लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

31 मार्च 1871 को हुडली, बेलगाम, (वर्तमान कर्नाटक में), में जन्मे गंगाधरराव बालकृष्ण देशपांडे, शुरू में सामाजिक सुधारों की ओर अधिक झुकाव रखते थे। परंतु, जब वे लोकमान्य तिलक से मिले, उनके जीवन ने एक अलग मोड़ ले लिया, और जुलाई 1920 से तिलक के निधन तक, गंगाधरराव ने, तिलक द्वारा समर्थित स्वराज अथवा स्वशासन के लिए, कर्नाटक के लोगों के युवा संघर्ष का नेतृत्व किया। वे स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में सबसे आगे थे और इस कारण उन्हें ‘कर्नाटक का शेर’ नाम दिया गया। तिलक की मृत्यु और गांधीजी के उदय के बाद, देशपांडे ने गांधी को, तिलक की दूरदर्शिता और दर्शन के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में देखा। जब गांधी ने दांडी में नमक अधिनियम का विरोध किया और नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया, तो देशपांडे ने भी विनिषिद्ध नमक बेचकर कानून का विरोध किया और उन्हें उसी दिन गिरफ़्तार कर लिया गया।

1905-1906 के स्वदेशी आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेज़ी वस्तुओं के बहिष्कार और स्थानीय रूप से उत्पादित (स्वदेशी) वस्तुओं के उपयोग पर जोर दिया था। आत्मनिर्भर भारत के गांधी के सपने को ध्यान में रखते हुए, देशपांडे ने हुडली में खादी केंद्र स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो दक्षिण भारत में इस तरह का पहला केंद्र था। उनके द्वारा खादी आंदोलन के बारे में जागरूकता पैदा करने हेतु गाँव-गाँव जाने के कारण, उन्हें ‘कर्नाटक का खादी भगीरथ’ भी कहा जाता था।

 Gangadharrao B Deshpande The Lion of Karnataka

गंगाधरराव बी. देशपांडे, कर्नाटक का शेर

‘Khadi Bhageeratha of Karnataka’

कर्नाटक का खादी भगीरथ

देशपांडे 1924 में बेलगाम में गांधीजी की अध्यक्षता में हुए 29वें कांग्रेस अधिवेशन की सफलता के पीछे मुख्य आयोजक और व्यक्ति थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, बेलगाम ने देश के दक्षिणी हिस्से में लोगों को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सरोजिनी नायडू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, सैफ़ुद्दीन किचलू जैसे दिग्गजों और अन्य नेताओं की उपस्थिति ने, शहर में हो रहे इस ऐतिहासिक सत्र को महत्वपूर्ण बना दिया था। इस सत्र के लिए स्थानीय व्यापारियों और व्यवसायियों से धन और समर्थन संचित करते हुए, देशपांडे ने 70,000 लोगों की विशाल सभा के लिए पीने के पानी की आपूर्ति भी सुनिश्चित की। यह एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि यह ऐसा समय था जब यह क्षेत्र गंभीर जल संकट से जूझ रहा था।

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी बेलगाम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान हुए विरोध और आंदोलनों में 5000 से भी अधिक लोगों को बेलगाम में कैद कर लिया गया था। अंग्रेज़ी सरकार ने कर्नाटक के, पुलिस की गिरफ्त से फरार पाँच स्वतंत्रता सेनानियों पर 5,000/- रुपये के नकद इनाम की भी घोषणा की थी, और विडंबना यह थी कि वे सभी बेलगाम जिले के थे। इससे बेलगाम के लोगों में दश के प्रति भावना का पता चलता है। बेलगाम और उसके आसपास के जिलों में भारत छोड़ो आंदोलन के प्रभावी संगठन और कार्यान्वयन को जल्द ही ‘कर्नाटक पैटर्न’ के रूप में जाना जाने लगा और यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया था।

देशपांडे की वीरता, उनका वक्तृत्व कौशल, असाधारण शिक्षा, सादा जीवन और उनके विशाल व्यक्तित्व ने मिलकर उन्हें अद्वितीय और सर्वोत्कृष्ट महत्ता प्रदान की है। लोकमान्य तिलक के इस उत्साही शिष्य और गांधीजी के उत्सुक अनुयायी ने अपने जीवन के 60 वर्ष स्वतंत्र भारत के लिए लड़ते हुए समर्पित कर दिए थे। 30 जुलाई 1960 को देशपांडे का निधन हो गया था।