सत्येंद्रनाथ बोस
सत्येंद्रनाथ बोस मिदनापुर (वर्तमान पश्चिम बंगाल) के रहने वाले थे। 30 जुलाई 1882 को जन्मे, सत्येंद्रनाथ का नाम पहली बार पुलिस अभिलेख में तब दर्ज हुआ, जब मिदनापुर शस्त्र मामले में उन्हें बिना लाइसेंस वाली बंदूक रखने के लिए पकड़ा गया था और बाद में उन्हें 2 महीनों की कैद हुई थी ।
सत्येंद्रनाथ बोस ने, अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध हुए, बंगाल के राष्ट्रवादी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। अरबिंदो घोष के दूर के संबंधी, सत्येंद्रनाथ राष्ट्र हित में एक ऐसा कार्य करने के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसके कारण, अंततः अरबिंदो और अन्य लोगों के सामने खड़ा कानूनी खतरा निर्थक हो गया था।
घटना 1908 की है और इसे अलीपुर बम कांड के नाम से जाना जाता है। मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफ़ोर्ड की हत्या के असफल प्रयास के परिणामस्वरूप अधिकारियों ने अरबिंदो सहित बीस से अधिक संदिग्ध लोगों को गिरफ़्तार कर लिया था। अंग्रेज़ अरबिंदो को उनकी सहभागिता के लिए फाँसी देना चाहते थे, लेकिन सबूत की कमी थी। उनकी कैद और मुकदमे के दौरान, गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों में से एक (नरेन गोस्वामी), पूर्ण क्षमा के बदले सरकारी गवाह बन गया था। गोस्वामी ने अपनी गवाही में अरबिंदो और उनके आंदोलनकारियों के दल को दोषी ठहराया था।
सत्येंद्रनाथ और कनाईलाल, जो गिरफ्तारी से बच गए थे, ने मामले को अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने गोस्वामी का पता लगा लिया, जिसे अधिकारियों ने गुप्त स्थान में रखा था। उन्होंने उसके साथ मिलकर काम करने और सरकारी गवाह बनने की इच्छा जाहिर की। इस कथन ने गोस्वामी को उनसे मिलने के लिए प्रलोभित किया। 31 अगस्त 1908 को हुई मुठभेड़ में, सत्येंद्रनाथ और कनाईलाल ने, अपनी पहले से ही अंदर रखी गईं, पिस्तौलें निकालीं और गोस्वामी को गोली मार दी। उनकी पिस्तौलों से ही निकली एक गोली ने अंततः गोस्वामी का अंत कर दिया। उन्होंने इस प्रकार गद्दार को मारकर अपने साथियों के साथ न्याय किया था। गोस्वामी की हत्या के पीछे का प्रयोजन महज बदला लेना ही नहीं था। कानून के अनुसार मजिस्ट्रेट की अदालत में गवाही को सत्र न्यायालय में सबूत के रूप में तभी स्वीकार किया जा सकता जब बचाव पक्ष, गवाह से जिरह करने के अपने अधिकार का उपयोग कर ले। गोस्वामी की हत्या के कारण, उसके द्वारा दिए गए संभावित अपराध-संकेती सबूत को न्यायालय में अस्वीकार्य कर दिया गया, और इस प्रकार अरबिंदो और अन्य क्रांतिकारियों के लिए उत्पन्न कानूनी खतरा निष्प्रभाव हो गया।

तेजस्वी सत्येंद्रनाथ बोस

हत्या के बाद गिरफ़्तारी
परंतु, अब अंग्रेज़ो ने सत्येंद्रनाथ और कनाईलाल को अपनी बंदूकों का निशाना बना लिया। गोस्वामी की हत्या का मुकदमा केवल 2 दिनों तक चला, और 21 अक्टूबर 1908 को जहाँ अदालत ने कनाईलाल को फाँसी की सजा सुनाई, वहीं सत्येंद्रनाथ को उसी अदालत ने उम्रकैद की सजा सुना दी। अंग्रेज़, जो अरबिंदो पर मुकदमा नहीं चला सके थे, सत्येंद्रनाथ का अंत देखना चाहते थे। इसलिए, इस आदेश के बावजूद, सत्र न्यायाधीश ने न्यायपीठ के फ़ैसले के खिलाफ़ जाकर सत्येंद्रनाथ के मामले को उच्च न्यायालय में भेज दिया। यहाँ सत्येंद्रनाथ को दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुना दी गई। 21 नवंबर 1908 को, सत्येंद्रनाथ बोस को विदेशी शासकों से देश को मुक्त कराने हेतु उनके विद्रोही कृत्य के लिए फाँसी दे दी गई।
1908 में इन शूरवीरों की फाँसी ने लोगों में भावनात्मक उथल-पुथल मचा दी। वास्तव में, उनके शहीद होने से पहले के अंतिम क्षणों के प्रत्यक्ष साक्ष्य विवरणों ने इन युवा क्रांतिकारियों को, भारत के स्वतंत्रता संग्राम की इतिहास गाथा में, स्थायी स्थान प्रदान कर दिया है।