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वेलु नचियार और कुयिली
दो वीरांगनाओं की कथा

एक योद्धा रानी, एक वीर महिला सेनाध्यक्ष और 5000 की सेना – इन सभी ने एक साथ मिलकर अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए थे! यह एक ऐतिहासिक घटना थी जिसमें भारत की न केवल पहली महिला योद्धा का उदय हुआ था बल्कि देश में आत्मघाती बम विस्फोट की पहली घटना भी घटित हुई थी।

18वीं शताब्दी के दौरान, वर्तमान तमिलनाडु में शिवगंगई रियासत में वेलु नचियार नाम की एक रानी रहती थीं। वेलु सेतुपति राजवंश के शाही दंपती की इकलौती पुत्री थीं और वे राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में पली-बढ़ी थी। युद्ध कलाओं, घुड़सवारी और तीरंदाजी में प्रशिक्षित, वे फ़्रांसीसी, उर्दू और अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में भी निपुण थीं।

वेलु के जीवन में दुखद मोड़ तब आया जब अंग्रेज़ों ने - आर्कोट के नवाब के पुत्र के नेतृत्व में - कलैयार कोइल युद्ध में उनके पति मुथु वदुगनाथ थेवर की हत्या कर दी। वेलु और उनकी पुत्री, वेल्लाची, को तब शिवगंगई से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। वेलु शिवगंगई से दूर डिंडिगुल पहुँचीं, जहाँ उन्होंने डिंडिगुल के तत्कालीन शासक गोपाल नायकर की शरण में आठ साल व्यतीत किए।

डिंडिगुल में ही उनकी मुलाकात, मैसूर के सुल्तान, हैदर अली से भी हुई, जिनसे उन्हें सहानुभूति मिली क्योंकि हैदर अली उनकी धाराप्रवाह उर्दू और बुद्धिमता से प्रभावित हो गए थे।

1780 में, गोपाल नायकर के अटूट समर्थन और हैदर अली की सहयोगी सेनाओं के साथ, वेलु नचियार अपने प्रियतम की मौत का बदला लेने और अपने राज्य पर पुनः नियंत्रण प्राप्त करने के लिए निकल पड़ीं।

यद्यपि डिंडिगुल में शिवगंगा किले पर अंग्रेज़ों का पूरा नियंत्रण था, वेलु ने अपनी सेनाध्यक्ष कुयिली के साथ आत्मघाती हमले की योजना बनाई। योजना की सफलता के लिए, यह जानना महत्वपूर्ण था कि अंग्रेज़ों ने अपने हथियार और गोलाबारूद कहाँ संग्रह किए थे। अपने उत्कृष्ट गुप्त स्रोतों के साथ, वेलु ने गुप्तचरों को काम पर लगाया, जिन्होंने किले में शस्त्रागार कक्षों को खोज निकाला और, शीघ्र ही, योजना को क्रियान्वित करने का निर्णय ले लिया गया।

A young Maharaja Duleep Singh

भारत के 2008 के स्मारक डाक टिकट पर वेलु नचियार

विजयदशमी के दिन, कुयिली और कुछ अन्य महिलाएँ किले की ओर निकल पड़ीं। कुयिली के आदेश पर, महिलाओं ने उस पर घी डाला और उसमें पूरी तरह से सराबोर होने पर, कुयिली ने निडरतापूर्वक शस्त्रागार कक्ष में प्रवेश किया और स्वयं को आग लगा ली, जिसके कारण वहाँ रखा हुआ प्रत्येक हथियार नष्ट हो गया।

कुयिली के बलिदान के बाद, वेलु ने अपने साम्राज्य को अधिकार में लेने के उद्देश्य से किले पर आक्रमण कर दिया। वेलु ने न केवल अंग्रेज़ों से बल्कि आर्कोट के नवाब से भी निडर होकर और वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी और इस कारण उन्हें 'वीरमंगई', अर्थात ‘वीरांगाना’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।