Domain:प्रदर्शन कला
State: झारखंड
Description:
“सरायकेला नृत्य, झारखंड का मुखौटा नृत्य है। सरायकेला, सिंहभूम क्षेत्र का हिस्सा है। सरायकेला छऊ एक ऊर्जावान नृत्य विधा है जो परिखंडा नामक युद्ध संबंधी कला तकनीकों से उत्पन्न हुई है। मुखौटा, छऊ का केंद्रबिंदु है। चिकनी मिट्टी के मुखौटे लकड़ी के मंच पर बनाएँ जाते हैं और धूप में रखे जाते हैं। मुखौटों के सूखने पर इसपर कागज़ की परत चढ़ाई जाती है तत्पश्चात रूई और चिकनी मिट्टी की बारीक परत को चढ़ाया जाता है। परत चढ़ाने के बाद आँखों और मुँह को उकेरा जाता है और मुखौटों को फिर से सूखने के लिए धूप में रख दिया जाता है। सरायकेला में बसंतोत्सव के दौरान छऊ के लिए विशेष आकर्षण होता है, क्योंकि इस समय यह व्यापक रूप से प्रस्तुत किया जाता है। उत्सव के दौरान, दिन की समाप्ति पर छऊ कलाकारों की प्रस्तुति के माध्यम से रात्रि का स्वागत किया जाता है। रात्रि को अधखुली आँखों द्वारा दिखाया जाता है। ऋग्वेद के रात्री सूत्र के आधार पर , नृत्य शांत दृश्यों को दर्शाता है।
सरायकेला छऊ अपने कला भंडार के लिए बिजॉय प्रताप का ऋणी है। वे छऊ नृत्य के महान प्रशिक्षकों में से एक थे। उनके बाद आदित्य प्रताप और उनके पुत्रों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। छऊ मुख्य रूप से पुरुष नर्तकों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। सरायकेला छऊ नृत्य में सिर्फ पार्श्व संगीत होता है क्योंकि इसमें शब्दों का वाचन नहीं होता। कई प्रस्तुतियों में उपयोग में लायी गयी धुनें, हिंदुस्तानी संगीत की धुनें होती हैं।