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हाथ साँचा छपाई की हस्तकला
भारत में लकड़ी के साँचों से सुंदर कपड़ा बनाने की कालातीत कला और तकनीक लगभग ४५० वर्ष पूर्व प्रकट हुई थी। प्राचीन भारत में समुदायों का बटवारा उनके व्यवसायों के आधार पर होता था। छीपा समुदाय का नाम उनके मूलतः व्यवसाय – रंगरेज़ी और छपाई – पर पड़ा था। यह समुदाय मूल रूप से राजस्थान में नागौर में पाया गया और धीरे-धीरे वह गुजरात में प्रवास करने लगा। हाथ छपाई की उत्पादन प्रक्रिया में छीपी, रंगरेज़ और लकड़ी के साँचों को उकेरने वाले कारीगर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजस्थान और गुजरात के गाँवों में फैले, प्रत्येक गाँव के कपड़े की अपनी व्यक्तिगत विशेषता होती है, जैसे कुछ ख़ास प्रकार के नमूने, रंग और स्वरूप जिनका सरोकार उन गाँवों की भौगोलिक स्थिति, संसाधनों की उपलब्धता और पारिवारिक संबंधों से होता है।
शुरू से लेकर अंत तक, हाथ की छपाई पूर्ण रूप से बहुत कठिन परन्तु आनंद प्रदान करने वाली प्रक्रिया है। डिज़ाइन की रूपरेखा छापने के लिए लकड़ी के साँचे उत्कीर्ण किए जाते हैं और डिज़ाइन में रंग भरने के लिए अलग-अलग साँचों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक रंग का अपना अलग साँचा होता है। फिर इन लकड़ी के साँचों से कपड़े की पूरी लंबाई पर १००० बार से अधिक हाथ से ठप्पे मारकर डिज़ाइन बनाया जाता है। ये डिज़ाइन अधिकतर भारतीय पारंपरिक नमूने होते हैं, जो उस जगह की प्रकृति, आस्थाओं और प्रथाओं से प्रभावित होते हैं। इस श्रम प्रधान प्रक्रिया में बहुत समय लगता है और वास्तव में यह कारीगरों की सहनशीलता के स्तर की परीक्षा लेता है।
सांगानेर के हाथ छपाई के डिज़ाइन बहुत विस्तृत होते हैं। इनमें सफ़ेद या धूमिल-सफ़ेद बैकग्राउंड पर बारीक़ फूलदार डिज़ाइन छापे जाते हैं। कुछ प्रमुख नमूनों में गुलाब, कमल, कमल की कली, सूरजमुखी और कुमुदिनी के फूल शामिल हैं। सांगानेर साँचा छपाई में ‘कैलिको प्रिंटिंग’ और ‘दो रुखी’ सबसे अधिक पसंदीदा और सबसे अधिक बनाई जानेवाली कला आकृतियाँ हैं। कैलिको शैली में पहले रेखाचित्र छापा जाता है और उसके बाद रंग भरे जाते हैं, और इसी को तिरछे में दोबारा किया जाता है। दो रूखी में कपड़े के दोनों तरफ़ छपाई होती है। सांगानेर की साँचा छपाई में दोनों प्राकृतिक और कृत्रिम रंगों का उपयोग होता है। इसी प्रकार के सांगानेरी साँचा छपाई कपड़े पर स्क्रीन प्रिंटिंग के लिए कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल होता है, जो, इस कारण से, प्राकृतिक रंगों से बने कपड़ों से कम दाम का होता है।
बगरू की हाथ साँचा छपाई में अधिकतर ज्यामितीय पैटर्न होते हैं जिन्हें नील बैकग्राउंड या अन्य गाढे रंगों पर बनाया जाता है। बगरू शैली में दो प्रमुख डिज़ाइन के पैटर्न हैं: काले-दूधिये रंग रूपरंग वाली सयाली–बगरू प्रिंट, और दूसरा विशेष प्रतिरोध तकनीक का इस्तेमाल करके प्रिंट को छिपाने वाली दाब्रू प्रिंट।
हाथ साँचा छपाई, हालाँकि एक प्राचीन हस्तकला है, परंतु यह एक पर्यावरण-अनुकूल कला है जो प्रकृति को अपने सर्वोत्तम रूप में प्रदर्शित करती है।